जगतपुर की उस महिला ने मेरी रातों की नींद गायब कर दी- शिक्षा मंत्री
जगतपुर की उस महिला ने मेरी रातों की नींद गायब कर दी- शिक्षा मंत्री!
- 17 साल के उत्तराखंड राज्य का पहला शिक्षा मंत्री जिसने निजी स्कूलों को दिखाया आइना!
- सुप्रीम कोर्ट के फैसले की दलील को समझाया कि उसमें लिखा क्या गया है और ये स्कूल अभिव्यक्त क्या करते हैं.
- मात्र डेढ़ माह के कार्यकाल में सरकारी स्कूलों से हटवाई टाटपट्टी, 125 करोड़ रूपये जुटाए फर्नीचर व अन्य सुविधाओं के लिए!
देहरादून 2 मई (हि. डिस्कवर)
प्रदेश की राजनीति में पहली बार वह सब दिखने को मिल रहा है जिसका साहस आजतक कोई अन्य राजनेता नहीं कर पाया था. एजुकेशन हब के रूप में विश्व प्रसिद्ध उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में निजी स्कूलों की लूट पर अभी तक किसी भी शिक्षा मंत्री ने इतना बड़ा कदम नहीं उठाया था जितना शिक्षा मंत्री बनने के बाद अरविन्द पांडे ने उठाया.
यह पहले ऐसे शिक्षा मंत्री हुए जिनके यहाँ प्राइवेट स्कूल के वीवीआईपी कहे जाने वाले लोग उनका घंटों इन्तजार करते नजर आते हैं. अरविन्द पांडे का कहना है कि यह अंकुश इसलिए नहीं है कि वे बेवजह किसी को परेशान करना चाहते हों. उन्हें तो उस गरीब का ख़याल है जो होशियार तो है लेकिन ऐसे स्कूलों में उनकी मनमानी के चलते पढ़ नहीं सकता.
उन्होंने बताया कि प्रदेश में ऐसे कई निजी स्कूल हैं जिनके पास खेल मैदान क्या प्रार्थना स्थल तक नहीं है उनकी कक्षाओं में ही प्रार्थना होती है और वे फीस में मोटी रकम खेल फण्ड की जोड़ते हैं. जहाँ पंखे तक नहीं वे एसी का चार्ज ले रहे हैं. हर साल फीस में बढोत्तरी, रि-एडमिशन और डोनेशन के नाम पर हो रही लूट पर सख्त तो होना ही पडेगा वरना हम सामान नागरिक संहिता कहाँ लागू कर पाते हैं.
उन्हें यह पूछे जाने पर कि इतना साहसिक कदम आपने उठाया कैसे? वे बेहद संजीदा होकर बोले- जगतपुर की वह महिला मुझे सोने नहीं देती! फिर प्रसंग पर आते हुए बोले कि वे जगतपुर (अपनी विधान सभा क्षेत्र) में बैठक ले रहे थे तभी उन्होंने किसी महिला की जोर से चिल्लाने की आवाज सुनी तो उन्होंने पूछा- अरे कौन है आने दो इन्हें ! क्योंकि उन्हें मुझ तक पहुँचने में रोका जा रहा था.
महिला वहीँ से तेज आवाज में बोली- मंत्री जी, अब यह सब नहीं चलेगा. हम लोगों ने अपनी जिंदगी जैसे तैसे काट ही ली है लेकिन बच्चों का अहित नहीं होने देंगे. निजी स्कूलों में इतना शोषण है कि बच्चे पढ़ाएं तो पढ़ाएं कैसे! फिर आंसू पोंछती हुई बोली – चाहे खुद को ही क्यों न बेचना पड़े, बेचूंगी लेकिन बच्चों को कुछ बनाकर छोडूंगी क्योंकि इसके अलावा कोई और चारा भी तो नहीं है बच्चों को अच्छी शिक्षा देने का!
अरविन्द पांडे इस मामले के बात इतने व्यथित हुए कि उनकी रात की नींदें उड़ गयी. नींद में भी वही महिला उनके समक्ष कड़ी दिखती थी. आखिरकार वे भाजपा के वरिष्ठ नेता व अपने राजनीतिज्ञ गुरु बलराज पासी के पास गए और बोले कि उन्हें नहीं चाहिए ऐसा पद जहाँ वे कुछ भी नहीं कर सकते. बलराज पासी ने कहा वह जो निर्णय लें खुले मन लें ! ये न सोचें कि मेरा भी निजी स्कूल है. जिसमें आपका मन कहता है कि गलत है उसे रोकें.
बस फिर क्या था प्रदेश के शिक्षा मंत्री ने ठान लिया कि अब वे शिक्षा के नाम पर होने वाली उस लूट को जरुर रोकेंगे जो आम आदमी की मेहनत की कमाई से जाता है. और उन्होंने इस लूट को रोकने के बाद ही दम लिया. अब तक के सबसे चर्चित शिक्षामंत्रियों में शामिल अरविन्द पांडे का कहना है कि उनका लक्ष्य है कि शिक्षा विभाग के विभिन्न मद्दों की समीक्षा कर वे हर साल लगभग 50 करोड़ रुपये की बचत करेंगे जोकि सरकारी स्कूलों की ढांचागत व्यवस्था में सुधार ला सके व ई-एजुकेशन लागू कर सकें ताकि सरकारी स्कूलों की बच्चों का मनोबल भी बड़े बड़े निजी स्कूलों के बच्चों की तरह ऊँचा हो उनको मिलने वाली तालीम में कोई कोर कसर न रहे.