छट की शुभकामनाएं! क्या अपने ही उत्तराखंड में हाशिये पर आ गया है उत्तराखंडी समाज!

(मनोज इष्टवाल)

उत्तराखंड प्रदेश में रह रहे बिहारी जनमानस को छट की हार्दिक शुभकामनाएं! मैं व्यक्तिगत तौर से बेहद खुश हूँ कि आप लोगों की एकता में इतना बल है कि आपने वह कर दिया है जो उत्तराखंडी समाज यहाँ के निष्ठुर शासकों से विगत 19 बर्षों में नहीं करवा पाया! आखिर आप लोग सूर्य को अर्घ देने वाले जो ठहरे और हम निट्ठले कभी इगास-बग्वाल के रूप में अंधेरों को उजाला दिखाते हैं तो कभी प्रकृति और पर्यावरण की चिंता करते हुए हरेला मना लेते हैं! ज्यादा ही हुआ उत्तरायणी पर्व पर स्नान कर लिया या फिर संकट में पति पुत्र को देख संकट चौथ का व्रत ले लिया!

आप राज्य निर्माण के शुरूआती बर्ष को देखिये तो 8 नवम्बर 2000 में नित्यानंद स्वामी ने प्रथम मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार सम्भाला व लगभग एक बर्ष यानि 29 अक्टूबर 2001 तक वे मुख्यमंत्री रहे! तदोपरांत 5 माह तक भगत सिंह कोश्यारी ने राजसुख भोगा, 2 मार्च 2002 को पंडित नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री बने व पांच साल तक राज किया! फिर जनरल खंडूरी, डॉ. निशंक, जनरल खंडूरी, विजय बहुगुणा, हरीश रावत, राष्ट्रपति शास् (22 अप्रैल 2016 से 11 मई 2016), फिर हरीश रावत, और 18 मार्च 2017 से वर्तमान तक त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस प्रदेश की बागडोर सम्भाली!

देहरादून राजधानी का इतिहास अगर पलटकर देखें तो यहाँ से पूरे प्रदेश की राजनीति शुरू होती है! यहाँ आज एनी समाजों की भाँती पहाड़ी समाज भी राज्य बनने के बाद खूब फल-फूल रहा है लेकिन है कहाँ? दिखाई नहीं देता..! जितनी भी सरकारें आई व उनके मुखिया बने सबने गढवाली कुमाऊनि समाज के आईएएस लॉबी के अधिकारियों को अपनी अपनी सरकार में हाशिये पर रखा और राज किया! शायद इस 19 साल के राज्य का यह दुर्भाग्य ही है कि जो राजनेता कल तक हम सबकी नजर में ईमानदार था वह सत्ता सुख प्राप्त होते ही ईमानदारी की उल्टियां करने लगा व दवा के रूप में बेमानी की गोलियां पचाता रहा! सभी का प्रोफाइल अगर उठाकर देखें तो यहाँ 80 प्रतिशत ऐसे अधिकारियों की सूची है जिन्होंने प्रदेश को दोनों हाथों से लूटा व बदले में टुकड़े हमारे राजनेताओं के लिए फेंके! उन्होंने कभी अपने ऊपर राजनेताओं को हाबी नहीं होने दिया और मनमानी करते रहे! हमारे राजनेता बेचारे जिन्होंने टाट-पैबंद देखे थे उन्हें मखमली बिछौने मिलने शुरू हुए तो भला कौन टाट-पैबंद की पीड़ा में सोना पसंद करेगा!

ईमानदार कहलाने वाले अधिकारी पहाड़ी मूल या मैदानी मूल के अधिकारी प्रदेश को दोनों हाथों लुटता देख या तो फ्रस्टेड दिखाई दिए या फिर चाय की चुस्की लेते हुए मुस्कराते दिखे क्योंकि उनके पास कोई काम नहीं था! आज मैंने ऐसे कई ईमानदार अफसरों को बेईमानों की सूची में शामिल होते देखा है ! शायद उन्हें भी लगने लगा है कि गंगा जमुना के मायके वाले व बद्री केदार के वाशिंदे ही जब बेईमान नेताओं को चुनकर भेज रहे हैं और इन पर कोई पाप नहीं चढ़ रहा है तब हम भला क्यों पापी हुए! जहाँ यहाँ से लौटेंगे तो हरिद्वार में दो-दो लोटा गंगा जल डालकर पाप से उऋण हो जायेंगे!

आज सोशल मीडिया में हम सब खिसयानी बिल्ली खम्बा नोंचे की भूमिका में नजर आ रहे हैं! अपने प्रसिद्ध स्तम्भकार, बुद्धिजीवीवर्ग लोकसंस्कृति कर्मी वही खुन्नस मिटा रहे हैं कि छट पूजा पर तो राजकीय अवकाश घोषित हो गया है लेकिन हमारे त्यौहारों का क्या..! जिनके परिवारों ने सडक, दफ्तरों, गाँव शहरों में नारे लगाये कि “कोदा झंगोरा खायेंगे, उत्तराखंड बनायेंगे”! जिस राज्य के निर्माण को लेकर कई परिवारों के चिराग बुझे, लाठी डंडे गोलियां खाई! माँ बहनों की इज्जत आबरू लूटी गई अभी तक कई माँ बहनें केस की तारीखों पर उत्तर प्रदेश की अदालतों में चप्पल घिस रही हैं! हम तो सिर्फ वही हैं न अँधेरे को उजाला दिखाने वाले गंवार समाज के लोग..! जो इगास बग्वाल मनाते हैं! ऐसे गंवार जो विश्व भर की खुशहाली के लिए हरियाली पर्व मनाते हैं ताकि पर्यावरण संतुलन बना रहे! अरे यार हम तो उस विषधर बाबा की संताने हुई जो बर्ष का ओड़ना ओढे केदारनाथ में बैठा है! जिसका चूतिया उन देवताओं ने भी काटा जिन्होंने समुद्र मंथन का बिष तो उसे पिला दिया और अमृत कुंड में खुद जा बैठे!

पत्रकार मित्र शैलेन्द्र सेमवाल अपनी हृदय पीड़ा का बखान करते हुए लिखते हैं कि देहरादून में बिहारी महासभा के 10 हजार सक्रिय सदस्य हैं, उससे भी ज्यादा बड़ा संगठन है पूर्वा सांस्कृतिक व सामाजिक संगठन, इन्ही संगठनो के प्रयासों से छठ की छुट्टी की मांग पूरी हुई..,ये संस्थाएं लगातार ख़ुद की ताकत बढ़ाती जा रही हैं। दून में टपकेश्वर, मालदेवता, रिंग रोड, प्रेमनगर, नेहरुग्राम, ब्रह्मपुरी, क्लेमनटाउन, जीएमएस रोड में छठ की पूजाएं हो रही है। तिरवेंद्र जी का यह पहला- दूसरा ही छठ है, छुट्टी पूर्ववर्ती सरकार के प्रयास हैं। अब जब संस्थाएं प्रभावशाली होंगी तो असर भी वैसा ही होगा। गोरखा सुधार सभा भी दून की असरकारी संस्थाओं में एक है। पंजाबी महासभा, सिख बिरादरी भी अच्छा काम कर रहीं। जैन, अग्रवाल, वैश्य, कायस्थ , खुखरायण विरादरी के काम भी देखें होंगे। देहरादून दशहरे में आये होंगे तो बन्नू बिरादरी के दशहरा उत्सव परेड ग्राउंड में देखा होगा। अब आप खुद ही देखिए, दून में अखिल गढ़वाल सभा, गढ़वाल भ्रातृ मंडल, बदरी केदार समिति, राठ समिति, अलकनंदा-मंदाकिनी, क्षत्रिय सभा, भिलंगना विकास समिति, कुर्मांचल परिषद, नीति-माणा समिति, कुकरेती भ्रातृ मण्डल, गैरोला, कंडवाल आदि संस्थाएं हैं और देहरादून में गढ़वाली संस्थाओं के सबसे बड़े आयोजन कहे जाने कौथिग में कितनी भीड़ जुटती है.., ये उंगलियों पर गिने जा सकते हैं। कुर्मांचल परिषद की सक्रियता अपवाद है चूंकि इस एक संस्था ने अपनी कई शाखाएं बनाई है और पूरी ईमानदारी से कुमाउनी होली जैसे त्यार-बार मनाते हैं। जौनसारी-जौनपुरी संस्थाओं के कार्यक्रम में जाकर देखिए कैसे वहां अपने उत्सव मनाए जाते हैं। दूसरी तरफ हम अपनी ओर देखें, बग्वाल, एगास कितने लोग मना रहे हैं। छठ मनाई जा रही है चूंकि वो समाज सक्रिय है, जीवंत है..हमारी संस्थाएं या समाज क्या कर रहा है….आप खुद ही तय कर लो। आपको सिर्फ छुट्टियों से ही असर पड़ता है। रीतियां मिटने से नहीं????

प्रवीन भट्ट लिखते हैं- सभी उत्तराखंडवासियों को पहाड़ी पारंपरिक त्योहार छठ पूजा की बधाई……ऐसे ही हम अपनी परंपरा को जीवंत रखें ! पंकज महर का ट्वीट छट पर अलग ही है:- बेडूवा पकल बा बारामासा, कफलवा पकल बानी चैता, मेरी छमिया..तनिक आवा हमार पहार ! संजय बुडाकोटी लिखते हैं-करवाचौथ पर पूजे गए पहाडी उल्लू अब छठ पर सिर पर टोकरा और हाथ मे गन्ना लेकर जाते हैं कि नही…देखेंगे हम पहाड़ी झाँपू!

वरिष्ठ पत्रकार राजेन्द्र जोशी समीर शुक्ला की वाल शेयर करते हुए लिखते हैं- बिहारी बिहारी दिखना चाहता है, बंगाली को बंगाली होने पर गर्व है, पंजाबी को अपनी बोली और संस्कृति पर अभिमान है! लेकिन पहाड़ी अपनी अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर खोता जा रहा है
अपनी माटी -थाती को भूलता जा रहा है .
हम जब तक हम अपनी संस्कृति पर गर्व नहीं करेंगे उसको संजोकर आगे प्रस्तुत नहींं करेंगे
तो कोई क्यों भाव देगा ? (समीर जी की वाल से साभार)

पलायन एक चिंतन के संयोजक रतन सिंह असवाल लिखते हैं- रैवासी, प्रवासी और विदेशवासी उत्तराखंडियों को छठ की बधाई एवं शुभकामनाएं ….! छठमाई आपका कल्याण करे और सूर्य की कृपादृष्टि आप पर हमेशा बनी रहे । देवभूमि के जातक, बाबा केदार,धारीदेवी, माँ ज्वाल्पा,भैरवनाथ, श्री बद्रीनाथ सहित तपोभूमि के सभी देवी देवताओं से प्रार्थना करते है कि राज्य मे उपलब्ध सभी प्रकार संसाधनों पर आपका वर्चस्व हो ।

अरविन्द बडथ्वाल लिखते हैं- इनकी भावनाओं से खिलवाड जरुर करेंगे , इगास बग्वाल, घी संक्रांत आदि में भी अवकाश हो! पंकज नैथानी – इगास क्या फुलदेई संकट चौथ की भी छुट्टी होनी चाहिए! संतोष सिंह नेगी लिखते हैं कि 50 प्रतिशत उत्तराखंडियों को पता ही नहीं है कि इगास क्या होती है! बाकी बचे 25 प्रतिशत के ये नहीं पता कि किस ..! हाँ छुट्टी मिल जाए तो पिकनिक मनाने जरुर चले जायेंगे! महेश केष्टवाल लिखते हैं- लोहड़ी, करवाचौथ के बाद अब छट पूजा..! कृपया अपने त्यौहार भुला दो ! कहीं न कहीं हम भी जिम्मेदार हैं बधाई! दिनेश खर्ख्वाल लिखते हैं – 70 सूरजों को एक साथ अर्घ दें ! सब शुभ ही होगा! दीक्षा दुर्गापाल लिखती हैं- कुमाउनी व क्षेत्रीय त्यौहार की कभी छुट्टी नहीं देते हैं तभी लोग अपनी संस्कृति को भूलते जा रहे हैं और पाश्चात्य संस्कृति की ओर जा रहे हैं! उनके बिषय में कुछ नहीं होगा तो मनाएंगे क्या! राजेन्द्र जोशी लिखते हैं- जब पूरा राज्य बिहारियों की अंगुली पर नाच रहा हो तो ऐसे में छट की छुट्टी तो बनती है. ॐ शान्ति ॐ…मधुबन में राधिका नाचे रे!

बिपिन पन्त बोलते हैं कि – क्वी बात नि, सदनी नि रेंदी हे झुन्तु तेरी जजमनी! अखिलेश डिमरी का तो कहना क्या ! लिखते हैं- हररू हिलेला$$$$फेर तिररु हिलेला$$$, छठवा में देखी वोटवा त उत्तराखंड सररू हिलेला! #छट! इन्द्रजीत सिंह रावत इंदु लिखते हैं- उत्तरप्रदेश में छट पूजा मनाने वाले लोगों की संख्या उत्तराखंड की जनसंख्या से भी अधिक है परन्तु उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा छट पूजा पर अवकाश घोषित नहीं किया गया है ! और एक उत्तराखंड सरकार है जिसके द्वारा छट पूजा पर अवकाश घोषित किया गया है!

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