चोई…… यानि जौनसारी नहीं बल्कि कश्मीरी जादू! जो आपको सात पानी के नीचे भी ढूंढ निकाले!

चोई…… यानि जौनसारी नहीं बल्कि कश्मीरी जादू! जो आपको सात पानी के नीचे भी ढूंढ निकाले!

 
(मनोज इष्टवाल)
अजब गजब का संजोग है जब मैं 1999 में पहली बार जौनसार गया था तब जहाँ इस क्षेत्र को देखने का मन में बेहद कौतुहल था वहीँ धडकनों में अजब गजब का डर था! क्योंकि बचपन से ही हमें बताया जाता रहा है कि इस क्षेत्र में डायनें घूमती हैं जो जादूगरनी भी होती हैं! वे कभी भी कोई भी रूप धर लेती हैं! उनके पास ऐसा जादू होता है जिसका दुनिया में कोई तोड़ नहीं है!
लेकिन कोई भी यह नहीं बताता था कि हर वस्तु का तोड़ हर जगह होता है वरना उस स्थान पर जनमानस कैसे निवास कर सकता है! जब पहली बार यमुना पुल पार किया तो यमुना जी को प्रणाम कर प्रार्थना की कि मुझे जौनसार बाबर में जादूगरनी डायनों से बचा कर रखना ताकि उनका जादू मुझ पर न चले! ऐतिहात के तौर पर मैंने एक नमक का पूड़ा जेब में भी रख दिया था! लगभग तब से अब तक 18 बर्ष आते जाते हो गए लेकिन ऐसी कोई डायनें मुझे वहां बिचरती नहीं दिखी जिन्होंने मेरे प्राण हर लिए हों! हाँ एक जादू वास्तव में तमसा व यमुना से घिरे इस क्षेत्र में उस काल में बहुत देखने को मिला और वह था अतिथि सत्कार! मैं किसी एक का मेहमान बनकर अगर किसी के घर गया तो सारे गाँव का मेहमान हुआ! वहां निसंकोच उस काल में आप कहीं भी किसी के साथ भी बैठकर गपिया सकते थे लेकिन इन 18 सालों में बहुत से संक्रमण से जूझती इस संस्कृति में भी अतिथि देवो भव: की परम्परा शायद इसलिए समाप्ति की ओर है क्योंकि हम जितने भी बाहर से गए उन्होंने इस समाज पर कुठाराघात ही किया!

(चोई तन्त्र विद्या की तुमड़ी के साथ पंडित कान्तिराम डोभाल)
यहाँ के भल-मानस आज भी वही हैं सीधे और सच्चे लेकिन शिक्षा और बाजारीकरण ने नए युग में लोक संस्कृति लोक समाज व लोक सभ्यता के भाव बदल दिए हैं! यहाँ जादू बेशक रहा होगा अगर ऐसा नहीं होता तो उसके तोड़ में न यहाँ कश्मीरी विद्या होती न जोयसा या बागोई! आपको बता दें यहाँ बुक्साड विद्या का प्रचलन बहुत कम है जबकि मैदानी भागों व पहाड़ के अन्य हिस्सों में बुक्साड विद्या का ज्यादा प्रचलन है क्योंकि यह हमेशा औघड़ों की विद्या रही है! किसी को बकरा बना देना किसी को कुत्ता बना देना कहावतें आज जौनसार बावर के मित्र हमें ताने देकर सुनाते हैं ताकि वे हमारी मूर्खता पर हंस सकें! आखिर हंसे भी तो क्यों नहीं क्योंकि यहाँ ऐसा दिखने में नहीं मिला!

जो दिखने में मुझे मिला वह यह कि जैसे हर समाज एक दूसरे के अहित के षड्यंत्र रचता है वह यहाँ भी होता आया है! कई तांत्रिक जिन्हें यहाँ पंडत कहते हैं भले ही वे जाति से पंडित नहीं होते लेकिन अपनी तंत्र विद्या के इस्तेमाल से दूसरे को परेशान करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते! आपको कुछ खिलाकर परवश करना या अपने वश करना यह भी सुनाई देता था लेकिन मैंने इतने बर्षों में यहाँ यह सब नहीं देखा! डाग-डगुआ नाम समाज में प्रचलित जरुर हैं पर वे रहते कहाँ हैं यह मुझे भी नहीं पता!
बहरहाल इन सब बातों के तोड़ के रूप में यहाँ कुन्ना, मैफाटा, सुजौऊ व बावर के चिल्हाड गाँव के नरताईक कश्मीरी विद्या के आज भी ज्ञाता माने जाते हैं जो अपनी बागोई के पासों का इस्तेमाल कर जाने कैसे कैसे करिश्में कर दिखाते हैं! जिनके आज भी कई उदाहरण हैं!

कुन्ना गाँव जोकि खत्त बौन्दर में पड़ता है यमुना घाटी का वह गाँव है जहाँ डोभाल जाति के पंडितों में भी कश्मीरी विद्या बागोई व चोई का खूब ज्ञान है! चोई बिशेषत: या तो हिमाचल क्षेत्र के टोंस लगे क्षेत्र में प्रचलित रही या फिर यमुना क्षेत्र के जौनपुर रवाई व जौनसार में! ताजुब तो इस बात का है कि जाड़ी, बमणगाँव, कोटि पट्टी लालुर/इडालस्यूं में भी चोई (तुमड़ी लगाना) के तंत्र मन्त्र जानने वाले सब डोभाल ही हैं!
कुन्ना गाँव के कान्तिराम डोभाल आज भी चोई विद्या के पारंगत हैं और अभी युवावस्था में हैं! कहते हैं उनके पिताजी रणसिंह डोभाल पर इस चोई चलाने के कारण एक दरोगा ने अदालत में मुकदमा दर्ज कर दिया था लेकिन अंत में उसे स्वीकारना पड़ा कि गाड़ी के कागज़ उसी के घर हैं! हुआ यह कि किसी क्षेत्रीय वासी की गाड़ी चोरी होने के बाद वह व्यक्ति रण सिंह डोभाल या ओनके पिता मदन सिंह डोभाल की शरण में आये उन्होंने अपनी चोई विद्या के माध्यम से सूखी लौकी को भेज दिया लौकी जाकर सीधे दरोगा के सर पर जा टकराई जिसका साफ़ सा मतलब था कि गाड़ी के कागजों की चोरी सम्बन्धित दरोगा ने ही की, तब इस पर बेहद बबाल हुआ था. उनके पुत्र कहते हैं कि चोई तंत्र हम अपने क्षेत्र में तो चला सकते हैं लेकिन नीचे इसकी मनाही है जबकि यह विद्या बेहद शुद्ध मानी गयी है! चोई तंत्र ज्ञान आखिर है क्या आईये आपको बताये देते हैं-
एक सूखी लौकी के शीर्ष में एक स्थान पर छेद कर उस पर उड़द दाल (जिसे स्थानीय भाषा में मास कहते हैं) अभिमंत्रित कर डाली जाती है जिसे अभिमंत्रित करते समय लगभग ऐसा कुछ मन्त्र बुदबुदाया जाता है-
काली..काली महाकाली ब्रह्मा की बेटी इंद्र की साली…!
फिर बांस से उस छिद्र को बंद कर दिया जाता है व जिसका धन या कोई भी वस्तु खोई या चोरी हुई  है वह  तुमड़ी उसके हाथ में बाँध दी जाती है! फिर मन्त्र अभिमंत्रित किये जाते हैं. तुमड़ी हिलने लगती है व स्वयं चलने लगती है. हाथी के समान ताकत वाला भी व्यक्ति क्यों न हो अगर तुमड़ी चल दी तो उसकी हैशियत नहीं है कि वह तुमड़ी को रोक सके. इसलिए जहाँ जहाँ भी खाई या चट्टान का रास्ता होता है और तुमड़ी आगे चल रही है तब अन्य लोग उस व्यक्ति को रस्से से जकड़ लेते हैं ताकि वह खाई में न गिरे! यह तुमड़ी आपका गढ़ा धन, खोया धन, आपके घर मकान में किया गया कूट कबट सब ढूंढ निकालती है!
पंडित कान्ति राम कहते हैं कि चोई विद्या किसी का अनर्थ नहीं करती बल्कि इसके डर से चोर व पापी डरने लगते हैं! कई इर्ष्यावश किसी के अहित के लिए शमशान घाट से औघड़ विद्या के माध्यम से वहां मुर्दे की हड्डी, मुर्दे की राख, मसरू की टाली इत्यादि लेकर आ जाते हैं व अमावस्या की रात इसे उस मकान घर या अन्य स्थान पर गाड़ या छुपा देते हैं! यह विद्या इतनी खतरनाक होती है कि ये चीजें धीरे धीरे जमीन की गहराई में धंसनी शुरू हो जाती हैं व जितनी गहराई में जाती रहेंगी उस परिवार का उतना अहित करती रहेंगी! यह तुमड़ी उसे भी ढूंढ निकालती है. कई जगह खोया धन भी प्राप्त होता है! दर्शन डोभाल बताते हैं कि उनके डेढ़ तोले की अंगूठी भी इसी चोई तंत्र से प्राप्त हुई है!
कान्तिराम कुछ प्रेक्टिकल करते उस से पहले ही मैंने उनसे चोई तंत्र विद्या के कुछ मन्त्र सुनाने को कहा तो वे बोले ये बोलते समय हिंदी जैसे लगते हैं लेकिन लिखने में कश्मीरी विद्या के हैं . यह जो बागोई उनके पास हैं वह लगभग एक हजार साल पुरानी दुर्लभ पुस्तक वह मानते हैं!
चोई तंत्र के कुछ मन्त्र इस प्रकार से कान्त्रिराम डोभाल अभिमंत्रित करते हुए दिखाई दिए जो शुद्ध हैं कि नहीं मैं नहीं जानता क्योंकि सुनते वक्त कहीं न कहीं मुझसे गलती जरुर हुई है इसलिए हे विद्या मुझे हर तरह से माफ़ करना!
आगळ क्वांरी, ब्रह्म चारी, डीगर-डीगर नाम! बेलण कूड़ा मेसर नाम !सावण भादौ दुलन्त लागा, नीर बण कैलाश चलण लागा! जो न माने मेरे गुरु की आण, आवा देवा करूँ तुम्हरी सेवा,  लीलो घोड़ा लीलो प्राण….!तब चलो मसाण टीको राण. कोराण तुमड़ी चलने लगी, पाटण धागा स्वीने लगी! हल चले मल चले,  चल बे तुमड़ी चल बे चल! तीखी चल तुरंत ही चल,  मुर्गे जैसी ढोके चल..! स्वर्गे जैसी लोके चल! गणादी के तू ठाने चल, चोर के तू मुंडे फुट, आगे तुमड़ी पीछे सर…. बैठजा तुमड़ी चोर के घर!!
पंडित कान्ति राम डोभाल का कहना है कि इसका मन्त्र काफी लंबा है लेकिन बेहद कारगर है! वे इसे अपना पैत्रिक कार्य व जीवन यापन का जरिया मानते हैं! वे कहते हैं यह वह अपने बच्चों को भी सिखायेंगे! इस से दो फायदे होंगे एक तो हमारी तंत्र विद्या जीवित रहेगी दूसरी यह हमारी पीढ़ी-दर- पीढ़ी आमदनी का जरिया बनेगी!
यकीनन ये तंत्र विद्याएँ बेहद असाधारण हैं इन्हें जितना हल्का हम समझते हैं उतनी हैं नहीं!  मुझे ध्यान है कि पर्वत क्षेत्र के लिवाड़ी गाँव वासी रघुवीर सिंह जोकि लगभग 80 बर्ष की उम्र के हैं वह भी ऐसी कई तंत्र विधाओं के बड़े जानकार माने जाते हैं व उनके पास हिमाचल ही नहीं उत्तराखंड के भी कई मंत्री, संतरी, व अधिकारी  तब शरण में जाते हैं जब वे बेहद मुसीबत में होते हैं! हाल ही में एक नेताजी चुनाव लड़ने से पहले व चुनाव जीतने के बाद भी उनकी शरण में गए. ये अपने तंत्र बल से कड़ाई चलाते हैं! गोबर के घेल्टे आपस में लड़ाते हैं और सटीक जानकारी देकर कई दोष निवारण भी करते हैं! इसलिए यह कहना कि हम तंत्र शास्त्र से नहीं जुड़े हैं तो गलत होगा! ज्ञात हो कि रघुवीर सिंह की बहन टिहरी राजपरिवार में ब्याही गयी है।
बहरहाल कुन्ना गाँव के कान्तिराम डोभाल जी का चोई तंत्र विद्या बेहद आश्चर्यजनक व अजब गजब है!

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