चिरबटिया का शिल्पी बैशाखी लाल की आपबीती ….! बंद मुट्ठी के धन से जीविकोपार्जन करना मुश्किल था इसलिए कदम आगे बढे तो बढ़ते गए!
चिरबटिया का शिल्पी बैशाखी लाल की आपबीती ….! बंद मुट्ठी के धन से जीविकोपार्जन करना मुश्किल था इसलिए कदम आगे बढे तो बढ़ते गए!
(मनोज इष्टवाल)
मैंने रिंगाल के काम में हाथ आजमाया तो उसे भी बेहद परिपूर्णता के साथ पूरा किया! जब देखा इसका चलन घट रहा है ! राजमिस्त्री का काम करना शुरू कर दिया! पत्थर तरसने से लेकर लकड़ी की हर संभव नक्कासी, तिबारी निर्माण से लेकर काष्ट की हर कला जो एक सुगठित शानदार घर की बुनियाद कही जा सकती है! पूरे मनोयोग से मेरे तरासे पत्थर व काष्ठ की नक्कासी आज भी बड़े बड़े भवनों की शान बढ़ाती नजर आती है लेकिन बदले में हमेशा बंद मुट्ठी में मिला धन घर जाकर देखा तो परिश्रम से कई गुना कम निकलता था! कभी किसी को ये नहीं बोला कि कम है या ज्यादा ! घर गृहस्थी की जिम्मेदारी में लगा कि यह बंद मुट्ठी तो ख़ाक की ही निकलेगी इसलिए कार्यक्षेत्र बदल दिया और फर्नीचर मार्ट की दूकान चलाने लगा ! साथ ही पर्यावरणीय सुरक्षा हेतु जंगल लगाने शुरू कर दिए! बस एक पहल क्या शुरू हुई बढती गयी और फिर इसने एक समाजिक संस्था का नाम ले लिया जिसे नाम दिया गया जन विकास संस्थान चिरबटिया! चंद शब्दों में ही अपने सम्पूर्ण जीवन की स्क्रिप्ट का खुलासा करने वाला यह शख्स बैशाखी लाल आज प्रदेश के उन शिल्पियों में शुमार है जिन पर नाज किया जा सकता है!
चिरबटिया जाने के लिए आपको देहरादून टिहरी घनशाली तक का सफर तय करना होगा जहाँ से 17 किमी. आगे चिरबटिया आता है! बैशाखी लाल कहते हैं पर्यावरण क्या होता है और पर्यावरणीय शुद्धता क्या होती है यह आकर हमारे चिरबटिया से जानिये! हमने इस दौरान बर्ष 2006 से अब तक लाखों पेड़ लगाए हैं! यही कारण भी था कि हमें जन विकास संस्थान संस्थान की स्थापना करनी पड़ी! क्योंकि बेतहाशा पर्यावरणीय असंतुलन पहाड़ की तरफ भी तेजी से बढ़ रहा है इसलिए हमारी सोच है कि पहाड़ का पानी जवानी का अगर पहाड़ में ही ठीक से प्रयोग कर दिया जाय तो स्वरोजगार के कई साधन सुलभ होंगे! उन्होंने बताया कि ऐसा नहीं है कि शिल्प पहाड़ से गायब हो गया है! आज भी हर तरह का शिल्पी पहाड़ में मौजूद है लकिन उसे प्रोत्साहित कौन करे? सबसे बड़ा प्रश्न यही है!
बैशाखी लाल की माने तो वे विगत 5 बर्षों में लगभग 36 हजार आधुनिक हल अपनी संस्था के माध्यम से पहाड़ी कृषकों को दिला चुके हैं ! यह हल आधुनिक कहा जा सकता है क्योंकि इसमें उन्होंने कई नए प्रयोग किये हैं! पुराने लड़की के हल की अपेक्षा यह आधुनिक इस्पात निर्मित हल जुताई करने में बेहद सरल, हल्का व 40 प्रतिशत अधिक क्रियाशील है क्योंकि पुराने हल से खेत के छोर. कोनों की जुताई अक्सर छूट जबकि इस से यह समस्या हल हो गयी है व कृषक का लगभग 85 प्रतिशत कुदाल से खोदने का श्रम कम हुआ है! वहीँ दूसरी ओर पुराने लकड़ी के हल के पत्थर से ठकरा कर टूटने की समस्या बनी रहती थी जबकि इस हल के पत्थर से टकराने पर बैल स्वय ही रुक जाया करते हैं! यह 15 बर्ष तक खराब नहीं होता और इसका वजन लकड़ी के हल से लगभग 6 या 7 किग्रा. कम है!
बैशाखी लाल कहते हैं शिल्पी का जीने का माध्यम सिर्फ उसके परिश्रम की कमाई होती है लेकिन यह आश्चर्यजनक है कि इस बर्ष सरकार ने शिल्प उद्योग को प्रमोट करने की जगह इसको डिमोलाइज कर दिया है! क्योकि जहाँ विगत बर्षों में औसतन 7 हजार हल मासिक बिकते थे इस बर्ष अभी तक 800 हल ही सरकार की ओर से बिके हैं जिसका कारण गरीब किसान ही बताये जाते हैं क्योंकि अब खेतिहर के पास आधुनिक हल के रूप में डीजल पेट्रोल से चलते वाले हल आ गए हैं लेकिन पहाड़ का गरीब कृषक जो एक मामूली इस्पात निर्मित हल नहीं खरीद सकता वह भला इस हल को कैसे खरीद सकेगा! आज भी गरीबों की कृषि बैल और इस्पात निर्मित या पुराने ढर्रे के हलों से चलती है !
सचमुच शिल्पी की पीड़ा को समझने के लिए सरकारी तंत्र को शिल्पी की तरह ही सोचने की आवश्यकता है क्योंकि नए परिवर्तनों में जहाँ सरकारी इमदाद से मिलने वाले हल की राशि पहले सरकार चुका देती थी और कृषक उसकी भरपाई धीरे-धीरे करता था आज सरकार की नयी नीति के अनुसार कृषक को स्वयं हल खरीद का भार उठाना होगा और यही कारण भी है कि जो हल पहले 7 हजार के आस-पास सालाना बिक्री हो रहे थे वे अब 800 पर आ गए इस से नुक्सान उन शिल्पियों के स्वरोजगार का भी हुआ है जो मेहनत कर अपनी शिल्प कला से ऐसे उत्पात बना रहे थे!
बहरहाल बैशाखी लाल एक ऐसे शिल्पी हैं जिन्होंने बंद मुट्ठी खोलकर इस सबका बाजारीकरण कर नाम कमाया और पैंसा भी लेकिन उस आम शिल्पी का क्या जिसके लिए वायदे तो बहुत हैं लेकिन धरातल पर कुछ नहीं! नाबार्ड कहता है कि वह हर सम्भव शिल्पियों के लिए केंद्र पोषित योजनाओं के लिए खड़ा मिलेगा लेकिन क्या वह शिल्पी जो अनपढ़ है वह नाबार्ड के कागजों की भाषा समझ पायेगा यह यक्ष प्रश्न ज्यों का त्यों खड़ा है!