चिपको दिवस ! कामरेड गोबिंद सिंह, चिपको महिला गौरा देवी को किया याद

चिपको दिवस ! कामरेड गोबिंद सिंह, चिपको महिला गौरा देवी को किया याद
देहरादून 25 मार्च (हि.डिस.)
26 मार्च 1974 को चमोली ज़िले के जोशीमठ ब्लाॅक में स्थानीय जंगलो की नीलामी के विरोध में कामरेड  गोविद सिंह की जंगलों को बचाने की पहल शायद रैणी गांव की माहिलायें को समझ आ गयी थी कि अगर जंगल नही तो नही पशु नही खेती नहीं पानी नही हवा नही वन्य जीव नही अर्थार्त गाँव की परिकल्पना ही खत्म हो जायेगी और लगभग 27 माहिलाओं बाली देवी बसंती देवी, वीरा देवी और अन्य ने जंगल को बचाने का फैसला किया और इस ये तय हुआ कि पेडो पर चिपकना होगा . भले ही तमाम साथियो का सहयोग हो लेकिन उस नेतृत्व को नमन ज़िसने वनो की तरफदारी इस धरा को सिखा दी और वो नाम था “गौरा देवी” !
गौरा देवी के नेतृत्व में रैणी गॉव की महिलाओं का यह प्रयास आज चिपको के रूप में सिर्फ भारत बर्ष में ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्ध है. हजारों हजार पेड़ों को बचाने वाली इन महिलाओं मातृशक्ति को आज भी याद किया जाता है जिन्होंने पहाड़ और पर्यावरण को बचाने के लिए जाने कितने कुंठाएं झेली कितने संघर्ष किये.
चिपको दिवस  पर “चकबंदी का वन एवं वन्य प्राणियों पर प्रभाव” बिषय पर चकबंदी आन्दोलन को पुर्नजीवित करने वाले गणेश सिंह गरीब को याद करते हुए कपिल डोभाल ने कहा कि चिपको आन्दोलन के इन प्रेणता को जीते जी उनका हक अधिकार तो मिला ही होगा लेकिन अपने इस आन्दोलन को जन जन तक पहुंचाने वाले ये लोग आज भी हमारे बीच जिन्दा हैं और ज़िंदा है वह चिपको मुहीम जिसने हमें प्रकृति के रूप में शुद्ध पर्यावरण और पेड़ पौधे दिए है. उन्होंने आवाहन करते हुए कहा कि उन्हें उम्मीद है कि आने वाला कल उनका होगा जब पहाड़ को दशा और दिशा देने के लिए चकबंदी का बिगुल बजेगा और लोग इसे पूरी इमानदारी से अपनाएंगे ताकि पहाड़ बच सके व पलायन रुक सके. बंजर खेतों में हरियाली की फसल उगेगी तभी हमारे मनोरथ पूर्ण होंगे.

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