घास के प्रकार और घास पर रिसर्च के लिए रिसर्च टीम हिमालयी क्षेत्रों का रुख करे।
घास के प्रकार और घास पर रिसर्च के लिए रिसर्च टीम हिमालयी क्षेत्रों का रुख करे।
(मनोज इष्टवाल)
इसमें कोई शक नहीं क़ि उत्तर प्रदेश को पहली बार समाजवाद के रूप में समाजवादी पार्टी ने एक ऐसा मुख्यमंत्री दिया है जिसके दामन के धब्बे अभी तक नहीं दिखाई दिए। पाक साफ छवि वाला यह व्यक्तित्व अखिलेश यादव अगर उस गुंडई पर भी लगाम लगा देता जो समाजवादी पार्टी के सत्ता में आते ही होनी शुरू होती है तो इसमें कोई असमंजस नहीं होता क़ि यू पी पर पुनः समाजवादी पार्टी का कब्जा होता लेकिन चुनाव दरवाजे पर हैं और अब देर हो चुकी है।
कल एक जनसभा में किसानों को संबोधित करते हुए जब अखिलेश यह कह रहे थे क़ि एक टीम या एन जी ओ घास पर ही रिसर्च कर रही है । आप सोच भी नहीं सकते कि घास पर भी रिसर्च हो सकती है।
मैं तब दुकान में सामान खरीद रहा था और बस इतना ही सुन पाया लेकिन घर आने के बाद जब अखिलेश के वे शब्द याद आये तब विधान सभा सत्र गैरसैण से लौटते वक्त अपनी मातृशक्ति की वह छवि याद आ गयी जो अपने ही कद के घास के बोझ को ढो कर अपने गॉव की ओर बढ़ रही थी वो भी चेहरे पर थकान का नामोनिशान नहीं था।
ऐसे में मुझे भी अपना दिमागी कम्प्यूटर कई साल बैक करना पडा। गॉव के खेतों से लेकर सरहदों पर स्थित पेड़ व तीखे ढालों पर उगी घास की प्रजातियां याद करने के लिए मैंने कलम उठाई और लिखना शुरू कर दिया पहले डळ घास- गींठी, भ्यूंलू, तुसरु, छँछरी, असींन, सांधण, पुलऊ, फरसेई,धौडु, रवीणा, बैरूडु, बुदलू, ख़ैणा, बेडु, तिमला, पय्याँ, कुर्री, खडीक, मालु, ग्वीराळ, बांस, बेडु, कंदला,बाँझ, धौलु,टिमरिया व पत्तघास-ऊळऊ, तछील, मुसलू, धिवड़ा, मर्च्या, कुम्रिया, लिंजडु, बबलू, रैम्वडू, अल्मोडु, पराळ, खगसा, चुपल्या, नलौ, चिलौ इत्यादि दर्जनों घास की प्रजातियां याद आ गयी।
ये तो सिर्फ आधे घण्टे की मेमोरी फीड बैक है अगर इस पर सचमुच रिसर्च करनी हो तो हिमालयी क्षेत्र की माँ बहनों से जाने कितनी और प्रजातियां यहाँ घास की मिल जाएंगी।
आईए हम भी हिमालयी प्रदेश के जनधन, गौ धन, कृषिधन के लिए ऐसी ही घास की विभिन्न प्रजातियों पर शोध कार्य करें ताकि विदेशों से गेहूं के साथ यहाँ भेजी गयी कई किस्म की बेकार वनस्पति(लैंटना, जंगली पालक, जंगली कुर्री इत्यादि) से उनका संरक्षण किया जा सके।