गढ़-कुमाऊ में प्रचलित थे सौ से अधिक आभूषण, जब पूर्व प्रधानमन्त्री इंदिरा गाँधी ने कंडोलिया मैदान (पौड़ी) में महिलाओं के आभुषणो की घमक और चमक देखी तो दंग रह गयी थी…!

गढ़-कुमाऊ में प्रचलित थे सौ से अधिक आभूषण, जब पूर्व प्रधानमन्त्री इंदिरा गाँधी ने कंडोलिया मैदान (पौड़ी) में महिलाओं के आभुषणो की घमक और चमक देखी तो दंग रह गयी थी…!

(मनोज इष्टवाल) 
गढ़वाल मंडल के लिए चुनाव से ऐन पूर्व बिशेष पैकेज की घोषणा करने पहुंची  तत्कालीन प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी जब सन 1978 में पौड़ी के विशाल कंडोलिया मैदान के मंच पर पहुँची और खचाखच भरे मैदान में सोने से लदी महिलाओं के जेवरों पर उनकी नजर पड़ी तो उन्होंने मंच से कहा कि कौन कहता है पहाड़ में गरीबी है जब एक-एक महिला तीन-तीन किलो सोने से लदी हो तो वहां गरीबी कैसे हो सकती है? 


पूर्व प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी का तर्क भी अपने हिसाब से सही था क्योंकि उस काल में उन्होंने मैदानी क्षेत्र की भूखमरी व गरीबी मंचों से देखि थी. अब गढ़वाल में आकर धमकते चेहरों में सजी सोने चांदी की सजावट आखिर उनके दिल को भी उद्वेलित करती ही करती!
आईये इन्हीं आभुषणो से आपको रूबरू कराएं. आप भी जानकर दंग रह जायेंगे कि गढ़ कुमाऊ में प्रचलित आभुषणो की संख्या सौ से अधिक है. गढ़वाल-कुमाऊँ में प्रचलित महिला आभुषणो की अगर बात की जाय तो उनमें चन्द्राहार, शीशफूल, कांडूटी, झुमके, सिरबंदी, कुंडल, तुंगल, कर्णफूल, कांडूडी, उतराई, कंठी, कांगुटा, पोलिया, लच्छा, सौन्ठा, पेठा, लपचा, झांझर, मुनडी, मुंदडी, पौंची, स्यूंदाड, छुपकी,चम्पाकली, लाकेट (नया आभूषण) स्युणी, मटरमाला, कलदारमाला, छयमनंग, सांगल, झप्या, हंसुली, धगुली, पोटा, सुत्ता, पाटी, नंगचा, मुर्खली, बीड़ा, पट्टीदारचूड़ी, मुर्की, तिल्लारी, छडके तिल्लरी, फूली, नथ, कंठा, नौगेटी, बाला, कमरबंद, मांगटिक्का, कंगन, मडवडी, बुलाकी, बुलाक, बिसार, जौ, चन्दनहार, पाउजू, चन्द्रमा, जंतर, नकचुंडी, तिमौणी, मनका, सूच, सुर्ताज, रतदाणी, लालदाणी, चमकदाणी, सतलड़ी, गुलोबंद, टिहरी नथ, चरेयु, पांसों की माला, पत्थरमाला, कनक्वारी, झुल्सा, दांतक्वोन्या, चिमुटी, झंवरी, पट्टबंदी, बिछुवा, पाजेब इत्यादि और ऐसे ही कई अन्य प्रचलन में रहे ! जिनमें कई आज भी दुर्लभ आभूषणो की श्रेणी में आते हैं. कुमाऊँ गढवाल में पहने जाने वाला चन्दन हार पहला व जौ हार (जऊहार ) दूसरा हुआ यह जानकारी मुझ तक पहूँचाने के लिये रेखा पंचभैय्या जी का हार्दिक आभार ! जौ हार देखने के लिये आप मोबाइल पर फोटो जूम करके देखें यह हार मंगल सूत्र की तरह का होता है ज़िसमें मोतियों के साथ सोने की जौ टाईप लटकन पिरोई जाती है ! इसे कुमाऊ में चम्पाकली के नाम से भी जाना जाता है इस आशय की जानकारी हमें मंजू चौधरी जी से प्राप्त हुई. इसका निर्मांण पिथौरागढ़ की जोहार घाटी से शुरू माना जाता है जबकि चन्दनहार महाराष्ट्र के राजघराने की पहचान रही और वहीं से विकसित होकर पूरे भारत बर्ष में प्रसिद्ध हुई वहीँ रेखा पंचभैय्या कहती हैं कि  इसे गुजरात में झुमका कहते हैं जबकि कानों में पहने जाने वाले आभुषण को वेदला नाम से गुजराती संबोधित करते हैं लेकिन इसे भी गढवाल के चन्द्राहार से चुराया गया मोडेल कहा जाता है क्योंकि यह हार यहां द्वापर में विकसित किया गया था ऐसा माना जाता है इसे गढ कुमाऊँ में चन्द्राहार या चन्द्रिका नाम से पुकारा जाता रहा है !


अंतिम जो माला आप को दिखाई दे रही है उसका प्रचलन कुमाऊं के साह चौधरी परिवारों में बहुतायत रहा है. इसे कुमाऊं में मंतरमाला के नाम से जाना जाता हैं. जिसमें गोल सोने के दानों के मध्य छोटे छोटे स्वर्ण दाने या फिर नगीने पिरोये जाते हैं इसे जंतरमाला या फिर मंतर माला के नाम से जाना जाता है. इसे औरत व मर्द दोनों ही पहनते हैं
वहीँ मुंबई में पेशे से इंजीनियर मनिषा चौधरी जोशी जोकि नैनीताल से हैं, ने भी कुमाऊँ में प्रचलित कुछ आभूषणो की फोटो शेयर की हैं ज़िनमें कान के झुमको के आकार के आभूषण ज़िन्हे कुमाऊँ में गोस्से कहते हैं, जऊमाला, पाऊँची, हाथी कंगन, दोहरगागरी (महिला), दोहर गागरी (पुरूष ) इत्यादी शामिल हैं ! वहीँ अल्मोड़ा से अंजू साह बताती हैं कि कुमाऊ के बड़े घरानों में बिशेषत: नैनीताल में तीन लड़ी, पांच लड़ी व सितारामी तथा रानीहार नामक भारी भरकम सोने के जेवर पहनने का रिवाज पौराणिक समय से चला आ रहा है और आज भी बड़े बड़े घरानों में इसका रिवाज है, लेकिन वर्तमान परिवेश के बदलते ही लोगों ने आभूषणों की शक्ल बदलनी शुरू कर दी क्योंकि तीन लड़ी, पांच लड़ी या सितारामी नामक एक-एक जेवर लाखों की कीमत में बनता है. वहीं देहरादून में रह रही पौड़ी जनपद के गगवाड़स्यूं बलोड़ी गॉव की श्रीमति सरोज बडथ्वाल ने गढवाली मूल में प्रचलित आभूषणो में बढौत्तरी करते हुये इनमें बुजनी(कानों में), बीडीबालैय्य (माथे के चारों ओर), झिंवरा, छड्डा, अनोखी, ईमर्ती (पैरों में), शिशफूल (जूड़े में), स्वल मुंदडी (हाथ के अंगूठे में) इत्यादि और आभूषणो को जोडती हैं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *