गढ़वाल का प्रतिनिधित्व करने वाली आखिर ये संस्थाएं किस काम की, जिन्हें वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली भी याद नहीं..!

(वेद विलास)

आखिर ये संस्थाएं किस काम की। कहने के लिए गढवाल सभा 1952 की है लेकिन किस काम की? साल में पांच छह दिन का गाना बजाना नाच और बस….। आज पेशावर कांड के नायक वीर चंद्र सिंह गढवाली की जयंती है। मगर आपको यहां के भवन में न उनकी तस्वीर मिलेगी न उनसे सम्बन्धित कोई लिटरेचर। ना ही कोई इनके नाम का आयोजन शायद………! आखिर किस तरह संजो रहे हैं हम पहाडो की संस्कृति को इसकी धरोहर को। आखिर किस-किस लिए हैं ये। अक्टूबर आया नहीं कि सबने कुर्ते पहने बडे बजे बैज लगाए और हो गया बेडू पाको बार मासा। बस हो गए कुछ गाने कुछ बजाने कुछ नाच। कुछ बडे कलाकार अपनी दक्षिणा पाकर संतुष्ट तो कुछ नेता आवभगत से संतुष्ट और पहाडियों का क्या…..! गाना चला दो झूमते रहते हैं रात एक बजे रात्री तक और हो गई सेवा गढ-कुमौ की।

क्या इतने उद्देश्य के लिए खडीहैं इस तरह की संस्थाएं । अगर नाच गाना भर उद्देश्य है, पक्ष-विपक्ष नेताओं की आवभगत ही उद्देश्य है तो ऐसी संस्थाओं का क्या उपयोग। वही कलाकार, वही कवि वही लोग । कितना अजीब है कि शहर की संस्थाएं उस विख्यात सैनानी के नाम एक आयोजन तक नहीं कर पाती। कहने के लिए हम कहते रहते हैं गैरसैण- गैरसैण..! लेकिन वास्तव में हम अपने गढ कुमौ का कर क्या रहे हैं? एक तरफ हम कहते हैं कि बाहरी लोग यहां आकर यहां की भावनाओं का लिहाज नहीं करते, लेकिन खुद हमारी प्रवृत्ति पर हम सवाल क्यों नहीं कर पाते कि क्या मिले किस तरह मिले।

दून की गढवाल सभा सोचे तो सही कि आखिर उनका योगदान किस तरह का है? एक भवन मिला है, पैसा भी मिल जाता है। न कोई पूछने वाला, न कोई जानने वाला। सबके ऊंचे संपर्क लेकिन कौन सुध ले कि संस्था वास्तव में किन उद्देेश्यों के साथ खडी है। ङर की खेती जैसी हो गई है इस तरह की संस्थाएं। लगता है क्या इन्हें देखकर कि समाज को जोडे हुए हैं ये।

बस कुछ बच्चों को अच्छे नंबर के नाम पर पैंसिल बाक्स इनाम में पकडा देना, संस्था के नाम पर प्रमाणपत्र दे देना। जी नहीं इन बच्चों को पैसिल बाक्स नहीं अपनी धरोहर संस्कृति और कला जीवन का ज्ञान चाहिए। नाचने ठुमकने और अतिथियों को पुष्पहार के वीडियो पहाडों का परिचय भर नहीं। कहीं से भी नहीं लगता कोई संस्था किसी बडे उद्देश्य के लिए खडी है। कब तक चलता रहेगा यह…..। क्या वास्तव में ऐसी संस्थाओं का चलते रहने का कोई कारण भी है। और कोई नहीं गढवाल सभा जैसी संस्थाओं के लोग ही बताएंगे कि आखिर माजरा क्या है! आखिर ठीक-ठाक पैसा मिल जाता है सरकार से।

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