ग्वालियर की महारानी ने बनाया है बदरीनाथ का सिंहद्वार!

“”” बदरी सदृश्यं भूतो न भविष्यति …..
**श्रृंखला -4 **

वरिष्ठ पत्रकार क्रान्ति भट्ट की कलम से –
नारायण पर्वत पर स्थित भगवान बदरी विशाल के मन्दिर की कई विशिष्टताऐं हैं। मन्दिर का विराट और अदभुत शिल्प वाला सिंहद्वार का आकर्षण रह एक को आर्कषित करता है ।कहा जाता है कि सिंहद्वार को ग्वालियर की महारानी अहिल्याबाई जी ने भी बनाया ह सिंहद्वार पर गढवाल के महान कलाकार और टेहरी नरेश के राजदरबार से सम्मानित चित्रकार मोलाराम की चित्रकारिता के भी दर्शन होते है।।।
” पवित्र अलकनन्दा नदी भगवान श्री बदरीनाथ के चरण छूती बहती है। शास्त्रों में अलकनन्दा को विष्णु पथी भी कहा गया है ।

“” क्यों पडा बदरी नाम !
इस पवित्र धाम का नाम हर युग में अलग अलग नाम से उच्चारित किया गया ह मान्यता है कि प्रभु ” श्री हरि ” इस स्थान की पवित्रता और साधना के लिए अत्यंत शुभ होने के कारण यहाँ पर साधना . तप के लिए आये थे भगवान कठिन तप में थे। तब माँ श्री लक्ष्मी जी ने बेर का वृक्ष बन कर भगवान और अपने पति के लिये छाया दी । तभी से इस भूमि को बदरी वन भी कहा गया । संस्कृत में बदरी को बेर भी कहा जाता है ।
“” श्री घंटाकर्ण महाराज ।
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हर भूमि के स्थानीय या भूम्याल देवता होने की मान्यता पहाड़ की आस्था का प्रतीक है । ” श्री घंटाकर्ण महाराज ” यहाँ के भू म्याल देवता हैंं। मन्दिर परिक्रमा स्थल और भारत के आखिरी गांव बदरी नाथ के निकट माणा में भूम्याल घंटाकर्ण जी का सुन्दर विग्रह है । माणा में तो उनका मंदिर भी है ।घंटाकर्ण जी के बारे में अदभुत कथा है । वे भगवान शिव के अत्यंत भक्त हैं । शिव के अलावा किसी भी प्रभु का गुणगान नहीं सुनते थे इस लिए दोनों कानों में बडे बडे घंटे बांध दिये । पर भगवान शिव ने बडे प्रेम से . स्नेह से जब अपने इस प्रिय भक्त को कहा ” कि ” श्री हरि बदरीनाथ भी मेरा ही स्वरूप है । इनकी अर्चना वन्दना भी मेरी ही स्तुति है । तब घंटाकर्ण जी महाराज तृप्त हुये । और भगवान बदरी विशाल ने कहा आप मेरे ही सानिध्य में रहोगे । तब से मन्दिर परिक्रमा स्थल पर घंटाकर्ण महाराज विराजमान हैं पूजे जाते हैं
*** बदरी नारायण पर और अन्य मान्यता तथा यहाँ की विशिष्टता …. शेष लगातार जारी
* यदि प्रभु की आज्ञा हुई तो …
जय बदरी विशाल

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