गौ बटिन मसाण भी लेफ्ट हो गये हैं बल । हमुन सूणी देरादून शिफ्ट हो गये हैं बल ।

पलायन की परिभाषा समझाती पहाड़ी की इस बेटी की यह कविता जीवन-दर्शन देती लगी! एक ऐसी उपासना जिसने सचमुच ग्रामीण परिवेश के उस हर पहलु को जिया है जिसकी खैरगाह वह अपनी पंक्तियों में पुरोती हमेशा ही नजर आती हैं.  उपासना सेमवाल के शब्द जहाँ ब्यंग्य की भाषा में ह्रदय पटल में उतरते हैं वहीँ उनके शब्द उस अन्तस् को जरुर झकझोर देते हैं जिसने पहाड़ को पहाड़ के हिसाब से जिया है.

पलायन पर जहाँ आजतक सभी सरकारें हवाई किले बनाती नजर आ रही हैं वहीँ पलायन नामक भूत को किस तरह उसने ऐसे मरघटों तक पहुंचाया जिन्हें महानगर कहते हैं और जहाँ इंसानियत का वह स्वरूप बेहद डरावना है जिस से वह भूत उकताकर वापस अपने पहाड़ लौट जाता है.
आपको सलूट उपासना !

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