गोल्जू देवता का जन्म स्थान धवली धूमागढ़ (धुमाकोट) गढ़वाल या कुमाऊ नहीं बल्कि बैतडी जिला नेपाल में है..!

गोल्जू देवता का जन्म स्थान धवली धूमागढ़ (धुमाकोट) गढ़वाल या कुमाऊ नहीं बल्कि बैतडी जिला नेपाल में है..!


(मनोज इष्टवाल)
कई बार हम उसी का अनुशरण कर लेते हैं जिसका न आदि है न अंत..! मैंने गोल्जू पर लिखे गए साहित्य को विस्तार से पढ़ा तो पाया किताबों में धौली -धुमाकोट पिथौरागढ़ में बताया गया.फिर ध्यान आया कि पिथौरागढ़ में धौली गंगा कहाँ से आ गई. फिर शोध किया उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल के धुमाकोट जा पहुंचा वहां धौली दूर दूर तक नहीं है. न उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल के इतिहास में धौली धुमाकोट कोई राज रहा है.

कुमाऊ के इतिहास में भी झलराई और न ही हळराई का कहीं वर्णन है…हाँ पुराणों में शायद इसका कहीं वर्णन अवश्य मिलता है. अब नामों के हिसाब से भी झलराई या हळराई शब्द में कुमाउनी या गढ़वाली का आभास कम और नेपाली होने का पूरा प्रमाण है.
कुमाऊ अल्मोडा जिले में शोध के दौरान मुझे पता लगा कि दन्या नामक गॉव में कोई इसकी जागर को जानता है. मैं ऊँघता सून्गता वहां भी पहुँच गया वहां नैन नाथ रावल ने जब गोल्जू की जागर सुनाई तो वृत्तांत से साफ़ हो गया कि काली कुमाऊ के पार बैतडी के छाल धवली धूमागढ़ के राजा झलराई और हलराई हुए.

फिर ज्ञात हुआ कि धूमागढ़ और धूमाकोट में क्या अंतर है. गढ़ = किला और कोट=किला यानी गढ़ नेपाल में और कोट कुमाऊ में बोला जाता है.
विश्वस्त जानकारी अब यह मिली है कि आज भी उस क्षेत्र के गॉव में राई, मगर, तमांग जाति के लोग निवास करते हैं जो काली नदी पार है. इस से यह प्रमाण पुख्ता हो जाता है कि यहीं काठ के बक्से में बंद कर गोल्जू को बहाया गया होगा जिसे चम्पावत में किसी मछुवारे ने बाहर निकाला और गोल्जू चम्पावत में राजा बने.

काली कुमाऊ  राजभाग (जनश्रुति) के अनुसार गोरिल की छल पूर्वक ह्त्या करने
वाले डोटी के राजा ने जब उनके अनुयायियों पर अत्याचार करना शुरू किया तब
डोटी के भंडारी नेपाल छोड़कर काली-कुमाऊं के तामली क्षेत्र में आ बसे व
उनके साथ गोरिल की प्रेतात्मा भी साथ आ गयी. यहाँ उनका प्राचीन मंदिर है.
भंडारी जब बाज्रिकोट आएर तो गोल्जू भी उनके साथ वहीँ आ गए. राजा चम्पावत
को उनकी आत्मा ने जकड़ लिया था तब गुरु गोरखनाथ के सुझाव पर राजा द्वारा
चौद नामक स्थान पर चम्पावत में मंदिर निर्माण किया गया.

इस तरह कई अनेकोनेक जानकारियाँ गोल्जू देवता के बारे में प्रचलित हैं
जिनका संग्रह करना बहुत बड़ा कार्य है. गोरिल के यूँ तो गढ़वाल कुमाऊ में
कई मंदिर हैं लेकिन कुछ प्रसिद्ध मंदिरों में  पिथौरागढ़ के कुमौड़ गॉव में
एक टीले पर स्थान, पट्टी बौरा रौ के चौड़ में, गरुड़ भनारी गॉव में,
उच्चाकोट के बसौत गॉव, कत्युर पट्टी के गागरगोल, चौड़ासिलंग तथा थान गॉव,
कोराली, पिनाकोट, कनोली, लालुरी, वहीँ नेपाल में मल्ली डोटी के तड़खेत
गॉव, दिपायल के राजमहल (खंडहर), नया पट्टी के मनीला गॉव, गढ़वाल के जौनपुर
इलाके के रक्षाखेत गॉव, सुवाखोली, सिल्ला, सरुणा आदि गॉव, पौड़ी गढ़वाकाल
के पौड़ी कन्डोलिया व द्मादा उनियाल गॉव, रानी बाग़ चौथान, सिलंगी (चौगॉव),
गंगोलीहाट, सेरागॉव, तरमोली, छाणा, धौलखेडा (रामनगर), कमराड़, सिलौर,
काकलासौ, बमौरी, चमड़खान, ताड़ीखेत, चोरगलिया, चौगढ़, चौभैंसी, चम्पावत,
चितई, घोडाखाल, बिनता उदयपुर, लोध, चमोली गढ़वाल के पिलंग, सैकोट, रतगॉव,
धारचूला क्षेत्र में गबला देव, दारमा, चौन्दास, दर्मदांतों, गोरिफाट
तल्लादेश, गगास व कोसी के बीच का क्षेत्र, रानीखेत के चमड़खान, सोमेश्वर
के रैखोली गॉव, कफालिगैर, कांडा इत्यादि में गोरिल पूजे जाते हैं.
गोरिल के बारे में हर जगह एक ही किंवदती प्रसिद्ध है की वह न्याय का
देवता रहा है. वह महिलाओं की फ़रियाद जल्दी सुनते हैं इसलिए उन्हें गौर
भैरव के रूप में भी पूजा जाता है. नेपाल के दिपायल के खंडहर राजमहल में
गोल्जू की पूजा बटुक/गौर भैरव के रूप में होती है. जिसे आज भी दिपायल के
लोग पूजते हैं.

अल्मोड़ा जिले के अंतर्गत अकेले अल्मोड़ा शहर की परिधि में अष्ट भैरव मंदिर
स्थित हैं जिनमे काल भैरव, बटुक भैरव, बाल बैरव, शैव भैरव, गढ़ी भैरव,
आनंद भैरव, गौर भैरव व खुटकीनिया भैरव स्थित हैं जिन्हें इन्ही के अंश
माना जाता है,. वहीँ यहाँ भनारी ग्वल की भी पूजा होती है जिसे गोल्जू का
मामा माना गया है. हो न हो भनारी ग्वल वही भंडारी लोग हों जो नेपाल से
आकर काली कुमाऊं में बसे हैं.
शोध की अभी नितांत आवश्यकता है, कार्य निरंतर जारी है. किसी शोधकर्ता या बुद्धिजीवी के पास गोल्जू से सम्बंधित कोई और जानकारी हो तो कृपया मार्ग दर्शन करें क्योंकि पिथौरागढ़ जिले में न धौली नदी बहती है न धुमाकोट ही कोई स्थान है. कालान्तर में अगर ऐसा कोई नाम उभरकर आया हो तो कृपया मार्गदर्शन करें.

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