गैरसैण मुद्दा फिलहाल बड़े तरीके से ठन्डे बस्ते में! मुख्यमंत्री बोले- इन्तजार करें!
गैरसैण मुद्दा फिलहाल बड़े तरीके से ठन्डे बस्ते में! मुख्यमंत्री बोले- इन्तजार करें!
(मनोज इष्टवाल)
सत्र प्रारम्भ से ही विभिन्न क्षेत्रीय दलों के साथ ग्रामीणों के नारे “लेके रहेंगे गैरसैण..गैरसैण! गैरसैण! और तमाम पुलिस के पसीने छूटते रहे! लेकिन अब तक सभी सरकारों के लिए गैर हुए गैरसैण का मुद्दा भाजपा की बहुमत वाली सरकार ने भी ठंडे बस्ते में सरका दिया जबकि विगत बर्ष इसी गैरसैण मुद्दे पर वर्तमान पार्टी अध्यक्ष व पूर्व नेता प्रतिपक्ष रहे अजय भट्ट तब बेहद उग्र होकर बोले थे कि भाजपा यदि सरकार में आई तो गैरसैण राजधानी बनेगी!
विगत दिवस गैरसैण के लिए 10 करोड़ के बजट की घोषणा करते हुए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने साफ़ कर दिया कि अभी गैरसैण पर और इन्तजार करना पडेगा! पहाड़ के वाशिंदों की जनभावना से जुड़े गैरसैण पर आकर जाने क्यों हर सरकार ठिठक जाती है! बहना ये भी हो सकता है कि अभी राजधानी लायक यहाँ कार्य हुए नहीं हैं लेकिन यहाँ तो सीधे इस मुद्दे को ठन्डे बस्ते में डालते हुए मुख्यमंत्री ने इतिश्री कर दी है!
यहाँ गलती मैं राजनैतिक दलों की कम और पहाड़ी मूल के अपने पलायनवादी समाज की ज्यादा मानता हूँ जिनकी वोट बैलेट अब मैदानी भागों की हो गयी हैं. सारा पहाड़ी तो उधमसिंह नगर, देहरादून, ऋषिकेश, हरिद्वार, काशीपुर, रामनगर, कालागढ़, कोटद्वार जा बसा है ! ऐसे में हर राजनैतिक दल को लगता है कि अगर हमने गैरसैण राजधानी घोषित कर दी तो पता चला चुनाव के ऐन हमने अपने पैरों कुल्हाड़ी न मार दी हो! त्रिवेंद्र रावत को भी शायद यही समझाया गया है कि भूल से भी ग्रीष्मकालीन भी घोषित मत कर देना पता चल रहा है सारा मैदानी वोट भाजपा से छिटककर किसी और दल के खाते में चला गया तो क्या होगा!
सच यह है कि पहाड़ी जनमानस कहीं भी बस जाय लेकिन जब कभी भी पहाड़ की बात आएगी वह पहाड़ की ही बात पर मतदान करेगा यह बात तय है! शायद सरकारी खुफिया तंत्र ने इतना तो मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत और वन मंत्री डॉ हरक सिंह रावत के दिमाग में डाल हि दिया होगा कि उत्तराखंड में बिजनौर और सहारनपुर की बात करना महंगा पड़ सकता है इसलिए मुख्यमंत्री का सहारनपुर मुद्दे पर बयान आ गया था कि उनकी बात को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किया गया है!
गैरसैण मुद्दे पर पिछली सरकार के मुख्यमंत्री हरीश रावत भी ऐन वक्त पर ऐसे ही पलटी कहा गए थे जैसे वर्तमान मुख्यमंत्री ने खाई है तब गैरसैण विधान सभा सत्र के बाद बाहर कई आँखें डबडबा गई थी उनमें विधान सभा उपाध्यक्ष डॉ अनुसूया प्रसाद मैखुरी भी शामिल थे क्योंकि उन्हें तभी लग गया था कि वे अब जीत नहीं सकते जबकि पहले पूरे जोश खरोश से यही लग रहा था कि कांग्रेस दुबारा आती है! इसका फर्क सिर्फ डॉ. अनुसूया प्रसाद मैखुरी पर ही नहीं पडा बल्कि हरीश रावत की पूरी सरकार ही ताश के पत्तों की तरह बिखर गयी! जाने कैसे पूर्व विधान सभा अध्यक्ष गोबिंद सिंह कुंजवाल अपनी सीट बचाने में कामयाब हो गए!
अब जबकि लोकसभा के चुनाव दरवाजे पर हैं ऐसे पर गैरसैण का मुद्दा यकाएक ठंडे बस्ते में डाल देने से चुनावी समीकरण में कितना अंतर आयेगा यह कहना अभी जल्दबाजी होगी लेकिन जो गुस्सा अभी आम जनता में दिख रहा है उस से साफ़ सा संदेश जा रहा है कि लोग इस मुद्दे पर रोष में हैं!