कुंडल की पहाड़ियां……। जहाँ खजाने की रक्षा में आज भी मंडराते हैं जहरीले सांप…!

गुप्त रहस्यों को समेटे हैं कुंडल की पहाड़ियां। खजाने की रक्षा में आज भी मंडराते हैं जहरीले सांप…!

(मनोज इष्टवाल ट्रेवलाग 29 जनवरी 2014)
आज मेरा जन्मदिन है और मैं नैनीताल जिले के सुदूर विकास खंड ओखलकांडा के कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय की छात्राओं के बीच हूँ! मेरे साथ प्रवासी दुबई निवासी सुप्रसिद्ध समाजसेवी गीता चंदोला व जागर की उभरती नयी गायिका हेमा नेगी करासी हैं! विगत रात्री ही यहाँ पहुंचे तो पाया स्कूल की बच्चियों व स्टाफ जिनमें वार्डन सुश्री सुशीला जोशी जी, अध्यापिकाएं  पुष्पा परगाई, प्रेमा बिष्ट, मंजू आर्या व ऑफिस स्टाफ के रूप में दीवान रमोला जी, मोहन सिंह बरगली जी व श्रीमती पुष्पा बिष्ट आंटी प्रमुख हैं ने हमारे स्कूल में पहुँचने पर स्वागत किया व न्यायोचित्त सम्मान दिया!
आज सुबह ही मन अशांत था क्योंकि जन्मदिन जो है लेकिन किसी को नहीं पता कि आज जन्मदिन मेरा जन्मदिन था! यहाँ फोन नेटवर्क भी नहीं है जो किसी की विश आ जाय! सुबह की चाय के साथ पता लगा कि वार्डन मैम व बच्चे तैयारी पर जुटे हैं! उत्सुकता हुई तो पूछ बैठा- मैडम आज कुछ अलग से तैयारी दिख रही है! सुशीला जोशी मैम बोली- सर..आप भी तैयार हो जाओ! गीता व हेमा मेम तैयार हो रही हैं! आज ख़ास दिन है आप सबको स्कूली छात्राओं के साथ ऐसी जगह घुमाने लिए चल रहे हैं जो नैनीताल जिले का सीमान्त क्षेत्र है व पर्यटन की दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण! लेकिन अफ़सोस कि वहां तक अभी सडक नहीं पहुंची वरना पर्यटकों के लिए वह बेहद मुफीद स्थान हो सकता है! तब तक बबिता मटियाली नामक छात्रा आई व बोली- सर आप मेरे गाँव ल्वाड जा रहे हैं!
मैं मुस्कराया जल्दी से तैयार होकर कैमरा उठाया व नाश्ते की टेबल पर आ बैठा! कुछ ही देरी में हम खनस्यू अर्थात गौला नदी का दामन छोड़ सर्पाकार सड़क पर बलखाती हुई टाटा सूमो में पतलोट के लिए निकल पड़े! पतलोट मैं पहले आ चुका था लेकिन इससे आगे जैसे ही गाडी बढ़ी! कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय की छात्राएं जिनमें यशवंती ऐरी, नीमा नदगली, बबिता मटियाली, हेमा मटियाली, ललिता मटियाली, हर्षिता मेवाड़ी, अनिता आर्या, हीरा मटियाली सहित दर्जन भर लडकियां शामिल थी का शोर गूंजा! वे अपनी मस्ती में झूमते गाते आज ऐसी लग रही थी जैसे पिंजरे से आजाद चिड़ियाएँ चहचहाती हुई आज सातवें आसमान में उड़ रही हों! उनके सुर में सुर मिलाने को गीता चंदोला, हेमा नेगी करासी व पुष्पा परगाई मैडम थी!
हाँ…थोड़ा सा तनाव मुझे इस बात का था कि प्रेमा बिष्ट मैडम व मंजू आर्या मैडम कुछ अलग-अलग सी लग रही थी! पतलोट से लगभग 11 किमी. आगे हम कुंडल पहाड़ियों के नीचे आमा मंदिर में रुके! जहाँ हमने कुछ फोटो क्लिक की व आगे सफर के लिए निकल पड़े! कुंडल पहाड़ी को पार कर हम ल्वाड गाँव की सरहद पर पहुंचे जहाँ हीरा मटियाली का घर था! बिल्कुल सडक से बमुश्किल 20 कदम ऊपर! यहीं बबिता मटियाली व हेमा मटियाली भी उतरी! शायद इन सभी का गाँव यही है! सुशीला मैडम ने ललिता मटियाली को बोला-तू भी जा …! लेकिन जल्दी आना यहीं पर मिलना देर न हो! बस बोलने की देर थी ललिता भी लपककर उतर गयी! यहाँ से बमुश्किल 10 किमी. आगे सडक के नीचे एक खूबसूरत गाँव दिखा! पूछने पर पता चला कि यह डोभा है! इस क्षेत्र का यहीं एक मात्र इंटर कालेज..! बस यहीं उतरकर हमें लोह्खाम ताल व हरीश ताल पैदल यात्रा करनी थी! अब पता चला कि हमारी इस खूबसूरत यात्रा की मंजिल आखिर है कहाँ! बहरहाल हरीश ताल-लोह्खाम ताल से पहले क्यों न रिवर्स गेयर में कुंडल की गगनचुम्भी पहाड़ियों पर यात्रा को फोकस करें! 
यक़ीन मानिये अगर आप प्रकृति प्रेमी हैं या फिर ट्रेकर्स या फिर मेरी तरह के यायावरी के शौकीन लेखक तब देर मत कीजिये एक बार कुंडल जरूर घूम आइये। 

यूँ तो नव विवाहित जोड़े घूमने के लिए नैनीताल की नैनी झील की सैर कर अपने हसीन सपने सजाते दिखते हूं लेकिन सबसे ज्यादा विविध वनस्पति विधाओं, भौगोलिकता व वन्य जीव जंतुओं, तालों से जुड़े इस जिले में धार्मिक व साहसिक पर्यटकों के लिए सैर सपाटे के लिए सच मानिए एक माह भी कम पड़ेगा। 
कुंडल के  खजाने तक पहुंचने के लिए आपको  नैनीताल जिले सीमान्त में नैनीताल से लगभग 110 किमी० दूर धानाचूली, ओखलकांडा, खनस्यूं, पतलोट होकर कुंडल तक का सफ़र करना पडेगा, जहाँ सडक पर खड़े होकर आप गगन चुम्बी कठोर चट्टान के दर्शन करते हैं!
पटलोट से आप बायीं ओर वृहस्पति मन्दिर के लिए मुड़ते हैं जबकि सीधा रास्ता आपको आमा मन्दिर  तक ले जाता है जहां कुंडल पर्वत शिखर की कठोर चट्टान मौजूद है। इससे आगे लोहखाम हरीश ताल जैसे प्रसिद्ध दो ताल और हैं जहां तक पर्यटक जल्दी से नहीं पहुंच पाता। यहां से आप हल्द्वानी के लिए गौलापार पहुंच सकते हैं।
आमा मन्दिर का निर्माण इसलिए किया गया है क्योंकि यहां से आगे सड़क खोदने में बेहद दिक्कतें हो रही थी। यहां के स्थानीय नागरिक व कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय की वार्डन सुशीला जोशी बताती हैं कि जैसे ही आगे सड़क खुदती कई सांप रास्ता रोक देते। यही नहीं वे रात ठेकेदार व श्रमिकों के सपनों में भी आने लगे इसलिये श्रमिक काम छोड़कर भाग जाते।

आखिर ठेकेदार ने ग्रामीणों के सहयोग से यहां आमा मन्दिर की स्थापना करवाई जिसके बाद से सांप दिखने बन्द हो गए और सड़क मार्ग का कार्य निष्कंटक बढ़ने लगा। यहां के लोगों का मानना है कि कुंडल की शीर्ष चोटी जिसे धन खाऊ/धन का मूडा नाम से जाना जाता है, में आज भी अरबों-खरबों का हीरे जवाहरात का खजाना छुपा हुआ है जिसकी रक्षा पहाड़ी में रह रहे हजारों सांप कर रहे हैं।
यहां का जनमानस बताता है कि गरुड़ की चोंच से गिरी स्वर्ण मुद्राएं कई बार नीचे गिरी हैं जिन्हें लोगों ने पाया है। कई बार चट्टानों से चांदी सोने के एक आध सिक्के सड़क तक आ जाते हैं जो बेहद पौराणिक माने जाते हैं लेकिन लोग यह नहीं बता पाए कि किस-किस को ये सिक्के मिले हैं। चम्पा मटियाली बताती हैं – सर, हम लोग तो भूल से भी इस पहाड़ी की ओर नहीं जाते! वैसे भी यहाँ आस-पास मेरी माँ या गाँव की औरतें घास काटने तो आती हैं लेकिन मुख्य कुंडल की पहाड़ियों पर महिलाओं का जाना वर्जित है! लोगों की अवधारनया है कि यहाँ बेहद बिषैले सांप घूमते रहते हैं! 
कुंडल की पहाड़ी ने नीचे से गुजरती सड़क की बगल से एक लंबी सुरंग जाती है! जिसका यह पता नहीं है कि इसकी लम्बाई कितनी अधिक है। मैंने भी सुरंग में लगभग 20 मीटर यात्रा की,  सुरंग शुरुआत में खुली है जिसमें आप आराम से खड़े होकर चल देते हैं लेकिन धीरे-धीरे अंधेरा व तंग होती गुफा में ऑक्सीजन की कमी, कई जानवरों की हड्डियां बिखरी मिली। इसलिए रास्ते से वापस लौटना पड़ा। 
मुझे लगता है कुंडल के रहस्य का उजागर करने के लिए राज्य सरकार को एक रिसर्च टीम भेजकर इस पर कार्य करना चाहिए ताकि इसकी सच्चाई का पता लगाया जा सके। वहीं नैनीताल जिले का उपेक्षित पड़ा यह क्षेत्र पर्यटन के लिहाज से विकसित किया जा सकता है क्योंकि यहां की भौगोलिक विविधता में लुखाम मन्दिर, लोहखाम ताल, हरीश ताल इत्यादि पर प्रतिबर्ष जुटने वाले मेले अद्वितीय हैं जिन्हें संरक्षण की आवश्यकता है।

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