गवाणी रायसेरा ढुंग्यात तोक में बनेगा उम्मीद समन्वित कृषि बागवानी केंद्र।

(मनोज इष्टवाल)

पौड़ी गढ़वाल में और कृषि…? सुनकर चौंकिए मत। यह हम सभी जानते हैं कि राज्य निर्माण के बाद बर्ष 2000 से 2020 तक सबसे अधिक उत्तराखण्ड के किसी जिले से पलायन हुआ तो वह है पौड़ी। सबसे अधिक अगर खेत गांव बंजर हुए हैं तो वह है पौड़ी। सबसे अधिक अगर मुख्यमंत्री केंद्रीय मंत्री व प्रदेश में मंत्री बने हैं तो वह है पौड़ी। इस सबसे ऊपर प्रदेश के जिस जिले का सबसे बड़ा ह्रास हुआ है वह है पौड़ी….! उसके बावजूद भी पौड़ी में वह भी कृषि बागवानी केंद्र? कुछ ग़ले नहीं उतरी ना बात।

लेकिन कुछ तो कर्मयोगी इस धरती पर रहे हैं जो माँ धरा की मांग हरी करने को ही जन्में हैं । कुछ तो ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें अपनी जन्मभूमि की खुद, टीस, पीड़ा ने वहां बांध दिया है। इन्हीं में से पौड़ी जनपद के चौंदकोट में एक लाल है जो अपने शहरों की भौतिकवादी जिंदगी छोड़ घर लौटा व लगा गवाणीगाड़ के कंकड़ पत्थरों से टकराने। लगा उन कंटीली झाड़ियों को हटाने जहां जंगली सुअरों के डेरे थे। शायद इसलिए कि उसने अपने दादा-परदादा, दादी-माँ, चाची-ताई, बौजी-बहनों की कुदाल, हल, बैल, छुणख्याली दरांती के साथ माटी का श्रृंगार करती खेतों की उस सौंधी मिट्टी की खुशबू सूंघी थी जिसमें लोट-पोट हो जाने कितने सामूहिक ठट्ठा मजाक व गीतों के सामूहिक स्वर सुने होंगे। जिनके साथ बैलों के ग़ले के घुंघुरू, खांखर, घण्टियां संगीत देती रही होंगी। और फिर बीज को पल्लवित होकर बाल व बाल को पकते देख अन्न बनते देखा होगा। वही इस घाटी का लाल आज विगत तीन बर्षों से अपनी टीम के साथ बर्षों के बंजरों को आबाद करने की जिद लिए अपना नाम कमा रहा है। प्रदेश में बैठे उसके आस-पास के लोग जी भर भरकर उस शख्स (सुधीर सुंदरियाल) की प्रशंसा तो कर रहे हैं लेकिन उस जैसी हिम्मत जुटाने का साहस नहीं कर पा रहे हैं।

कृषि को नए अंदाज में पेश कर जिस तरह सुधीर सुंदरियाल क्षेत्र के लिए मिशाल बन गए वह अद्भुत है। उनके कार्यों से प्रभावित होकर उन जैसे जुनूनी कई युवाओं ने अब गांव की राह पकड़ ली है।

सुधीर अब इसी घाटी में स्वयं के प्रयास से एक कृषि बागवानी केंद्र खोल रहे हैं। सुधीर बताते है कि आगामी 1 मार्च 2020 को बंजर खेतों को आबाद कर कृषि बागवानी के एक केंद्र की स्थापना होने जा रही है जिसका नाम उम्मीद समन्वित कृषि बागवानी केंद्र रखा गया है। यह केंद्र जहां पर बन रहा है वह एक घाटी है जिसके आस-पास कई किलोमीटर तक बंजर ही बंजर खेत हैं। यह केंद्र भी बंजर खेतों को आबाद करके बनाया गया है। पिछले तीन सालों से इन खेतों में उत्पादन की बड़ी कोशिशें हुई पर हर बार हमारी मेहनत को जंगली जानवर और दो पैरों वाले जानवर बर्बाद कर देते थे। बहुत नुकसान उठाया, बहुत मेहनत की लेकिन हिम्मत नही हारी, उम्मीद नही टूटी।

उन्होंने बताया कि हर बार के नुकसान, उम्मीदों को मजबूत बनाते रहे और उम्मीदें इतनी प्रबल हुई कि अब केन्द्र का नाम ही उम्मीद समन्वित कृषि बागवानी केंद्र रख दिया।

यह केंद्र किसानों और हमारे कृषि स्नातकों के लिए एक प्रयोगशाला के रूप में भी धीरे धीरे विकसित होगा ।
चूंकि एक मार्च को चकबन्दी दिवस भी है इसलिए इस चकनुमा केंद्र से चकबन्दी की आवाज को बुलन्दी देने वाले चकबन्दी के प्रणेता गणेश सिंह गरीब और कृषि पंडित डॉ. विद्यादत्त उनियाल (जिनकी फ़िल्म मोती बाग ऑस्कर के लिए चयनित हुई थी) हमारे साथ हैं। साथ ही साथ अनेक किसान, कृषि विभाग, उद्यान विभाग, भरसार विश्वविद्यालय के डीन और उनकी टीम, कई गणमान्य लोग आदि इस अवसर पर शामिल होकर बंजर खेत आबाद करने की आवाज उठाएंगे।

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