गलत जानकारियों से पटा पड़ा है पौड़ी का बेहद खूबसूरत ऐतिहासिक रानीगढ़! जिसके गर्भ में समाये इतिहास में सम्मिलित हैं पुरिया नैथाणी राजमाता व उनके नौनिहाल की अनूठी गाथा!

गलत जानकारियों से पटा पड़ा है पौड़ी का बेहद खूबसूरत ऐतिहासिक रानीगढ़! जिसके गर्भ में समाये इतिहास में सम्मिलित हैं पुरिया नैथाणी राजमाता व उनके नौनिहाल की अनूठी गाथा!
(मनोज इष्टवाल)

  • रानीगढ़ से मूसा की नाव तक गुप्त रास्ता!
  • नैथाणा गाँव के पास आज भी मौजूद है हाथी बाँधने का स्थान!
  • रानीगढ़ से बनेख, रानी गढ़ से नाहसैण, डांडा नागराजा, ब्यास चट्टी, देवप्रयाग का है शानदार ट्रेक!
  • यहाँ गोली लगने के बाद भी नहीं मरता है कोई जानवर!
  • भर्तहरी की खिचड़ी खाकर इसी क्षेत्र में गौ-पालक पुरिया नैथाणी को प्राप्त हुआ था ज्ञान, बने सेनापति!

 
सचमुच तब बहुत पीड़ा होती है जब गूगल में या अन्य माध्यमों में गलत जानकारियों का अम्बार दिखाई देता है वह भी इस युग में जब हर जानकारी आपके पास फिंगर टिप्स में मौजूद हो! मैं सन 2000 के उस दशक के उस योद्धा को नमन करता हूँ जिसे  मैं अक्सर 10 रूपये का चंदा जुटाने के लिए हाथ में पम्पलेट, रजिस्टर व जुबान पर सिर्फ और सिर्फ रानीगढ़ होता था! आज यह जननायक ज़िंदा है या नहीं लेकिन हम जैसे स्वार्थी लोगों ने उन्हें अतीत का एक काला पन्ना समझकर अपनी कलम की स्याही में उकेरना तक मुनासिब नहीं समझा!
खादी टोपी, खादी कुर्ता, खादी पैजामा, खादी वास्केट रंग गोरा! कद लगभग 5.8 फिट! पैरों पर कभी चमड़े की चप्पल तो कभी बाटा की चप्पल! लेकिन चेहरे पर एक अटूट विश्वास और अनोखी चमक! जैसे उन्हें ज्ञात हो कि वे जो कर रहे या कह रहे हैं वह पत्थर की लकीर है!

इस क्षेत्र में ऐसे दो सरफिरों से मेरी मुलाक़ात हुई थी पहले चकबंदी की तोते की तरह रट लगाने वाले गणेश सिंह गरीब! जो अगर मुन्डनेश्वर में मिल गए तो समझो आज की रात काली! क्योंकि उनके घर रात्री बिश्राम करना स्वाभाविक हो जाता था और मुंडनेश्वर (खैरालिंग) बाजार से लेकर सूला गाँव की उस धार तक जहाँ उनका एकांत में मकान स्थित था तक सिर्फ और सिर्फ एक ही चर्चा- “इष्टवाल जी देखना, इस बार मैंने ऐसी चिट्ठी ड्राफ्ट की है कि मजबूर होकर लखनऊ में बैठे राजनेताओं को चकबंदी पर व्हिप जारी करना पड़ेगा!” चकबंदी न हुई तो मानो बज्र पड जाएगा!”

गरीब जी की अर्धांगनी को मैं तब धन्यवाद देता था कि वह ऐसे मानस को रात दिन कैसे झेलती हैं! जिस के पास आय के साधन के रूप में खेत में उगने वाली दो चार मूली, बमुश्किल मार्केट में बिकने वाले चंद खट्टे पूलम हैं! फिर भी उनकी मुस्कान उनका हरकदम साथ देती नजर आती थी! आज भी श्रधेय श्रीमती गरीब का जब भी अक्स आँखों में तैरता है तो हृदय नमन के लिए झुक जाता है! मैंने उस दौरान 1994 -1996 तक गरीब जी के साथ चकबंदी चक्र को बनाने में उनके हर सपने को उसमें उकेरने का प्रयास किया! आज वही चकबंदी चक्र उत्तराखंड सरकार की एक मात्र पलायन रोकने की कोशिश है लेकिन गणेश सिंह गरीब ठेठ वैसे ही हाशिये पर आते दिख रहे हैं जैसे रानीगढ़, रानीगढ़ चिल्लाने वाले दूसरे सरफिरे शिब सिंह पटवाल!
ग्राम –खपरौली निवासी शिब सिंह पटवाल पहले सरकारी सेवारत थे. सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने ठान लिया कि ब्रिटिश काल में अंग्रेजों का सबसे पसंदीदा स्थान अदवाणी को वे किसी भी सूरत में पर्यटन के मैप पर लाकर छोड़ेंगे! उनकी इस सनक ने उन्हें इस कदर अलग थलग कर दिया था कि वे शायद बहुत कम ऐसा वक्त रहता होगा जब रात को भी अपने गाँव खपरौली जाते रहे होंगे! पौड़ी से 17 किमी. दूरी पर अवस्थित अदवाणी कांसखेत घंडियाल सतपुली मार्ग पर स्थित है! यह ब्रिटिश काल की सबसे पुरानी सड़क होने के बाबजूद भी तब कच्ची सड़क हुआ करती थी जिसके दोराहे पर एक चाय की दुकान थी जहाँ से एक सड़क  बंगानीखाल- बहेड़ाखाल और दूसरी कल्जीखाल बौंशाल व कांसखेत सतपुली निकलती थी!

(अदवाणी स्थित चाय की दुकान)
इसके अलावा यहाँ चार गोरखा मजदूर और यदाकदा राशन गोदाम में एक आध व्यक्ति या फिर फारेस्ट बंगले में फारेस्ट गार्ड दिखाई देते थे! बस का वहां पहुँचने का समय हो और आपको शिब सिंह पटवाल अपने चिर-परिचित अंदाज में चाय की दुकान में न मिलें भला ऐसे कैसे संभव है!
मुझे वो पत्रकार के रूप में जानते थे और जैसे ही उनकी नजर मेरे पर पड़ती थी मैं समझ जाता था कि आज मेरी शामत आने वाली है! एक तो पहले ही उस दौर में जेब कडकी रहती थी! दूसरा चाय पर गप्प शप्प में सिर्फ रानिगढ़ और आदेश्वर शिब तीसरा विदा होते समय 10 -20 रूपये जाते समय उन्हें देने पड़ते थे मानों टैक्स देना हो! लेकिन यह सब मैं दिल से देता था क्योंकि मैं जानता था कि यह 10 रूपये भी ऐसे स्थान के लिए बहुत उपयोगी हैं जहाँ आदमी पल भर में रुकता है और फिर फुर्र हो जाता है!

आज शिब सिंह पटवाल जहाँ कहीं भी हैं उनका नाम तो रानीगढ़ से जुड़ा हुआ दिखता नहीं है लेकिन जिस अर्धनारेश्वर मंदिर व आदेश्वर महादेव मंदिर के लिए वह जद्दोजहद करते रहते थे वह जरुर दिखाई देता है! आज उनके सपनों का रानीगढ़ सचमुच पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया है जबकि उस दौर में उस क्षेत्र के कई व्यक्ति कहते थे – अरे पागल हो गया है ये! घरबार होते हुए भी पांच पांच दस दस रूपये मांगकर मंदिर बनाने व रानिगढ़ को पर्यटक स्थल घोषित करने के सपने देखता है!
मैं फक्र से इन महानुभाव को आज भी उसी ह्रदय से नमन करता हूँ जिस से तब करता था क्योंकि मैं जानता था कि ऐसा बिरला व्यक्तित्व हजारों में एक ही होता है जिसे लोग यूँही नकारते हैं और वह इतिहास रच देता है!
अब आते हैं उस मुख्य बिंदु पर जिसने मुझे बेहद आश्चर्यचकित कर दिया! uttrakhand ws e uttaranchal ने गूगल में जो जानकारियाँ ऐतिहासिक दृष्टि से अपलोड की हैं वह चौंकाने वाली हैं! आप भी एक सरसरी निगाह से पढ़ लीजिये-

उनकी नजर में राजमाता राजा उपेन्द्र शाह की पत्नी और प्रदीप शाह की माता हुई जिन्हें पुरिया नैथाणी द्वारा 1804 में रानीगढ़ लाया गया! यह गलती उनकी इतनी है कि उन्होंने शायद इतिहास नहीं पढ़ा व सिर्फ खपरौली गाँव के उस लोकनायक शिबसिंह पटवाल की लिखी तख्ती पर उकेरे शब्द हू-ब-हू लिख डाले जिन्हें मैंने कई बार समझाया भी कि यह सोलहवीं सदी की बात है! क्योंकि पुरिया नैथाणी को अखबर व औरंगजेब से जोड़कर अक्सर जनरत्न नैथाणी देखा करते थे जो दिल्ली में लोधी कालोनी के अफसर फ्लैट में रहते थे व केन्द्रीय सरकार में अच्छे पद पर कार्यरत थे! वे पुरिया नैथाणी पर तब व्यापक शोध कर रहे थे! लेकिन भला मेरी कहाँ शिब सिंह जी सुनने वाले ! उनकी एक ही रट थी कि उनके पास इस बात के सबूत हैं!
अब जबकि मेरा अध्ययन ऐतिहासिक दृष्टि से जानकारियाँ जुटाने में काफी हो गया है तब वही चीज अपने बुद्धिजीवियों द्वारा लिखी होने पर पीड़ा होनी स्वाभाविक है ! मेरा uttrakhnd ws e uttaranchal से अनुरोध  है कि वे अपने आर्टिकल में निम्नवत सुधार कर लें ताकि गूगल सही जानकारी हम सबको दे सके!
सन 1676 से लेकर 1699 तक गढ़वाल के राजा मेदनीशाह के शासनकाल में जो कुम्भ हुआ उसमें पहले स्नान को लेकर हरिद्वार में कुम्भ स्नान को लेकर मैदानी क्षत्रप राजाओं ने न सिर्फ राजा मेदनीशाह का उपहास उड़ाया बल्कि उन्हें एक गरीब छोटे से टुकड़े का राजा बताकर यह तक कह दिया कि वह उनसे पहले नहीं बल्कि सबसे बाद में स्नान करेंगे और अगर ऐसा नहीं हुआ तो कुम्भ में खून की नदिया बहेंगी! राजा मेदनीशाह द्वारा सभी राजाओं से कहा गया कि यह श्रीहरी क्षेत्र है यहाँ खून खराबा करना ठीक नहीं है अत: यह माँ गंगा पर छोड़ दिया जाय कि वह कल प्रात: कुम्भ मुहूर्त में किसका स्नान सबसे पहले चाहेंगी! अगर माँ गंगा मेरी माँ है तो वह सबसे पहले मेरे पास आएगी! यह कहकर राजा हर की पैडी से अपने तम्बू में चले गये! शुभ मुहूर्त पर जैसे ही मैदानी राजा जयकारा लगाते हुए गंगा स्नान को उतरे तो देखते हैं गंगा एकदम सूख गयी और मछलियां तडपने लगी हैं! माँ गंगा ने अपना रुख बदला और वह राजा मेदनीशाह के तम्बू के पास से बहने लगी! राजा मेदनीशाह ने स्नान किया! उनके सैनिकों ने जयकारे लगाए तब सारे मैदानी राजाओं ने उन्हें साक्षात बदरीनाथ की उपाधि देकर उनसे क्षमा याचना की!  कुछ इतिहासकारों का मानना है कि राजा मेदनीशाह की पत्नी कांगड़ा नरेश की पुत्री थी तो कुछ का मानना है कि राजा फतेशाह की पत्नी राजमाता हुई!

उनकी मृत्यु के पश्चात उनके पुत्र फतेशाह राजगद्दी पर बैठे जिन्होंने 1699 से लेकर 1749 तक राज किया! वह पहले ऐसे राजा हुए जिन्होंने 50 बर्ष तक राज किया! उनके राजकाल में गढ़वाल राज्य की सीमाओं का विस्तार हुआ उनके प्रधान सेनापति पुरिया नैथाणी व शंकर डोभाल की कुशल नेतृत्व क्षमता के चलते राजा की यश कीर्ति फैली और कांगड़ा नरेश ने अपनी पुत्री की शादी उनसे की! जो बाद में राजमाता कहलाई! उनकी मृत्यु के पश्चात उनके पुत्र उपेन्द्र शाह राजगद्दी पर बैठे (1749-50) लेकिन मात्र एक साल में षड्यंत्र के तहत उनकी मृत्युं होने के बाद सन 1750 में प्रदीप शाह ने राजकाज सम्भाला जिन्होंने 1780 तक राज किया!

मुझे लगता है दूसरा तर्क सही नहीं है क्योंकि इस दौरान औरंगजेब का राज था जबकि गढ़वाल में भयंकर अकाल राजा मेदनीशाह के समय पड़ा था।
दूसरा यह कि प्रदीप शाह अवयस्क राजा नहीं कहलाये! मात्र फतेशाह ऐसे राजा हुए जो पिता की मृत्यु के पश्चात 15 बर्ष की उम्र में सिंहासन में विराजमान हुए! व राजमाता ने इस दौरान राजकाज देखा! लेकिन यह उनका दुर्भाग्य रहा कि वे अपने भाइयों की बातों में आकर ऐसे फैसले लेती रही जिस से प्रजा में असंतोष फ़ैल गया और विद्रोह की चिंगारी फूटने लगी! उनके पांच भाई कठैत जोकि कांगड़ा से साथ आये थे ने प्रजा पर स्युंदी कर चुल्हा कर इत्यादि लादना शुरू कर दिया! प्रजा में व्यापक असंतोष फैला और राज दरवारियों ने मिलकर इनके पांच भाई भगवत कठैत, आलम कठैत, महिपत कठैत, दयाल कठैत व कलम कठैत को बंदी बना लिया व श्रीनगर से 10 मील दूर ले जाकर उनकी ह्त्या कर दी! प्रजा में भारी रोष देखकर प्रधान सेनापति पुरिया नैथाणी ने राजधर्म निभाया व बालक फतेशाह व रानी को रातों-रात हाथी में बैठाकर रानीगढ़ सुरक्षित स्थान पहुंचाकर उनकी प्राण रक्षा की व तब तक सेनापति शंकर डोभाल व स्वयं मिलकर राजकाज देखा जब तक प्रजा में सुख शान्ति नहीं फैली!
मुझे उम्मीद है कि रानीगढ़ जैसे ऐतिहासिक महत्व के पर्यटन स्थल को ध्यान में रखते हुए हमें अपनी ऐतिहासिक जानकारियाँ ठीक कर लेनी चाहिए! डॉ. शिब प्रसाद डबराल चारण द्वारा लिखे लेख में शायद राजा उपेन्द्र शाह के पुत्र प्रदीप शाह को बताया गया है लेकिन यह तथ्य इसलिए सही प्रतीत नहीं होता क्योंकि तब औरंगजेब का राजकाज था! और कहीं भी यह साबित नहीं होता कि प्रदीप शाह अवयस्क राजा हुए!
(लेख आगे भी जारी है! अत: अगले अंक में पढ़िए – रानीगढ़ से मूसा की नाव तक गुप्त रास्ता! नैथाणा गाँव के पास आज भी मौजूद है हाथी बाँधने का स्थान!  रानीगढ़ से बनेख, रानी गढ़ से नाहसैण, डांडा नागराजा, ब्यास चट्टी, देवप्रयाग का है शानदार ट्रेक! यहाँ गोली लगने के बाद भी नहीं मरता है कोई जानवर! भर्तहरी की खिचड़ी खाकर इसी क्षेत्र में गौ-पालक पुरिया नैथाणी को प्राप्त हुआ था ज्ञान, बने सेनापति!)
फोटो आभार- utrakhand ws e uttranchal
 
 
 

2 thoughts on “गलत जानकारियों से पटा पड़ा है पौड़ी का बेहद खूबसूरत ऐतिहासिक रानीगढ़! जिसके गर्भ में समाये इतिहास में सम्मिलित हैं पुरिया नैथाणी राजमाता व उनके नौनिहाल की अनूठी गाथा!

  • April 27, 2018 at 9:52 am
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    बहुत ही सटीक और अच्छी जानकारी इष्टवाल साहब। मैंने भी आधवाणी में कई बार रुक कर चाय का मजा लिया है वहां मेरे बचपन की बहुत यादें बिखरी हुई हैं

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