गरीब क्रांति का यह दीवाना जिसने बहन के शादी के कार्ड पर भी छपवा दिया चकबंदी!
गरीब क्रांति का यह दीवाना जिसने बहन के शादी के कार्ड पर भी छपवा दिया चकबंदी!
(मनोज इष्टवाल)
सरकार जो भी कहे लेकिन जो अपनी जन्मभूमि के दीवाने हैं उनकी दीवानगी के आगे एक न एक दिन सरकारी सिस्टम को नतमस्तक होना पडेगा! भू अध्यादेश पर भले ही बात होनी शुरू हो गयी है! बंजर खेतों पर बड़े बड़े व्यवसायियों की नजरें हवा से ही सही लेकिन गिद्ध की मानिंद लगी हुई हैं ! सरकार ने भी उनके लिए रेड कारपेट बिछा दी है क्योंकि उन्हें इन्वेस्टर मीट से होने वाले फायदे में शायद ये दिखाई दे रहा है कि जब रोजगार पहाड़ चढ़ेगा तो पहाड़ फिर से आबाद होगा लेकिन ये इसी की समझ में नहीं आ रहा है कि गरीब क्रान्ति के ये महारथी “चकबंदी…चकबंदी चिल्ला रहे हैं लेकिन उनकी सुनवाई ऐन ऐसे वक्त फिर गरमा जाती है जब वोट का खेल होना शुरू हो गया है! उत्तराखंड की चकबंदी और उत्तर प्रदेश का अयोध्या में बनने वाला राम मंदिर सिर्फ और सिर्फ अगर किसी की भेंट चढ़ा है तो वह है इन दोनों प्रदेशों की क्षेत्रीय या फिर राष्ट्रीय राजनीति में बड़े दलों का मेमोरंडम!
चुनावी घोषणा पत्रों में यह दोनों मुद्दे बड़ी राजनीतिक पार्टियों के एजेंडे में जादू की छड़ी की तरह शामिल हो जाते हैं और चुनाव जीतने के बाद जादू की छड़ी की तरह गायब! फिर अल्लादीन के चिरागी जिन्न की भाँती चुनाव आते ही उस पर रगड़न शुरू हो जाती है और वह चिराग चिल्ला उठता है – क्या हुक्म मेरे आका!

गरीब क्रान्ति का एक नायक वरिष्ठ पत्रकार ललित मोहन कोठियाल चकबंदी सम्बन्धी दस्तावेजों का बस्ता बोकते बोकते स्वर्ग सिधार गया लेकिन चकबंदी अध्यादेश की डौंर-थाली अभी तक नहीं बची! गणेश सिंह गरीब जैसा चकबंदी का महारथी भीम बनकर द्रयोधन जैसी सरकारों की जाँघों पर गद्दा मारते मारते थक गया है लेकिन मजाल क्या है कि उन लोहे की जाँघों पर जरा सी भी हणक-कणक हुई होगी लेकिन फिर भी इस गरीब क्रान्ति के बिगुल बजाने वाले थके नहीं बस आगे बढ़कर यही रट लगाए हुए हैं-“अब अन्धेरा छांट लेंगे लोग मेरे गाँव के!”
आइये इन्हीं दीवानों के टोली के नायक कपिल डोभाल की बात करते हैं ! भारी अस्वस्थता के कारण कई महीनों चकबंदी जैसे मंच से नदारद रहने के बाद अगले ने फिर थैला टांग लिया है क्योंकि जो जिम्मेदारी उनके काँधे की इस दौरान ललित मोहन कोठियाल उठा रहे थे उनके निधन के बाद अब यह बोझ उठाने वाले योग्य हाथ युवा पीढ़ी को राह दिखाने वाले ही हो सकते हैं! एक ओर गरीब क्रांति में कुछ झोल आया तो कुछ रूठकर दूर हुए फिर घर लौट गए यह बड़ी बात है क्योंकि यह बड़ी बात है ! गरीब क्रान्ति का बिगुल कोई प्रायोजित कार्यक्रम नहीं बल्कि यह आपसी जेबों से निकलने वाले उन गरीबों के आने दुआने का आन्दोलन है जिनके सपनों में उत्तराखंड का पहाड़ व उसका विकास दिखाई देता है! जिन्हें उम्मीद है कि जिस दिन उनकी जोत का बिखराव समाप्त होकर उन्हें एक जगह अपनी सारी जमीन मिल जायेगी उस दिन वह गाँव लौटकर अपने विकास का जश्न मनाएंगे!

(संगीता व संजय जिनकी शादी लिख रही है चकबन्दी की इबादत)
गरीब क्रान्ति के इन्हीं नायकों में एक सदस्य है अल्मोड़ा जनपद के बजरखोडा गाँव का अनूप सिंह नेगी “खुदेड़” ! अपनी बहन संगीता का रिश्ता अल्मोडा जिला के ही बाचकोटी बाखली गाँव के संजय से करने के लिए उन्होंने शर्त रखी वह बहन की शादी की रस्म निभाने से पहले 26 नवम्बर को उत्तराखंड की चकबंदी से सम्बन्धित एक कवि सम्मलेन का आयोजन करेंगे ताकि उस मंच से कविताओं के माध्यम से उत्तराखंड के ग्रामीण परिवेश की दिल्ली में खुद बिसराई जा सके! इसके लिए उन्होंने जो कार्ड निमंत्रण भेजे हैं उसमें गरीब क्रान्ति का लोगो चस्पा दिया है! यही नहीं उन्होंने शादी के कार्ड में भी गरीब क्रान्ति का लोगो चस्पा कर उत्तराखंड में चकबंदी की वकालत करते हुए कहा है कि जरुर एक न एक दिन हम सब युवाओं के ख्वाब पूरे होंगे! चकबंदी अध्यादेश जारी होने के बाद हर गाँव में चकबंदी होगी! बंजर खेतों में फिर अंकुर फूटेंगे खेत लहलहाएंगे और हमारा लोक समाज लोक संस्कृतिके मृत प्राय: जीवन को संजीवनी मिलेगी! वहीँ गरीब क्रान्ति अभियान के कपिल डोभाल कहते हैं ” सरकार को शीघ्र चकबंदी नियमावली बनाकर उन वायदों को पूरा करना चाहिए जिनकी राह पूरे पहाड़ की जनता देख रही है! यह तय है कि पहाड़ बिना चकबंदी के अधूरा है क्योंकि उसके विकास के पहिये तभी घूम पायेंगे जब चकबंदी अध्यादेश का बिगुल बजेगा!

बहरहाल अनोप सिंह नेगी “खुदेड” दिल्ली के भारत विहार ककरौला के प्रवासी उत्तराखंडी हैं ! वे कहते हैं यह रोजी रोटी व पेट ही है जिसकी भूख के कारण हम अपने स्वर्ग समान ग्रामीण परिवेश से महानगर के पर्यवर्णीय असंतुलन में जीवन यापन कर रहे हैं! काश…हमारी मन माफिक मुराद पूरी हो जाती ! काश…पहाड़ में चकबंदी हो जाती!