गतांक से आगे ….बदरी सदृश्यं

“” बदरी सदृश्यं ……श्रृंखला -3  

वरिष्ठ पत्रकार क्रांति भट्ट की फेसबुक वाल से –
भगवान बदरी नारायण के दरबार में अनादि काल से श्रद्धालु . जिझासु . तपस्वी . साधक आते हैं। यहाँ के कण कण में ईश्वर के होने का अहसास सबकै होता है । बहुत बार अत्यंत भीड होने के कारण भगवान के विग्रह के दर्शन नही हो पाते । पर इससे भी हताश भी निराश हताश होने की आवश्यकता नहीं । अपने आज तक के जीवन में मैने ऐसे भी श्रद्धालु बदरी नाथ में आते देखे हैं जिन्हें भीड के कारण दर्शन नहीं पाये वे हताश नहीं हो पाये बडी दूर से बदरी नाथ आये थे । तीन दिनो तक मन्दिर के बाहर सफाई करते रहे कुछ समय बाद एक झलक भगवान के दर्शन करने का मौका मिला और उनके चेहरे पल वो संतुष्टि झलक रही थी कि गोया साक्षात प्रभु उनसे मिलने स्वयं आ गये हैं। बदरी नाथ में धैर्य जरूर होना चाहिए । यहाँ पल भगवान बहुत परीक्षा लेते हैं। प्राय: जब लाइन में दर्शन के लिए खडे रहते हैं और किसी ने धक्का दे दिया तो हमारा सब्र टूट जाता है। हम बिफर जाते हैं. या कहते हैं कि फलां ने कैसे भगवान के दर्शन पहले कर दिये । यदि हम शान्त चित्त से मनन करें तो भगवान से ही सीख सकते हैं। मैने पूर्व पोस्ट मे निवेदन किया था कि “” धैर्य . विनम्रता और शान्त चित्त होने का सबक हम भगवान “” श्री हरी ” से सीख सकते है। भगवान की छाती पर भृगु ने पैरों से प्रहार किया और भगवान ने क्रोध करने के बजाय पलट कर भृगु से शान्त भाव और मुस्कुराते हुये निवेदन किया कि कहीं आपके पैरों पर चोट तो नहीं लगी ! भगवान की जब आरती सुबह होती है तब रावल जी भगवान की छाती के उस स्थान पर आरती घुमाते हैं और बताते हैं भगवान की इस विनम्रता को । हम सब भगवान को पूजते हैं मानते हैं पर भगवान से धैर्य और क्षमा सीखते नहीं। बदरीनाथ में धैर्य . लोभ और अहंकार की परीक्षा भी होती है । तप साधना . बडा होने . मानने . ज्ञानी जानकर होने “.या अधिकारों का अंहकार हो जाता है। धैर्य के खोने की परीक्षा होती है । ” ईश्वर पायें या ऐश्वर्य ( धन दौलत ) इसकी भी परीक्षा होती है । अर्चक पर निर्भर करता है कि वह क्या चाहता है ।
बदरीनाथ के दर्शन तभी होते हैं जब वह चाहे । क्यो कुछ बडे लोग नहीं पाये या नहीं आ सकते ! क्या मिथक !
यह भी अगले अंक में यदि प्रभु ने चाहा ।
***** पोस्ट के साथ एक दुर्लभ पांडु लिपि है जिसमें बदरीनाथ की वह आरती है “” पवन मंद सुगंध शीतल … जिसके बारे में प्रचलित धारणा यह है कि यह एक मुस्लिम भक्त ने लिखी । मगर पांडु लिपि में लिखा है कि सतेराखाल के ठाकुर मालगुजार धन सिंह जी ने 1889 में लिखा । संवत भी अंकित है। क्या है वास्तविकता ! इन सब पर और अन्य बिन्दुओं पर फिर …. यदि भगवान बदरी विशाल की आज्ञा हुई और आप सभी का आशीर्वाद मिला तो ।

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