गंगा को माँ का दर्जा क्यों?आखिर है क्या इस नदी में।
गंगा को माँ का दर्जा क्यों?आखिर है क्या इस नदी में।
(मनोज इष्टवाल)
गौमुख से लेकर गंगा सागर तक का मीलों सफर करने वाली मातंगी गंगा जहाँ ऋषिकेश के बाद मैदानी भागों का सैकड़ों मीलों का सफर करती हुई सम्पूर्ण भारत को अपना आशीर्वाद देकर तृप्त करती है वहीँ भारतवंशी हमारा समाज हर शुभ अशुभ कार्यों में माँ गंगा के जल का स्मरण करते हैं। रोज हजारों कुंतल मैला इस माँ के गर्भ में गिराने वाले हम भारतीयों को यह पता नहीं क़ि विश्व भर में यही एकमात्र नदी है जिसका पानी कभी भी ख़राब नहीं होता है ।
लेकिन अब चौकना लाजमी हो गया है, सुनने में आ रहा है कि मैदानी भूभागों में गंगा को इतना प्रदूषित कर दिया गया है कि उसमें मौजूद जीवानुभोजी (बैक्टीरिया फाजो) तेजी से कम हो रहे हैं जोकि पूरे देश की पुरातन सभ्यता के लिए बहुत बड़ा चिंता का विषय है।
विश्वभर के देश अपनी नदियों को साफ़ सुथरा रखने में करोड़ों अरबों रुपये हर बर्ष इमानदारी से खर्च करते हैं जिसके रिजल्ट आपको दिखाई भी देंगे। चाहे नील नदी मिस्र से बहने वाली हो या यांगत्सी हो या टेम्स इत्यादि ये सभी विश्व भर में सबसे साफ़ सुथरी नदी मानी जाती है। लेकिन गंगा ऋषिकेश के बाद प्रदूषित होकर गुंदमैली होने के भी महीनों तक अपने पानी में कीड़े नहीं पड़ने देती।
हिन्दू सनातन धर्म अपने धर्म कर्म के आधार पर गंगा के आचमन से लेकर कर्मकांड तक के कई आधारों में कई वस्तुवें गंगा शरण करता है। उनमें अन्य कई धर्म के अनुयायी जानबूझकर इसमें मैला त्यागते हैं। कई शहरों के गटर के ढक्कन और नालियां गंगा में ही खुलते हैं फिर भी यह परम पावनी माँ सबका उद्धार करती है। हम उसे दिनोदिन और प्रदूषित करते हैं।
कहा जाता है क़ि गढ़ नरेश या गढ़पति अपने ऊँचे गढ़ों में पीने का पानी गंगा से हजारों लीटर इसलिए सुरक्षित रखते थे ताकि युद्ध के दौरान अगर पेयजल स्रोत पर कब्जा भी कर दें तो गंगा जल महीनो तक सबकी प्यास बुझायेगा।
राजस्थान के राजाओं का गंगा से विशेष लगाव था दो सदी पूर्व सैकड़ों ऊंट हरिद्वार के आसपास से प्रतिबर्ष हजारों लीटर पानी ढोते थे जिन्हें महल के तहखानों में सुरक्षित रखा जाता था।
राजा जयपुर के सिटी पैलेस में ही ऐसा ही गंगा जल संग्रहण भण्डार मिला है जिसे 1922 में दो विशाल घड़ों में संग्रहित किया गया था और सन 1962-63 में लगभग 40 बर्ष बाद इसे खोला गया। आपको आश्चर्य होगा क़ि उसकी शुद्धता के मानक पूर्व की तरह यथावत थे।
1965 में पेंसिल्बेनिया की हामन लेबोटरी ने गंगा जल पर व्यापक शोध कर पाया कि हिन्दू धर्म गंगा को आखिर परम पावनी माँ के रूप में क्यों पूजता है। अन्य नदियों को क्यों नहीं? लेबोटरी का शोध का यह भी बिषय था क़ि क्या सचमुच कोई नदी स्वर्ग से भी उतर सकती है? आपको सुनकर आश्चर्य होगा क़ि जिसे हम सिर्फ कल्पना मानते हैं उसे विदेशी गंभीरता से लेते हैं। वे हमारे धर्म ग्रन्थों का बेहद आदर के साथ उसमें लिखी हर बात को साबित करने के लिए शोध करते हैं।
चौकाने वाली बात यह है क़ि मक्का मदीना में जिस नदी के जल का रसपान प्रसाद के रूप में मुस्लिम समुदाय आबे-जमजम के रूप में करते हैं उसे भी गंगा का ही एक स्रोत कहा जाता है।
हामन लेबोटरी के अनुसार जो शोध सामने आया उसमें कहा गया है कि गंगा में जीवानुभोजी (बैक्टीरियो फाजो) तत्व मिलते हैं ये तत्व गंगोत्री से ऋषिकेश तक पहाड़ की विभिन्न जड़ी बूटियों व् खनिज लवणों से भरपूर गंगा में समाहित होते हैं जिसमें शामिल होने वाली मिटटी में हर कीट नाशक शामिल होते हैं। जिसमे घुलित ऑक्सीजन (डी ओ) बायोसाजिकल ऑक्सीजन डिमांड (बी ओ डी)शामिल होता है जिनका स्तर पाँच तीन मिलीग्राम प्रतिलीटर होना चाहिए।जबकि गंगा का यह प्रतिशत स्तर नौ मिलीग्राम है जो बर्षों तक गंगा जल को खराब नहीं होने देता लेकिन यह देश का दुर्भाग्य है कि मैदानी भागों इसका स्तर दिनोदिन गिरता ही का रहा है जो बेहद चिंता का बिषय है। केंद्र सरकार की चिंता व हजारों करोड़ खर्च होने के बाद आशा की जा सकती है कि परम पावनी माँ गंगा का कायाकल्प उसी गंभीरता के साथ हर वह प्रदेश सरकार करेगी जिस जिस प्रदेश से माँ गंगा गुजरकर गंगा सागर में गिर रही है।