खैरालिंग की ध्वजा के साथ मंडाण शुरू। मिर्चोडा गांव की पंचायत ने लिया ऐतिहासिक निर्णय..अब अबजू के बावजूद भी होगा हर बर्ष मेले का आयोजन।

खैरालिंग की ध्वजा के साथ मंडाण शुरू। मिर्चोडा गांव की पंचायत ने लिया ऐतिहासिक निर्णय..अब अबजू के बावजूद भी होगा हर बर्ष मेले का आयोजन।

(मनोज इष्टवाल)
ढ़ोल बाजों के साथ “जय महाकाली” खैरालिंग देवता की जय के उद्घघोष और पंडो नृत्य करते ग्रामीण मिर्चोडा गांव से लगभग 5 किमी. दूर बलुणीगांव की सरहद तक पहुंचे जहां उतुंग बांस वृक्ष का चुनाव कर ठाकुर रतन सिंह असवाल द्वारा वृक्ष पर पिठाई अक्षत लगाकर उस से मुंडनेश्वर (खैरालिंग) महादेव का ध्वज वाहन बनने की अनुमति मांगी! पंडित के मंत्रोचारण के बाद लगभग 50-60 पूड़ (लगभग 70-75 फिट) ऊँची ध्वजा काटी गयी! तदोपरांत गाँव में घर्वात (दिन का सामूहिक भोजन) का आयोजन कर आज से खैरालिंग मेले का शुभारम्भ शुरू किया गया! अब आज से लेकर आगामी 6 जून तक दिन रात के मंडाण आयोजित होंगे जिन्हें नौरत्ता मंडाण के नाम से भी जाना जाता था! मुख्यतः नौरत्ता मंडाण नवरात्रे में ही आयोजित किये जाते हैं लेकिन मेले की परम्पराओं में इसे भी नौरत्ता मंडाण ही कहा जाता है!

आपको बता दें कि आगामी 6 व 7 जून को क्रमशः खैरालिंग की जात व कौथीग है! जात मुख्यतः मेला आयोजन का प्रथम दिन माना जाता है! यह काली माँ के लिए चढ़ावे के रूप में दैन्त्य मर्दन से पूर्व खून का तिलक माना जाता रहा है जिसे भैंसे पर थोकदार घाव देकर माँ काली को अपने इलाके की रिधि-सिधि बनाए रखने की कामना के साथ देता था! मेला आयोजन के प्रथम दिन जात को कम भीड़ होती है जबकि कौथीग यानि मेले के दिन बहुत अधिक भीड़ होती है और मेले का समापन भैंसों की बलि के साथ होता था जो अब प्राय: समाप्त हो गया है!

एक ओर जहाँ खैरालिंग मेला आज से लगभग 30बर्ष पूर्व बेहद भव्य लगता था और उसमें खातस्यूं, कफोलस्यूं, पैडूलस्यूं, मनियारस्यूं, असवालस्यूं ,पटवालस्यूं सहित चौन्दकोट, पौड़ी इलाके की कई पट्टियाँ जुडती थी. और हजारों हजार लोगों के मेले में सिर्फ सिर दिखाई देते थे लेकिन भौतिकवाद के बढ़ते चरम व निरंतर हो रहे पलायन ने मुंडनेश्वर मेले की भीड़ में इन तीस बर्षो में लगभग 30 से 35 प्रतिशत की कटौती कर दी है!
असवालस्यूं के असवाल थोकदारों की सरहद में स्थापित खैरालिंग महादेव के आने की कथा यूँ तो ढाकरी माडू थैरवाल से जुडी है जो थैर गाँव के 80 बर्षीय बुजुर्ग थे और दुगड्डा से ढाकर लेकर लौटते हुए उनके नमक के भारे में खैरालिंग यानी मुंडनेश्वर महादेव के रूप में यहाँ विराजमान हुए जिनके साथ कालान्तर में असवाल जाति की कुल देवी माँ काली ने भी वहीँ अपना ठौ (ठिकाना) बना लिया और असवाल देवी के मायके वाले कहलाये व थैरवाल उसके ससुराली! इस तरह हर बर्ष मेला आयोजन की तिथि थैर गाँव व मिर्चोडा गाँव की पंचायत मिलकर तय करवाती थी लेकिन इस बार मिर्चौडा ग्राम सभा ने एक और ऐतिहासिक निर्णय लेकर बर्षों के उस ब्यवधान को ही समाप्त कर दिया जिस से कई बार ग्रामीण मेला आयोजन करने में दुविधा में रहते थे!
ठाकुर रतन असवाल के अनुसार पंचायत में मैंने भी यह तर्क रखा कि मैंने अपने माँ पिताजी की मृत्यु के बाद भी साल भर तक हर त्यौहार मनाया और उनकी बरसी तेहरवीं भी उसी कर्मकांड से की जिससे पूर्व से करते आये हैं लेकिन उनकी मौत पर त्यौहार इसलिए नहीं छोड़े क्योंकि वे पूरी उम्र अच्छे से काटकर स्वर्ग सिधारे हैं! उनका कहना है कि अल्पायु मौत छोड़कर हमें यह फैसला तो लेना ही होगा कि क्या एक व्यक्ति के पीछे हम सब कुछ छोड़ दें! क्योंकि जन्म और मृत्यु दो अकाट्य सत्य हैं! जब जन्म पर ख़ुशी तो मृत्यु पर एक साल तक का मातम कैसा! उन्होंने तर्क देते हुए कहा कि पलायन की चपेट में पूरा उत्तराखंड है ऐसे में हर परिवार के पास मैदानी भू-भाग की तपस से बचने के लिए हमारे पहाड़ हैं और हर कोई गाँव आने का बहाना ढूंढता है व छुट्टियां प्लान करता है! हमारे मेले इस परम्परा को जीवित रखें हैं कि कम से कम हम ऐसे मौकों पर तो मिल ही लें ताकि वर्तमान के बच्चे अपनी लोकसंस्कृति का घालमेल कर अपने गाँवों के प्रति प्यार रख सकें उनके जहाँ में अपने गाँव की तस्वीर बन सके!
वे अबजू (किसी की मौत के बाद एक साल तक त्यौहार न मनाने की परम्परा) के बावजूद भी मेले को गतिमान रखने के ग्राम सभा के निर्णय को ऐतिहासिक मानते हैं! उनका कहना है कि इस से हमारी जनरेशन व नयी जनरेशन की सोच में आये गैप को मिटाने में हम सक्षम होंगे! हम इसे देव पूजा के रूप में हर बर्ष मनाएंगे और नयी पौध इसे शुरूआती दौर में पहाड़ पर गर्मियों की छुट्टियों का उत्सव मानकर चलेंगे इस से एक काम तो होगा ही होगा कि हम अपनी जड़ों की ओर वर्तमान को लौटाने में सफल होंगे!
बहरहाल खैरालिंग मेले की ध्वजा मिर्चोड़ा ग्राम में कट चुकी है व मेले का जयघोष भी हो चुका है अभी देखना यह बाकी है कि इस बार कितनी ग्राम सभाओं से मेले में ध्वजपताकाएं पहुंचेंगी!
 

2 thoughts on “खैरालिंग की ध्वजा के साथ मंडाण शुरू। मिर्चोडा गांव की पंचायत ने लिया ऐतिहासिक निर्णय..अब अबजू के बावजूद भी होगा हर बर्ष मेले का आयोजन।

  • June 3, 2018 at 2:59 pm
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    Jin Bhai Sahabji nay etna badiya jai Kharaling Devi Kay bishay may vistaar say battya, va vistrit jaankari di. Bahut Bahut Dhanyawad. Mainay pura lekh padha lakin muje etni jaankari pahlay nahi thee jaise kee Maa Kay Maiti, Sasural etayaadi.. Bhai Sahabji nay aapnay lekh mai Bahut he badiya va sunder tarikay say ullekh keys hai. Mai Dil say unka Dhanyawad karts hoo. From New Delhi

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