खारनी यानी कपडे धोने का यह साइंटिफिक तरीका क्या आपने भी देखा….!

खारनी यानी कपडे धोने का यह साइंटिफिक तरीका क्या आपने भी देखा….!
(मनोज इष्टवाल)
जब पहाड़ में पहाड़ से भी विकट जिंदगी थी..न सड़क ही थी और न इतना पैंसा की आदमी अपनी दैनिक दिनचर्या की वस्तुओं का उपभोग कर सके। अब कितने दिन कोई मैले कपड़ों में दिन गुजार सकता है। तब हमारे पुराने वैज्ञानिकों (भद्र जनों) ने कपडे धोने का यह तरीका इजाद किया. उन्होंने देखा कि हम दैनिक दिशाकर्म (शौच) निबटाने के बाद माटी या फिर राख से हाथ धो रहे हैं ..! शायद इसलिए की हाथों की बदबू समाप्त हो जाए लेकिन जब उन्होंने इस नित्य कर्म में राख से हाथ धोने के बाद हाथों की चमक देखि तो उनके दिमाग में यह विचार आया कि क्यों न हम राख से भी कपडे धोकर देखें। उन्हें जब शुरूआती प्रयोग ज्यादा लाभप्रभ नहीं लगे होंगे तब उन्होंने यह तकनीक अपनाई…और आप यकीन नहीं करेंगे यह तकनीक पिछले बीस बर्ष पूर्व भी जौनसार बावर जनजातीय क्षेत्र में यथावत चल रही थी ।

संसाधनों की कमी और धन के अभाव से जोझते ग्रामीणों ने इस तकनीक को विकसित किया इसे जौनसार बावर जनजातीय क्षेत्र में खारनी के नाम से जाना जाता है …!अपने अपने क्षेत्र में इसे अलग अलग नाम से पुकारा जाता है कोई खरवानी तो कोई खरमलडू कहते हैं..!
जैसा कि आप फोटो में देख ही रहे होंगे कि एक चौड़े तसले को ओखल (स्थानीय भाषा में इसे घुत्तु कहा जाता है) के ऊपर दो लकड़ी के माध्यम से उंचाई दी गई है तसले के निचले हिस्से पर बारीक छेद किये जाते हैं फिर उसके ऊपर घास को पतली सेवल (भेमल) की डोर से बांधा जाता है तदोपरांत उसमें राख को आटे की तरह गोंथकर रखा जाता है और पानी से उसे धीरे धीरे पतला किया जाता है …ताकि उससे रिसने वाला महीन द्रव्य जा ओखल में गिरे तो उसकी क्वालिटी अच्छी हो. और राख का पतला द्रव्य जब गिरकर ओखल में जाता है तो वह द्रव्य गंदे से गंदे कपडे बेहद सफाई से धुलता है। है न बात में दम।

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