खत्त सेली से दिल्ली तक पहुंचा वीर शहीद केसरी चंद का जन्मदिवस उत्सव!
(मनोज इष्टवाल)
जौनसार की धरती ने ऐसे कई वीर पुत्रों को जन्म दिया है जिन्होंने कालांतर से लेकर वर्तमान तक अपने अपने क्षेत्रों में अपनी अपनी योग्यताओं के माध्यम से अपने को करोड़ों में एक की पहचान दिलाई है. चाहे वह गोरखा आक्रमण के समय बैराट गढ़ से गोरखा सैनिकों को खदेड़ने की बात रही हो या फिर आजादी के दौर में अंग्रेजों भारत छोड़ो के आन्दोलन की बात! तमसा और यमुना से घिरे इस छोटे से क्षेत्र के जनजातीय निवासियों ने यकीनन अपने को लाखों में साबित किया है! यहाँ महिला श्रम की बात हो या पुरुष! कंधे से कंधा मिलाकर आगे चलने वाले इस समाज ने कृषि के क्षेत्र में भी विविधता लाते हुए कैश क्रोप की शुरुआत कर ऊँचे पहाड़ी टीलों पर भी तरह तरह की साग सब्जियों व बागीचे लगाकर स्वरोजगार का जो ताना-बाना बुना है वह मिशाल देने के लायक है.
सन 1920 में चकराता विकास खंड के ग्राम क्यावा खत्त सेली का एक ऐसा ही लाल पैदा हुआ जिसने फ़ौज में भर्ती होने के बाद आजाद हिन्द फ़ौज में नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के साथ कदमताल कर अंग्रेजों को भारत छोड़ने को मजबूर कर दिया! 10 अप्रैल 1941 में रॉयल आर्मी सर्विस कॉर्प्स में भर्ती हो गए। उन दिनों द्वितीय विश्व युद्ध के पूरे जोरों पर था। 29 अक्टूबर 1941 पर केसरी चंद, मलाया की लड़ाई के मोर्चे पर तैनात किया गया है। इस दौरान केसरी चंद को जापानी सेना ने बंदी बना लिया था।ब्रिटिश राज्य के खिलाफ साजिश का अपराध में केसरी चंद को मौत की सजा की सजा सुनाई। तीन मई 1945 को महज 24 साल की उम्र में उत्तराखंड के इस वीर सेनानी को लाल किले में फांसी दे दी गई।
आजादी के इस मतवाले की इस तरह मौत ने पूरे जौनसार बावर में शोक की लहर पैदा कर दी! शहीद के इस तरह फांसी के फंदे पर लटक जाने पर पूरे क्षेत्र में उनकी शहादत के कई गीत वहां की फिजाओं में वीर पुरुष के पौरुष बलिदान के गूंजने लगे. आजादी के कई बर्षों बाद आखिर वह दिन भी आया जब नगऊ क्यावा गाँव की चोटी चौलीथात में जुटने वाले बिस्सू मेले में गाँव के सयाणा खत्त सयाणा सदर सयाणा सहित आस पास की खत्तों से जुटे सयाणाओं ने तय किया कि उनके शहादत दिवस पर 3 मई को मेला आयोजित किया जाएगा. खबर मेले के माध्यम से हर गाँव तक पहुँच ही गयी और 3 मई 1986 में चौलीथात (रामताल गार्डन) में क्षेत्रीय जनमानस बिशाल हुजूम उनकी शहादत को सलाम करने पहुंचा. तय हुआ कि शहादत में इस वीर पुरुष को अपनी लोक संस्कृति के गाजे बाजे व लोक नृत्यों के साथ याद किया जाय. तब से आज तक यह दौर निरंतर चलता ही जा रहा है और मेला हर साल अपना ब्यापक स्वरूप लिए जाता है.
शहादत दिवस ही सब कुछ हो यह कुछ समाजसेवी कहाँ मानने वाले थे. आखिर नागथात क्षेत्र के समाज सेवी इंद्र सिंह नेगी ने कुछ साथियों के साथ सन 2008 में उनके जन्मदिवस 1 नवम्बर को गांधी पार्क के गेट से मनाने की शुरुआत रखी. यह शुरुआत इतनी मजबूत हुई कि वीर शहीद केसरी चंद समिति व वीर केसरी चंद युवा समिति ने इसे बेहद ब्यापक रूप देकर देहरादून में इसे मेले का रूप दे दिया. तब से हर बर्ष देहरादून में उनका जन्मोत्सव मनाया जाता है जिसमें रंगारंग कार्यक्रमों और क्रीडा प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है.
इंद्र सिंह नेगी के कदम यहीं नहीं रुके व उन्होंने विगत बर्ष क्षेत्र के लोक संस्कृतिकर्मी नन्द लाल भारती व अन्य सहयोगियों के साथ वीर केसरी चंद का जन्मोत्सव कार्यक्रम चकराता में मनाया तब से वहां भी लोगों द्वारा इसकी शुरुआत हो गयी. इस बर्ष उन्होंने क्षेत्र के प्रवासी गणमान्य व्यक्तियों के साथ दिल्ली में इस कार्यक्रम की रूपरेखा रखी व दिल्ली पैरामेडिकल एंड मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट के सीईओ डॉ. विनोद बछेटी से सहयोग लेकर उनके ही सभागार में प्रवासी जौनसारी समाज के साथ धूमधाम से वीर शहीद केसरी चंद के जन्मोत्सव कार्यक्रम को मनाया! वीर शहीद केसरी चंद के 98वीं विचार गोष्ठी में बोलते हुए पूर्वी दिल्ली के जिलाधिकारी कुलानंद जोशी ने कहा कि यह पूरे जौनसार बावर ही नहीं देश के लिए भी गौरान्वित क्षण हैं क्योंकि इस वीर ने जिस तरह फांसी पर लटककर स्वर्णाक्षरों में देश के इतिहास में नाम दर्ज किया वह हम सबके लिए अभिमान की बात है! इस अवसर पर डीएवीपी के निदेशक रमेश जोशी ने वीर केसरी चंद पर लिखी कविता सुनाकर उनके बलिदान को याद करते हुए उन्हें श्रधांजलि अर्पित की.
इस अवसर पर इंस्टिट्यूट के सीईओ डॉ. विनोद बचेटी ने वीर शहीद केसरी चंद को श्रधान्जली देते हुए कहा कि हर बर्ष वीर केसरी चंद के जन्मोत्सव पर जौनसार बावर क्षेत्र की भाषा बोली व लोक संस्कृति पर कार्य करने में योगदान देने वालों को 21 हजार की नगद राशि के साथ सम्मानित किया जाएगा. इस अवसर पर अणुव्रत सोसायटी के प्रेरक रमेश कांडपाल, गढ़वाली लेखक कवि दिनेश ध्यानी, समाजसेवी व चिन्तक इंद्र सिंह नेगी, शहीद केसरी चंद की पौत्री अमिता शर्मा इत्यादि ने भी अपने विचार रखे. इस अवसर पर मायाराम शर्मा, रमेश हितेषी, सुवर्ण रावत, shashi मोहन रवांल्टा, दर्शन सिंह रावत, सुलतान सिंह तोमर, सुभाष तराण, संजय शर्मा, अखिलेश शर्मा, सुरेन्द्र शर्मा, तारा दत्त जोशी, खजान दत्त शर्मा, सुनिता शर्मा, डॉ. पद्म सिंह नेगी,विद्यादत्त जोशी, जगमोहन आजाद, सुनील व राजपाल रावत इत्यादि मौजूद रहे.