क्यों सूखती जा रही है नैनी झील….कहीं उसके स्रोत की तरफ फ़ैल रही गंदगी व निर्माण कार्य तो नहीं इसकी वजह..?
क्यों सूखती जा रही है नैनी झील….कहीं उसके स्रोत की तरफ फ़ैल रही गंदगी व निर्माण कार्य तो नहीं इसकी वजह..?
(मनोज इष्टवाल)
विगत दो दिनों से लगातार मूसलाधार बारिश के बाद भी नैनी झील का जलस्तर ज्यों का त्यों बना हुआ है. यह कहा जाय कि अब भी जल स्तर कई फीट नीचे है तो कोई बड़ी बात नहीं होगी! कारणों की जांच भले ही साइंटिफिक तरीके से कयासबाजी के साथ ढूंढें जा रहे हों लेकिन हम धार्मिक और प्राकृतिक अंदाज में भी अगर इस पर शोध करें तो मुझे नहीं लगता कि हमें झील को बचाने के लिए ज्यादा मशक्कत करनी पड़ेगी!
समुद्रतल से 1938 मीटर उंचाई पर स्थित नैनी झील जहाँ नैनीताल शहर के दिल की धड़कन है वहीँ इसका वर्णन हिन्दू धर्म ग्रन्थों में भी मिलता है. स्कन्दपुराण को अगर आज के पुरोधा कहे जाने वाले बेहद विद्वान वर्ग के ये वैज्ञानिक व अफसर खंगाले तब उन्हें महसूस हो जाएगा कि आखिर नैनी झील के दिनों दिन लोप हो जाने के कारण क्या हैं! मेरी इस बात को मुर्खता समझकर हंसने वाले उन बुद्धिजीवियों को भी मेरी सलाह है कि वे अणु बम परमाणु बम के शोध व उनके निर्माण पर अमेरिकी या अन्य उन वैज्ञानिकों का नजरिया भी पढ़ लें जिन्होंने हमारे हिन्दू ग्रन्थों में वर्णित आकाशीय बिजली के निर्माण को ऋषि दधीचि की हड्डियों से जोड़कर उसी आकाशीय बिजली के पृथ्वी पर गिरने वाले टुकड़ों से इन बमों का निर्माण किया !
ऐसे में हम क्यों न नैनी झील को भी हिन्दू धर्म ग्रन्थों में वर्णित अध्यायों से जोड़कर देखें और इस झील को बचाने के लिए धार्मिक हिसाब से कारगर तरीका ढूंढें! स्कन्ध पुराण में वर्णित त्रिऋषि सरोवर अगस्त्य, अत्रि, पुलाह नामक ऋषियों नामक ऋषियों द्वारा इस झील के निर्माण सम्बन्धी जानकारी प्राप्त होती है. इन तीनों ऋषियों द्वारा अनजाने में किये गए अपराध के पश्चाताप की निवृत्ति के लिए यहाँ आना बताया गया है.
(nayana devi temple)
वहीँ शिब पुराण सहित कई अन्य धर्म ग्रन्थों में वर्णन मिलता है कि राजा यक्ष के हवन कुंड में अपने प्राण न्यौछावर करने वाली सति को गोद में उठाकर प्रलाप करते शिब जहाँ जहाँ भी आकाशीय मार्ग से सति के जलते शरीर को ले जाते वहीँ वहीँ पृथ्वी पर गिरते उनके अंगों से देवियों की उत्पत्ति का वर्णन मिलता है. नैनी झील नामक स्थान के किनारे जहाँ नयना देवी मंदिर अवस्थित है वहां माँ सति के बांयें नेत्र के गिरने से इसे नयना देवी माना गया है, इस प्रकार नयना देवी माँ सती के 64 अंश गिरने से 64 आदिशक्तियों में शामिल हुई! इस झील के बारे में कहा जाता है कि इसकी खोज ब्रिटिश काल में सन 1823 ई. में ब्रिटिश व्यक्ति जी.डब्ल्यू. ट्रेल द्वारा की गयी थी जो तत्कालीन कुमाऊ कमिश्नर थे. लेकिन माहरा गॉव के लोगों का कहना है कि यह ताल सदियों पूर्व से उनके पूर्वज जानते थे व यहाँ उनके भैंसे गर्मियों में चुगा करती थी लेकिन ट्रेल यूँहीं इतिहास पुरुष बन गए.
(jama masjid)
बर्ष 1841 में कुमाऊं कमिश्नर जी.टी. लुसिंगटन द्वारा इस निर्जन स्थान का नगरीकरण कर इसे नयना देवी के नाम से नैनीताल नाम दे डाला. व सन 1855 में अपना आयुक्त कार्यालय अल्मोड़ा से यहाँ शिफ्ट कर दिया. 1857 में यह नगर धीरे धीरे शहर के रूप में विकसित होने लगा व यहाँ ब्रिटिश बच्चों के पढ़ाई का शैक्षिक केंद्र बन गया. इसके बाद सन 1882-83 में इसे जिले की मान्यता मिली व सदी के अंत तक यह ब्रिटिश नागरिकों के लिए पर्यटन स्थल के रूप में जाने-जाना लगा!
अंग्रेजों ने अपने दौर में इस शहर व यहाँ की लोक संस्कृति व धार्मिक मान्यताओं का बेहद ख्याल रखा और हर संभव प्रयत्न किये कि झील दूषित न हो. लेकिन आजादी के बाद से अब तक जहाँ शहर ने धार्मिक व साहसिक व वैश्विक पर्यटन का बेहद व्यापक रूप लिया वहीँ अन्य मैदानी भागों से व्यवसाय के रूप में यहाँ शरण लेने आये लोगों ने शायद इसे कभी अपना शहर नहीं माना जिसके फलस्वरूप शहर में अंधाधुंध भवनों के निर्माण से इसकी सूरत तो चमकी लेकिन गंदगी के अम्बार बढ़ते गए. यहाँ स्थित जामा मस्जिद ने इतना बड़ा आकार फैलाया कि उसके पीछे का मल्ली ताल सारा मस्जिद की चकाचौंध में गायब हो गया. यहाँ बेशक हर धर्म का सम्मान करना हमारा दायित्व है लेकिन हर धर्म के अनुयायियों को यह भी सोचना जरुरी है कि यह हमारा शहर है व इसके इसकी साफ़ सफाई की जिम्मेदारी हम पर है. राज्य निर्माण के बाद जिस गति से यहाँ विभिन्न धर्मों के लोगों ने अपनी बसागत बसानी शुरू की उसके दुगनी गति से यहाँ गंदगी के अम्बार लगने शुरू हो गए. उत्तराखंड के हाईकोर्ट यही होने के बाबजूद भी इस शहर की हालत इतनी बदत्तर हो गयी है कि आये दिन इसमें आड़े-तिरछे निर्माण हो रहे हैं . शहर की आधी गंदगी मल्ली ताल से सीधे स्रोत के माध्यम से नयना देवी की बगल से बहती हुई झील में समाती है. उसमें मानव मल, मुर्गी, बकरी, बीफ के लोथड़े और विभिन्न किस्म का कूड़ा करकट गिरता ही जा रहा है लेकिन कोई इस ओर ध्यान देने को तैयार नहीं है. सिर्फ हवाई अंदाज में झील के संरक्षण के लिए करोड़ों की योजना धरातल पर लाने की बातें जरुर हो रही हैं. लेकिन इसका धार्मिक पक्ष नहीं देखा जा रहा है.
जले बिष्णु थले बिष्णु, बिष्णुर्बिष्णु हरे-हरे के सिद्धांत की कोई बात ही नहीं करना चाहता क्योंकि आधुनिक युग का भौतिकवाद खुद ही बिष्णु है और खुद ही जल! क्यों न हम सभी धर्म के अनुयायी एक जुट होकर नैनी झील के संरक्षण के लिए धार्मिक मान्यताओं के हिसाब से आगे आयें. न कि नैना देवी, जामा मस्जिद, गुरुद्वारा व धार्मिक उन्मादों के साथ! क्योंकि शहर भी हमारा है और प्रकृति भी हमारी ! इसलिए हमें नैनी झील में गिरने वाले विभिन्न स्रोतों की पवित्रता के लिए संगठित होना ही होगा वरना आने वाले कुछ सालों में नैनी झील के सूखने को धर्म से जोड़कर इस शांत शहर में धार्मिक उन्माद की आशंका बलबती हो सकती है. क्योंकि यह अकाट्य सत्य भी है कि कहीं न कहीं इस झील में गिरने वाली गंदगी से हमारी पवित्रता व धर्म ग्रन्थों में वर्णित ऐतिहासिक दृष्टिकोण हमें सजग रहने को प्रेरित करते हैं. अगर ऐसा नहीं है तब सात-ताल, भीमताल या नौकुचियाताल सहित अन्य ताल कैसे सुरक्षित हैं जहाँ मानव दखल कम है!