क्यों झेल रहे हैं सदियों से अमोला गांव के लोग माँ बालकुंवारी का श्राप!

क्यों झेल रहे हैं सदियों से अमोला गांव के लोग माँ बालकुंवारी का श्राप!

(मनोज इष्टवाल)
देवभूमि उत्तराखंड अपने मठ मंदिरों के लिए यों तो कालांतर से प्रसिद्ध रही है लेकिन उनकी चमत्कारिक शक्तियों के अनेकोनेक उदाहरण आज भी विद्धमान हैं। इन्हीं मंदिरों में एक पौड़ी जिले के जौरसी गाँव स्थित माँ बालकुंवारी का मंदिर भी है जिसकी शक्तियों के कारण आज भी अजमेर पट्टी के अमोला गाँव वासी उसके मंदिर परिसर में पैर रखने का साहस नहीं कर पाते!
(फोटो-हरीश कंडवाल)
 
किंवदन्ति है कि अमोला गाँव की सरहद बौडधार में खेतों की अच्छी फसल हो उसके लिए खेतों में गोठ/ग्वाठ(सारे गाँव या क्षेत्र की गाय/ बैल/बकरी/भेड़ इत्यादि एक जगह बाँधना) लगाईं गयी थी!
यह गाथ उस काल में बरसात यानि सावन भादौ मास की तो नहीं हो सकती लेकिन पुराने लोग कहते हैं कि उस दिन भयंकर बरसात थी! शायद जेष्ठ या आषाढ़ मास रहा होगा! कई खेतों में घरेलू पशु पसरे हुए कुछ जुगाली कर रहे थे तो कुछ आराम मुद्रा में लेटे हुए थे! गुठ्याळ (पशु चारक) अपने तम्बुओं में पसरकर सुख की नींद सो रहे थे! सारे दिन पशुओं को चुगाते थकान मिटाने के सिवाय और ऐसी बारिस में हो भी क्या सकता था. बिजली भी काल बनकर कड़क रही थी और बरसाती गदेरे उनफ़कर तबाही मचाने को आकुल नजर आ रहे थे!
देखते ही देखते बौडधार (बड़धार) के पहाड़ उखड़ने लगे! तबाही अपने चरम पर थी ऐसे में अमोला गाँव के सामने जौरासी गाँव की कुलदेवी माँ बालकुंवारी ने अमोला गाँव के देवता डंटवाल (हो सकता है यह ढौंटियाल शब्द का अपभ्रंश हो) को धाद (आवाज) लगाईं और चेताया कि तुझे कैसी नींद आई हुई है ! तेरा अमोला गाँव बहने वाला है और गोठ, खेत, पशु, पशुचारक सब बहने वाले हैं! उनकी रक्षा कर…!
कहते हैं कि अमोला गाँव के डंटवाल देवता ने न सिर्फ वह आपदा रोकी बल्कि खेतों सहित बह रहे लोगों पशुओं की रक्षा भी कि जिन्हें ये तक खबर नहीं लगी कि वे बह रहे हैं. उनकी जब नींद खुली तो देखा सारा बौडधार तबाह हो चुका है अपनी स्थिति देखी तब उन्हें आश्चर्य हुआ कि वे बडधार नहीं बल्कि वे बड़गाँव के नीचे के खेतों में अपने गोठ के साथ सुरक्षित थे!
उन्होंने हृदय से अपने कुलदेव का स्मरण किया तब कुलदेव ने रात में धाद (आवाज) दी कि हे अमोला वासियों मैंने तुम्हारी रक्षा तब की जब जौरासी गाँव की बालकुंवारी ने मुझे आगाह किया! मैं इसीलिए अपने साथ अमोला गाँव का सबसे बड़ा बकरा ले गया हूँ! तुम अब जौरासी गाँव की कुलदेवी बालकुंवारी की पूजा करो व उसे यथोचित्त मान सम्मान दो!
जौरासी गाँव की देवी को कैसे भला अपने गाँव लायें इस बात की युक्ति होने लगी क्योंकि उस काल में किसी गाँव के देवी देबता को अपने साथ ले जाना उस गाँव समाज का अपमान समझा जाता था व इस से कई युद्ध छिड जाया करते थे! ऐसे में योजना बनी कि सारा गाँव रातों रात माँ बालकुंवारी की मूर्ती को जौरासी से चोरी कर अमोला गाँव लाएगा और अक्सर होता भी यही था कि किसी देवता को अपने गाँव लाने के लिए चोरी के अलावा और कोई चारा भी नहीं होता था!
अमोला गाँव के लोग कुदाल सब्बल लेकर जौरासी गाँव के बालकुंवारी मंदिर पहुंचे. उन्होंने देवी की मूर्ती उठानी चाही लेकिन वह हिली तक नहीं! आखिर उसकी खुदाई शुरू हुई! जितनी खुदाई होती उतनी ही मूर्ती गहराई में उतरती जाती!
कई घंटों की मशक्कत के बाबजूद भी जब मूर्ती निकालने में सफलता हाथ नहीं लगी तब क्रोधित होकर एक ब्यक्ति ने मूर्ती के सिर पर कुदाल से वार कर दिया जिससे खून की धार फूट पड़ी! लोग यह देखते आश्चर्यचकित ही नहीं हुए बल्कि डर भी गए ! ऐसे में आकाशवाणी हुई कि हे अमोला वासियों मैं जौरासी की देवी हूँ और यहाँ मेरा पूरा मान-सम्मान होता आया है. इसलिए मैं तुम्हारे जबरदस्ती करने पर यहाँ से तुम्हारे गाँव नहीं आ सकती! तुमने जो मेरे साथ किया उसका दंड मेरे दोष के रूप में अब आप लोगों को भुगतना होगा!
आज से अगर अमोलागांव वासी मेरे मंदिर परिसर में आया तो मैं उसका कुल नाश कर दूंगी! फिर क्या था आकाशवाणी सुनकर सबने माँ से दंडवत माफ़ी मांगी और अपने कृत्य पर पछतावा किया! कहते हैं तब से अमोला का कोई भी व्यक्ति जौरासी के माँ बालकुंवारी मंदिर में नहीं जाता! और तो और जौरासी गाँव गाँव की वह बेटी भी मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकती जिसकी शादी अमोला गाँव हुई हो! वहीँ इसके उलट यह है कि अगर अमोला गाँव की लड़की की शादी जौरासी गाँव हुई हो तब वह मंदिर में जाने की अधिकारी है!
वर्तमान में भी देवभूमि उत्तराखंड में ऐसे कई धावडी (आवाज देने वाले) देवता हैं जो क्षेत्र में आने वाली बिपत्ति की पूर्व सूचना दे देते हैं इन्हीं में भूमि का भुम्याल भैरों सबसे ज्यादा रूप से प्रचलित हैं. ग्रामीण आज भी खेतों की फसल पकने व बुवाई के मौके पर अपनी अपनी कुल्देवियों आयर कुल देवताओं की पूजा प्रसाद ध्वजा निशान देते हैं!

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