क्या है विधायक की बेटी के दलित पति के पीछे का सच?
यह हर उस बाप के लिए बेहद पीड़ाजनक क्षण होते होंगे जो अपनी बेटी को अपना स्वाभिमान समझकर गर्व महसूस करता है, यह उस माँ के लिए बेहद शर्मनाक पल होते होंगे जिसकी मान मर्यादा तार तार कर कोई बेटी ऐसे कदम उठाने के बाद उन्हीं पर आरोप लगाना शुरू कर दे। आखिर क्या है इस कहानी के पर्दे के पीछे का सच… पढिये अनिता चौधरी की कलम से।

ये जो लड़का है अजितेश, साक्षी मिश्रा का नया नवेला पति , वो सिर्फ और सिर्फ दलित के नाम पर सहानभूति बटोर-बटोर कर मीडिया फुटेज खा रहा है, ये लड़का दलित अजितेश कितना बड़ा नमक हराम और घटिया सोच का है , जिस घर में वो रोज जाता था ,साथ बैठ कर खाना खाता था , रक दिन उसी के घर की बेटी को भगा ले गया , इसकी सोच कितनी घटिया और रूढ़िवादी है इस बात का अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि 2016 में इसकी सगाई हुई थी ,जिसमें लड़की वालों के 7 लाख खर्च हुए थे ,वो कर्ज लेकर ये खर्च उठाये थे लेकिन इसने एक घटिया सी दलील देते हुए उस सगाई को तोड़ दिया कि सगाई के बाद इसकी मां का देहांत हो गया जिसकी वजह से ये आहत हुआ।
कहीं न कहीं अपनी मां की मौत के लिये उस लड़की को ज़िम्मेदार ठहरा रहा था । विकृत मानसिकता वाला व्यक्ति । इस लड़के और साक्षी ने अपने घरवालों से इस बारे में एक बार भी नहीं बताए और सीधे भगलिये , और इनकी ये सारी बातें on record है । टीवी डिबेट में । लड़की का आरोप की पिता ने आज़ादी नही दी । अगर पिता ने आज़ादी नहीं दी होती तो बरेली जैसे छोटे शहर में स्कूटी नही चलाती , किसी दूसरे शहर में पढ़ाई के लिए नहीं जाती । और आज भाग कर दलित लड़के अजितेश से शादी करने के हिम्मत नही दिखाई होती । वो दलित लड़का अजितेश जान बूझ कर ये ,एक सोची समझी रणनीति के तहद किया है ताकि उसे एक राजनीतिक प्लेटफार्म मिल सके । उंसके हर हाल में हाथ में लड्डू है।
वो आगे ज़िन्दगी में जब जब हराएगा वो दलित कार्ड खेलेगा और राजनीतिक और ब्राह्मणवाद का आरोप लगा कर बरेली के विधायक मिश्रा परिवार का इस्तेमाल करेगा । कुछ सालों बाद आप देखिएगा साक्षी मिश्रा कितनी खुश नज़र आएंगी । इस पूरे प्रकरण में हारी सिर्फ साक्षी मिश्रा हैं । और एक गुजारिश है सामाजिक समानता और समरसता का बीड़ा उठाये मीडिया के कुछ महन्थों से , इस सामाजिक समानता की मिसाल अपने घर से शुरू करें और अपनी अपनी बेटियों के लिए दलित अजितेश जैसा वर ढूंढें और ब्याह रचाएं ।
यह लेख पूर्वाग्रही है, सच्चाई यह भी नही है, सच्चाई उस सोच में है जो सदियों से मनुष्य को दस बनाये रखने की है, जातिगत सच्चाई बहुत कटु है,
हो सकता है सच्चाई यह भी नहीं। शायद सच्चाई वह भी नहीं जिससे आप लेख को पूर्वाग्रही साबित करने की बात कह रहे हों।
सुंदर और सटीक लेख।
आज के युग में आजादी व आधुनिकता के नाम पर कुछ लड़कियां इसी तरह के आचरण कर अपने माँ ,पिता,परिवार व समाज को दुखी करती है और एक गलत मिसाल प्रस्तुत करती है।
शुक्रिया जी।