क्या हेमंत पांडे के कहने के बाबजूद भी भंग नहीं किया गया अभी तक उत्तराखंड फिल्म विकास परिषद ! पूर्व गठन पर ही उठाने लगी थी अंगुलियाँ!
क्या हेमंत पांडे के कहने के बाबजूद भी भंग नहीं किया गया अभी तक उत्तराखंड फिल्म विकास परिषद ! पूर्व गठन पर ही उठाने लगी थी अंगुलियाँ!
(मनोज इष्टवाल)
सिर्फ राजनीतिक स्वार्थों को सिद्ध करने के लिए आनन-फानन बने उत्तराखंड फिल्म विकास परिषद से जैसे ही तिग्मांशु धूलिया ने त्याग-पत्र दिया तभी पता लगने लग गया था कि यह परिषद सिर्फ राजनीतिक स्वार्थों को सिद्ध करने के लिए बनाई गयी है. फिर लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी व मनीष वर्मा ने परिषद छोड़ी. प्रदीप भंडारी ने भी परिषद छोड़ने की धमकी दी. विवाद पर विवाद जुड़ते रहे फिर भी यह परिषद चुनाव को देखते हुए भंग नहीं की जा सकी.
अब जबकि स्वयं परिषद के उपाध्यक्ष हेमन्त पांडे ने इसे भंग करने के लिए अनुरोध किया है तब नव-गठित सरकार जाने क्या सोचकर चुप है.
उत्तराखंड फिल्म विकास परिषद के गठन के बाद एकदम हतप्रभ रहे प्रदेश भर के फ़िल्मी जगत से जुड़े लगभग 150 से अधिक कलाकार, निर्माता-निर्देशक, कैमरामैन, स्क्रिप्ट राइटर्स में इस गठन की भारी नाराजगी है. वे इस बात से अचम्भित हैं कि आखिर प्रदेश में फिल्म विकास को जोड़कर जिस परिषद का गठन किया गया है उसकी नैतिकता का आधार क्या है. क्या मुख्यमंत्री कार्यालय में चंद लोगों की चाटुकारिता करने वाले लोग इस परिषद के सदस्य बनने लायक हैं.
फिल्म जगत से जुडी विभिन्न हस्तियों का मानना है कि उत्तराखंड फिल्म विकास परिषद के गठन से पूर्व इसके अध्यक्ष उपाध्यक्ष या सदस्य बनाये जाने की यह प्रक्रिया होनी चाहिए थी कि प्रदेश भर में फिल्म जगत से जुड़े या बर्षों से प्रदेश व देश का नाम इस क्षेत्र में रोशन कर रहे लोगों से उनका प्रोफाइल मंगवाकर इसकी चयन प्रक्रिया तय की जानी चाहिए थी, लेकिन न यह सरकार ने ही किया और न उन संगठनों ने जो फिल्म जगत का झंडा बुलंद करने के लिए सरकार को अपनी सेवाएँ दे रहे हैं.
इन संगठनों पर सीधा सीधा आरोप है कि इन्होने उत्तराखंड फिल्म विकास परिषद में अपने स्वार्थों की पूर्ती के लिए ऐसे चेहरे बैठा दिए जिन्होंने न अभिनय के क्षेत्र में ही कभी किसी फीचर फिल्म या डाकूमेंटरी फिल्म में काम किया और न ये टेक्नीकल ही कुछ जानते हैं. फिर इन उत्तराखंड फिल्म विकास परिषद में क्या काम.
यही नहीं उत्तराखंड के फिल्म जगत के पितामाह कहे जाने वाले पारासर गौड़ सरीके व्यक्ति तक यह नहीं पूछा गया कि क्या इस परिषद में वे अपनी उपस्थिति दर्ज करेंगे.
इन हस्तियों का मानना है कि मुख्यमंत्री को इस कमेटी के गठन पर या तो अँधेरे में रखा गया या फिर मुख्यमंत्री ने जानबूझकर ऐसा अविवेकपूर्ण निर्णय लिया है जो प्रदेश हित में दूर-दूर तक कहीं दिखाई नहीं देता.
उत्तराखंड फिल्म विकास परिषद के गठन के एक हफ्ते के अंदर पहले तिग्मांशु धूलिया अपना उपाध्यक्ष पद छोड़ते हैं फिर मनीष वर्मा यह कहकर पद त्याग देते हैं कि उन्हें उपाध्यक्ष बनाया जाना चाहिए था वहीँ कल के सोशल साईट की सुर्खी में इस कमेटी के सदस्यों की आपसी रंजिश खुलकर सामने आई है.
ऐसी परिषद के गठन से प्रदेश का कहाँ भला होने वाला है जिसने विक्टर बनर्जी, पारासर गौड़,उर्मि नेगी, हिमानी शिवपुरी, टाम अल्टर , नसरुद्दीन सिद्दीकी, अनुष्का शर्मा, वरुण बडोला, प्रसून जोशी, निर्मल पांडे, मनोज रमोला, दियालक्ष्मी, अली अबास जफर, हेमंत पांडे, सुधांशु पांडे, उदिता गोस्वामी, मधुरिमा तुली पन्त, चित्रांशी रावत, कुलराज रंधावा, कैनात अरोड़ा, लावण्या त्रिपाठी, बरखा बिष्ट, रागिनी नंदवानी, रूप दुर्गापाल, सुकृति कांडपाल, ज्योत्सना चंदोला, निहारिका सिंह, उर्वशी रौतेला, श्रुति बिष्ट, नेहा कक्कड़, फहद अली, राघव जुयाल, मनस्वी ममगाई, साक्षी चौधरी, कर्ण शर्मा, ऋचा पपनै, महेश भट्ट, संदीप भट्ट, बेला नेगी, मीर रंजन नेगी, बलदेव राणा, बलराज नेगी, सुदर्शंन जुयाल, नरेन्द्र गुसाई, दीपक भट्ट , राजू भट्ट, भगवान् नेगी, अनुज जोशी, मुकेश धस्माना,गणेश वीरान, लक्ष्मी रावत, सौकार सिंह रावत, कुंज बिहारी मुंडेपी कलजुगी, कांता प्रसाद ढौण्डियाल, विशाल नैथानी, दीपक डोबरियाल ,प्रकृति नौटियाल, वीरेंद्र नेगी, चन्द्र कैंतुरा,नन्द लाल भारती, राम कुमार वर्मा, महेश प्रकाश. जगत सिंह रावत, गुरमीत सपल, मदन डुकलान, राम रतन काला, बिनोद चंदोला, अनिल बिष्ट , मनोज इष्टवाल, विक्रम सिंह रावत, देवू रावत,भगवान् नेगी सहित सैकड़ों ऐसे नाम हैं जिन्होंने बड़े परदे पर बर्षों का अनुभव लिया है. उन्हें सिरे से किनारा कर दिया गया. आखिर यहाँ के फिल्म उद्योग से जुड़े संगठन किसके लिए बने हैं. क्या ये निजी स्वार्थों की पूर्ती के लिए बनाए गए है?
इस संदर्श में शीघ्र ही एक प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री से मिलेगा व उत्तराखंड फिल्म विकास परिषद के गठन पर पुन: विचार के लिए अनुरोध करेगा ताकि इस परिषद में वे चेहरे सम्मिलित हों जिनका मुंबई फिल्म इंडस्ट्री में अच्छा अनुभव हो व वे तकनीकी दृष्टि से भी इस क्षेत्र का ज्ञान रखते हों.