क्या हमें पता है कि एक पैंसा कितने भागों में बंटकर अस्तित्व में आया..!
क्या हमें पता है कि एक पैंसा कितने भागों में बंटकर अस्तित्व में आया..!
(मनोज इष्टवाल)
पौराणिक सभ्यता की बात करें तो मुग़लकाल तक हमारे देश का हर गरीब पाई-पाई के लिए मोहताज था अमीरों की तिजोरी में सोने की अशर्फियाँ तो मध्यम बर्ग के पास रुपप्या व निम्न बर्ग पैंसे में अपना गुजर बसर करता था. दो जून की रोटी जुटाने वाला परिवार पाई पाई जोड़कर धेला बनाताथा तो बेहद गरीब तबका फूटी कौड़ी जोड़कर दमड़ी तक ही पहुँच पाता था.
आज विकास की अंधी दौड़ में पैंसा कहीं है भी कि नहीं पता नहीं चलता. रूपये चलन में हैं लेकिन एक फूटीकौड़ी के बराबर एक सौ का नोट हुआ जबकि दस कौड़ी की कीमत एक हजार रुपया आंकी जा सकती है.
प्राचीन भारत की मुद्रा का विकास का विकास मुग़ल काल के बाद तेजी से उठा है. मुग़ल काल में फूटी कौड़ी से लेकर नौवें स्थान पर पहुँचने के लिए बेहद परिश्रम करना पड़ता था. अर्थात एक पैंसा जोड़ने के लिए आपको पहले 10 फूटी कौड़ी जोडनी पड़ती थी तब उसकी एक कौड़ी मूल्य बनता था फिर 10 कौड़ी से एक पाई बनती थी, 3/4 पाई का एक दमड़ी होता था वहीँ दो दमड़ी का एक धेला, दो धेले एक पैंसा और 64 पैंसे का 16 आना व 16 आने का एक रुपया होता था.
यानी इतनी लम्बी प्रतिक्रया के बाद आप एक रूप्या पाने के हकदार होते थे. ब्रिटिश समय मेंएक फौजी की मासिक तनख्वाह मात्र 3 रूप्या थी यानी 192 पैंसा जिसमें वह पूरे परिवार का गुजारा कर लेता था
पुराने समय की मिशालें अभी तकभी इस मुद्रा कोष की याद दिलाती हैं जैसे कहावत थी- फूटी कौड़ी नहीं दूंगा, या फिर फूटी कौड़ी नहीं है मेरे पास, या फिर पाई पाई के लिए मोहताज हूँ, धेले भर की कमाई नहीं हुई है अभी तक, पाई पाई का हिसाब रखूँगा. चमड़ी जाए पर दमड़ी ना जाए.
ब्रिटिश काल के शुरूआती दौर तक भी भारतीय अर्थ व्यवस्था का आंकलन दमड़ी से शुरू होना माना जाता है लेकिन कौड़ी फूटी हों या साबुत ये हमारे पुरखों के पास लम्बे समय तक रही क्योंकि इन्हीं कौड़ियों की मालाएं हमने बचपन में अपने बैलों के सींगों व गले की माला के रूप में खूब देखें हैं.
ब्रिटिश काल ने कौड़ी को नाकाफी समझते हुए दमड़ी से मुद्राकोष की शुरुआत करना सही माना जिसका मानक कुछ इस तरह तय हुआ जैसे- 256 दमड़ी = 192 पाई = 128 धेला = 64 पैसा (पुराने ) = 16 आना = 1 रुपया !
आज कहाँ दमड़ी और कहाँ एक पैंसा एक रूप्या तक सकल घरेलु बाजार में दम तोड़ रहा है. ऐसे में यह तो जरुर कहा जा सकता है कि मुद्रामें भारी गिरावट आई है जबकि मुद्राकोष भरा पडा है.