क्या जनरल खंडूरी की राजनीति का अध्याय समाप्त हो गया !
(मनोज इष्टवाल)
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के देहरादून दौरे के दौरान बागी कुछ तेवरों को यह कहकर डरा देना कि “निर्दलीय चुनाव लड़कर देख लो पता चल जाएगा” उस अंदेशे को दर्शाती है जो कहीं न कहीं लम्बे समय से इन 6 माह में राजनीति गलियारों में सुनाई दे रहे असंतुष्टों के स्वर थे! इस सब से वे खुद डरे हैं या फिर वह त्रिवेंद्र रावत सरकार को संक्रमण से गुजरते देखकर उसका इलाज कर गए हैं यह तो कहा नहीं जा सकता लेकिन इतना जरुर है कि उन्होंने स्पष्टत: संकेत दे दिए हैं कि जैसा वह चाहेंगे वही होगा यानि पूरे प्रदेश का रिमोट उनके हाथ में है और यहाँ सब मोहरे के रूप में काम करेंगे!
बहार हाल जहाँ नवरात्र के बाद मंत्रीमंडल में फेरबदल व दो मंत्रियों की नियुक्ति, दो मंत्रियों की कुर्सी खिसकने की बात भी सामने आ रही है उस से यह सब डराना या डरना लाजिम सी बात है चाहे वह त्रिवेंद्र सरकार की बात हो, केंद्र सरकार की बात हो या फिर विधायक मंत्रियों पर लगाम कसने की बात हो. सभी पर यह फोर्मुला फिट बैठता नजर आ रहा है.
विगत दिनों यह बात भी खुलकर सामने आई कि सिर्फ और सिर्फ अल्मोड़ा सांसद अजय टम्टा को आगामी लोकसभा चुनाव में अभयदान मिलने के आसार हैं जबकि अन्य चार सांसदों पर गतिरोध बना हुआ है. पौड़ी सांसद व पूर्व मुख्यमंत्री मेजर जनरल भुवन चंद खंडूरी के स्थान पर अन्य जनरल के दांव खेलने की बात भी सामने आ रही है! ऐसे में क्या यह समझा जाय कि जनरल खंडूरी का स्वास्थ्य उनके आड़े आ रहा है या फिर अमित शाह का अहम जो अपने सामने हर गर्दन झुकी देखना पसंद करते हैं!
जनरल खंडूरी निसंदेह आज भी पूरे उत्तराखंड की पहली पसंद हो सकते हैं क्योंकि उन पर भ्रष्टाचार के कोई आरोप नहीं लगे हैं और जनता की नजर में वे ईमानदार रहे हैं. भले ही उन्ही की सरकार के अति मह्त्वकांक्षी नेता ने उन्हीं के विरुद्ध विपक्ष का भरपूर इस्तेमाल करवाकर उनके सचिव सारंगी को हर संभव बदनाम कर विधान सभा के बाहर व अंदर खूब सारंगी बजवाई लेकिन फिर भी वे जनरल के दामन पर दाग लगाने में कामयाब साबित नहीं हो सके!
अब जबकि विगत कुछ बर्षों से यह देखा जा रहा है कि जनरल की विचारधारा समर्थित विधायकों को पार्टी हाई कमान व प्रदेश संगठन दूर रखने की कोशिश कर रहा है उस से साफ़ जाहिर है कि जनरल भले ही जनता की पहली पसंद हो लेकिन पार्टी के अंदर उन्हें दरकिनार किया जाने लगा है. वरना विगत दिनों यह संकेत नहीं आते कि लोकसभा टिकट में चार सांसदों की टिकट कट सकती हैं! ऐसे में क्या सचमुच जनरल खंडूरी की राजनीति का अध्याय समाप्त समझा जाय या फिर स्वयं अपने स्वास्थ्य कारणों से वे राजनीति से परहेज करने लगे हैं.
इसमें प्रबल संभावना नजर आ रही है कि अगर ऐसा कुछ हुआ तो उत्तराखंड राज्य के अंदर कोई नया गठजोड़ छोटे दल के रूप में प्रदेश की राजनीति में उभर सकता है, जिसमें प्रदेश के भारी भरकम राजनीति चेहरे दिखाई दे सकते हैं उनमें चाहे पक्ष हो या विपक्ष तोड़ तो जरुर और जरुर ढूँढने की फिराक में सभी लगे हैं!