क्या आपने भी पी है घिंघारू की चाय? काश….आप भी इसके औषधीय गुणों को पहचानते।

(मनोज इष्टवाल)

गढ़वाली लोकगीत जोकि हाल ही में सुप्रसिद्ध गायिका पूनम सती ने गाया है-“ननि-ननि घिंघर की दाणी, झुम्पा कैन तोड़ी दा, गाँऊँ कु पदान ब्वादा झुम्पा कैन तोड़ी दा” के वीडियो फिल्मांकन के दौरान जब गांव के पदान (प्रमुख व्यक्ति) यह प्रश्न उठाते कि इसकी टहनी किसने तोड़ी? तब से ही यह प्रश्न दिल में कौंधता था कि आखिर इस बेवजह के जंगली फल जिसे बच्चे व भेड़-बकरियां ही चाव से खाते हैं इसके लिए पदान जी क्यों चिंतित हैं?

लेकिन आज जब इसके चमत्कार के बारे में जाना तब पता लगा कि हम विज्ञान के क्षेत्र में अपने पूर्वजों से कितने पीछे हैं। si-beri (सी-बेरी) नामक अपनी चाय जब मैंने भू-वैज्ञानिक दिनेश कंडवाल जी को पिलाई तो वे चिहुँक पड़े। बोले-इस चाय के बारे में जानते हैं क्या आप। मैं बोला- हांजी, हिमाचल से लाया था जब धर्मशाला गया था। वे बोले- बस इतना ही! मैं बोला- हां, थोड़ा अलग सी चाय लगी ले आया। उन्होंने प्रश्न किया- क्या आपने बचपन में घिंघारू खाये हैं। मैं बोला- बहुत…! तो बोले- यह घिंघारू ही है। मैं सचमुच आवाक रह गया कि घिंघारू की भी चाय होती है क्या? उन्होंने कहा यह रक्तचाप सुचारू रखने व हृदय रोगियों के लिए बेहतर चाय है।

फिर क्या था मैं इसकी जानकारी जुटाने पर लग गया। पत्रकार मित्र दिनेश कुकरेती के एक लेख घिंघारू पर आखिर मिल ही गया वे इस फल के बारे में वे उसके औषधीय उपयोग के बारे में लिखते हैं- ” आड़ू और बेडू के साथ पहाड़ में घिंघारू (टीगस नूलाटा) की झाडिय़ां भी छोटे-छोटे लाल रंग के फलों से लकदक हो जाती हैं। मध्य हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों में समुद्रतल से 3000 से 6500 फीट की ऊंचाई पर उगने वाला घिंघारू रोजैसी कुल का बहुवर्षीय झाड़ीनुमा पौधा है। बच्चे इसके फलों को बड़े चाव से खाते हैं और अब तो रक्तवर्द्धक औषधि के रूप में इसका जूस भी तैयार किया जाने लगा है। विदेशों में इसकी पत्तियों को हर्बल चाय बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। पर्वतीय क्षेत्र के जंगलों में पाया जाने वाला उपेक्षित घिंघारू हृदय को स्वस्थ रखने में सक्षम है। उसके इस गुण की खोज रक्षा जैव ऊर्जा अनुसंधान संस्थान पिथौरागढ़ ने की है। संस्थान ने इसके फूल के रस से हृदयामृत तैयार किया है। घिंघारू के फलों में उक्त रक्तचाप और हाइपरटेंशन जैसी बीमारी को दूर करने की क्षमता है। जबकि, इसकी पत्तियों से निर्मित पदार्थ त्वचा को जलने से बचाता है। इसे एंटी सनवर्न कहा जाता है। साथ ही पत्तियां कई एंटी ऑक्सीडेंट सौंदर्य प्रसाधन और कॉस्मेटिक्स बनाने के उपयोग में भी लाई जाती है। घिंघारू की छाल का काढ़ा स्त्री रोगों के निवारण में लाभदायी होता है। छोटी झाड़ी होने के बावजूद घिंघारू की लकड़ी की लाठियां व हॉकी सर्वश्रेष्ठ मानी जाती हैं।”

बहरहाल जिस चाय को मैने टेस्ट के हिसाब से बेकार समझा हुआ था अब वही मेरे लिए औषधीय उपयोग की साबित हो रही है। आप भी घिंघारू के फल, पत्तियों, व फूलों से चाय पी सकते हैं ताकि आप भी निरोग रहें।

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