कौन होगा उन देव क्यारियों का रखवाला…क्या आज भी ऐसे ही खिले होंगे वहां ब्रह्मा जी के सबसे प्यारे ब्रह्म कमल….!
कौन होगा उन देव क्यारियों का रखवाला…क्या आज भी ऐसे ही खिले होंगे वहां ब्रह्मा जी के सबसे प्यारे ब्रह्म कमल….!
(मनोज इष्टवाल)
फूलों की घाटी का वह नजारा जिसे मैंने बर्षो पूर्व पूरे चरम पर देखा था उसी घाटी के भ्युंडार और पुलना गॉव के पहाड़ों को इस आपदा में मटियामेट होते देखा..यह वही घाटी है जहाँ के लोग हर वर्ष अपने देवपूजा में इन ब्रह्मकमलों को चढ़कर फूलों की घाटी में स्थापित अराध्य देवों की पूजा अर्चना करते थे…!
जून 2013 की आपदा के बाद इस घाटी के गॉव भ्युंड़ार और पुलना गॉववासियों ने जो बिध्वंस अपनी आँखों से देखा है वह उनके सपने में ही आकर उन्हें डराता होगा. अपने खेत खलियान घर आँगन की तबाही के मंजर की पीड़ा सहने वाले ये ग्रामीण फिर उठ खड़े हुए होंगे यह उम्मीद की जा सकती है लेकिन विगत कई घंटो से लगातार बारिश ने बदरीनाथ ही नहीं बल्कि केदारनाथ व गंगोत्री यमनोत्री घाटी में फिर से दहशत का माहौल बना दिया है.नदियाँ उफान लिए हुए हैं.
फूलों की घाटी ने विगत दो बर्ष पूर्व अपने बहुत बड़े हिस्से को बिखंडित होते हुए देखा है जिसकी चोट इस बर्ष भर पायी थी और ब्रह्मकमलों की इन पुष्प क्यारियों में फिर से बहार लौटी थी लेकिन पुलना व भ्युंड़ार गॉव के घाव भरने में अभी भी वक्त लगेगा
वहीँ सिख धर्म के अनुयायी भी इस बार लगातर हेमकुंड साहिब की यात्रा के लिए जत्थेवार रवाना जरुर हो रहे थे लेकिन विगत बर्ष की अपेक्षा इस बार उनकी संख्या में आपदा के बाद वृद्धि जरुर हुई थी. समुद्र तल से 3352 से 3658 मीटर की उंचाई पर स्थित भ्युंड़ार वैली में पड़ने वाली फूलों की घाटी में इस बार मनमोहक पुष्पों की बढौतरी होने का अनुमान है. घांघरिया के बाद पुलना व भ्युंडार गॉव ही इस वैली के दो मात्र गॉव हैं जहाँ के लोग इस क्षेत्र से ज्यादा परिचित हैं. 87.50 किमी की लम्बाई लिए फूलों की घाटी क्षेत्र में जब आप प्रवेश करेंगे तो आपको जोशीमठ से लगभग 19 किमी. आगे गोबिंदघाट तक सड़कमार्ग से आना होता है और गोबिंद घाट से फूलों की घाटी पहुँचने के लिए लगभग 13 किमी. पैदल ट्रेक करना पड़ता है. फूलों की घाटी के मात्र 3 किमी लम्बे व आधा किमी. चौड़े इलाके में ही मानव चहलकदमी की इजाजत है. जहाँ इन देव्क्यारियों में ब्रह्मकमल के अलावा पूरे संसार भर की पुष्प प्रजातियाँ आपको दिखने को मिलती हैं. इससे बड़ा आश्चर्य और हो भी क्या सकता है कि इन फूलों को न किसी ने बोया है न इनका कोई रखवाला है.भले ही नवम्बर से मई माह के मध्य घाटी सामान्यतः हिमाच्छादित रहती है। लेकिन जुलाई एवं अगस्त माह के दौरान एल्पाइन जड़ी की छाल की पंखुडियों में रंग छिपे रहते हैं। यहाँ सामान्यतः पाये जाने वाले फूलों के पौधों में एनीमोन, जर्मेनियम, मार्श, गेंदा, प्रिभुला, पोटेन्टिला, जिउम, तारक, लिलियम, हिमालयी नीला पोस्त, बछनाग, डेलफिनियम, रानुनकुलस, कोरिडालिस, इन्डुला, सौसुरिया, कम्पानुला, पेडिक्युलरिस, मोरिना, इम्पेटिनस, बिस्टोरटा, लिगुलारिया, अनाफलिस, सैक्सिफागा, लोबिलिया, थर्मोपसिस, ट्रौलियस, एक्युलेगिया, कोडोनोपसिस, डैक्टाइलोरहिज्म, साइप्रिपेडियम, स्ट्राबेरी एवं रोडोडियोड्रान इत्यादि प्रमुख हैं। फूलों की 500 से अधिक प्रजातियों से सजा हुआ यह क्षेत्र बागवानी विशेषज्ञों या फूल प्रेमियों के लिए एक विश्व प्रसिद्ध स्थल बन गया।
किंवदंती है कि रामायण काल में हनुमान संजीवनी बूटी की खोज में इसी घाटी में पधारे थे। इस घाटी का पता सबसे पहले ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रैंक एस स्मिथ और उनके साथी आर एल होल्डसवर्थ ने लगाया था, जो इत्तेफाक से 1931 में अपने कामेट पर्वत के अभियान से लौट रहे थे। इसकी बेइंतहा खूबसूरती से प्रभावित होकर स्मिथ 1937 में इस घाटी में वापस आये और, 1938 में “वैली ऑफ फ्लॉवर्स” नाम से एक किताब प्रकाशित करवायी। जिसके बाद इस घाटी का नाम ही वैली ऑफ़ फ्लावर्स पड गया .
16 – 17 जून 2013 की प्राकृतिक आपदा ने इन ब्रह्म क्यारियों को भी बेहद नुक्सान पहुंचाया वहीँ फारेस्ट विभाग द्वारा स्थानीय लोगों के भेड़ बकरियों के घाटी में प्रवेश पर लगाईं पाबंदी से भी यहाँ की फूलों की प्रजातियों में दिनों दिन गिरावट होने के संकेत मिल रहे हैं क्योंकि इन पुष्प क्यारियों को दुपाहे के गोबर मूत्र की कमी होने से वहां की पैदावार प्रभावित हुई है.
फूलों की घाटी को यहाँ का आम जनमानस देव क्यारियों के रूप में जानता है. वे इसे ब्रह्मा जी द्वारा बोई गई पुष्प प्रजातियाँ समझते हैं और उन ब्रह्म कमलों का उतना ही आदर करते हैं. मेरे मित्रों द्वारा सन 2005 में भ्युंडार गॉव में आयोजित देवपूजा में शिरकत की गई थी उस दौरान यहाँ के ग्रामीण अपनी अपनी टोकरियाँ लिए ब्रह्म कमल चुनने इस घाटी में पहुंचे थे और ढेरों ब्रह्म कमल लाकर अपने मंदिर में उनकी पूजा कर उसे देवता को चढ़ावा दिया और उसे ही प्रसाद स्वरूप हमें भी दिया था लेकिन कुछ बर्ष बाद जंगलात ने इन्हें चुनने की पाबंदी लगा दी थी .कहा जाता है कि तब से निरंतर ब्रह्म कमलों की संख्या में गिरावट आ रही है लेकिन न सरकार व सम्बंधित विभाग यहाँ भेड़ बकरियों को चुगाने की अनुमति ही दे रहा है और न ही ग्रामीणों को फूल चुनने की अनुमति.
अब प्रश्न यही है कि क्या आपदा के बाद घाटी फिर इतने ही उन्नत ब्रह्म कमलों से भर पाएगी..जिव्हा में शब्द आकर मन को चोट पहुंचा रहे हैं…! या फिर पुन: वह रौनक लौट पाएगी जो बर्ष 2013 से पहले इस घाटी में हुआ करती थी. इस बर्ष आया मानसून किस ओर इशारा करता है यह तो भविष्य की गर्त में है लेकिन विगत कई घंटों से लगातार हो रही बारिश से जहाँ यात्रा प्रभावित हुई है वहीँ जनमानस भी सहमा सहमा है. विशेषकर भ्युंडार घाटी में पड़ने वाले घांघरिया, पुलना और भ्युंडार गॉव का।