कोरोना के साथ, कोरोना के बाद उत्तराखंड.! घर आ जा परदेशी तेरा गाँव बुलाये रे..!

(मनोज इष्टवाल/सम्पादकीय)
*राजधानी से जिला, जिला से विकासखंड व विकास खंड से ग्राम स्तर तक पहुंचे कार्ययोजनायें!
*हर ग्रामसभा में आयोजित हों बैठकें, दिए जाए युवाओं को गाँव में रुकने के प्रलोभन ! बांटे जाएँ प्रदेश सरकार द्वारा जारी स्वरोजगार योजनाओं सम्बन्धी पर्चे !
*कृषि, कुटीर उद्योग, बागवानी, मत्स्य पाल, मुर्गी-बकरी-भेड़पालन, से लेकर हर वह छोटा बड़ा काम जो बाहर से आये लोग यहाँ करके एक आम नौकरी से ज्यादा कमा रहे हैं!
*उत्तराखंड के 2430 प्राइमरी स्कूल बंद होने के कगार पर!
* 10 साल में 700 गांव बंजर हो गए, 3.83 लाख लोगों ने अपना गांव ही छोड़ दिया!
* शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, खेती बाड़ी ही पर्वतीय जिलों के बुनियादी सवाल!
अब इस दहशत को देखिये जिसने पूरी दुनिया हिला दी! इस दहशत को महसूस कीजिये जिसने आम बिमारी में अस्पताल खाली कर दिए, जिसने मृत्यु दर घटा दी! जिसने नदी, पवन, घटा और पर्यावरण एकाएक शुद्ध कर दिया! इस दहशत का अनुमान लगाइए कि भागदौड़ भरी जिन्दगी में अपने ही घर के जो रिश्ते थे उनमें करीबी ला दी! आज सास बहु में झगड़ा नहीं है क्योंकि कान भरने वाला तीसरा नहीं है! आज पति-पत्नी में क्लेश नहीं है क्योंकि तीसरी या तीसरे का शक पैदा करने वाली खबर उनके कानों में नहीं जाती! आज बुजुर्ग खुश हैं क्योंकि उनकी देखरेख में बहुएं व नाती-पोते बेटे उनसे समय-समय पर बतिया रहे हैं! यही तो श्रृष्टि थी….यही तो मानवता थी!
आज हम घर के आस-पास पशु-पक्षियों को देखकर आनन्दित हो रहे हैं! हम रोमांच महसूस कर रहे हैं जब एकाएक वन्य जीवों को सड़कों पर विचरण करते हुए व बंद घरों, दुकानों को ताकते हुए देख रहे हैं! उन्हें भी शायद यह चिंता हो गयी कि विश्व का सबसे विध्वंसक प्राणी आखिर गया कहाँ?

ये चीन की लैबोटरी निर्मित वायरस है या प्रकृति प्रदत्त..! बहरहाल जो भी है इसने पूरे विश्व को इंसानियत तो सिखा दी! उसे वह तरीके तो सिखा दिए कि वह बीमार उसके कारण नहीं अपनी गलतियों के कारण पड़ता है! वह मरता मेरे कारण नहीं बल्कि अति के कारण मरता है! वह मेरे आगे भिखारी है भिखारी ही रहेगा क्योंकि मैं जब चाहूँ उसे धन दौलत के अभिमान से सड़क में ला दूँ! आज अमीर वातानुकूलित कमरों से परहेज कर रहा है! फिल्टर वाटर की जगह नल से निकले पानी को गुनगुनाकर पी रहा है! वह सब्जियां, अंडे, मटन, चिकन, फिश इत्यादि बहुत सोच समझकर खा रहा है! वह शराब भी एक औसत मात्रा में ही पी रहा है क्योंकि वह जानता है कि कल शराब खत्म हो गयी तो उसकी रगों में खून की जगह भरी दारु उसे जीने नहीं देगी! कहाँ गए वह पान प्राग गुटका तम्बाकू की पिचकारी मारने वाले! घर में यह सब करेंगे तो बीबी के बेलन और बच्चों की फटकार पड़ेगी!
जब यह सब है तो फिर हम उन दिनों लापरवाह क्यों हो जाते हैं जब हमें मृत्यु दहशत नहीं होती! आजकल कहाँ गए वे सडक अक्सीडेंट व तेज गाड़ी चलाकर ट्रेफिक नियमों का उल्लंघन करने वाले? ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं जो बताते हैं कि प्रकृति जिस अनुशासन के साथ स्वयं रहती है वह उसी अनुशासन की अपेक्षा दूसरे से भी रखती है!
बहरहाल यह सब तो कोरोना सम्बन्धी वह साकारात्मक विचारधारा है जो हम सब बहुत अच्छे से जानते हैं! अब आते हैं उत्तराखंड राज्य से हुए बेतहाशा पलायन पर….!
जिस राज्य की जनसंख्या एक करोड़ 86 हजार 292 (1,00,86,292) है व लिंग अनुपात में पुरुषों की अपेक्षा अब महिलायें पिछड़ रही हों! यानि 1000 पुरुषों के सापेक्ष 963 महिलायें हों! जनसंख्या घनत्व 189 प्रतिवर्ग किमी. हो व 2017-18 के सरकारी आंकड़ों के हिसाब से प्रतिव्यक्ति आय 1,73,820 रूपये हो तो भला उस प्रदेश में पलायन की क्या आवश्यकता!
अब बात करते हैं जनसंख्या घनत्व की..! प्रदेश में 51,37,773 पुरुष व 49,48,519 महिलायें हैं, अर्थात पुरुषों से 1,89,254 महिलायें कम ..! तो आप खुद ही अनुमान लगा सकते हैं कि आने वाले दिनों में हमारी कितनी औलादें कुंवारी रह जायेंगी व कितनों को हरियाणा की तरह शादी के लिए भटकना पडेगा ये अनुमान लगाया जा सकता है! अभी फिर भी स्थिति ज्यादा खराब नहीं हुई लेकिन वह समय भी दूर नहीं कि जब औलादें कुंवारी रहेंगी तब अन्य राज्यों की तरह उत्तराखंड में भी बलात्कार जैसे जघन्य अपराध होने शुरू हो सकते हैं!
देहरादून, हरिद्वार, उधमसिंह नगर जिलों की अगर बात करें तो यहाँ क्रमशः 16,96,694+18,90,422+16,48,902=52लाख,36हजार,18 लोग रह रहे हैं अर्थात पूरे उत्तराखंड की जनसख्या के आधे से भी अधिक लोग ! क्योंकि बाकी के पर्वतीय 10 जिलों में वर्तमान में 48लाख,50 हजार 274 लोग निवास करते हैं! यह आंकडा सचमुच चौंका देने वाला है! ये आंकड़े 2011 की जनगणना के अनुसार हैं!
यह और भी चौंका देने वाली खबर है कि उत्तर प्रदेश के जमाने में गढवाल मंडल मुख्यालय पौड़ी व कुमाऊं मंडल मुख्यालय अल्मोड़ा में जहाँ जनसंख्या घनत्व सबसे अधिक था वहीँ आज जनसंख्या घनत्व वृद्धि दर इन दोनों ही जिलों में सबसे निचले पायदान पर है! 20 बर्ष के राज्य में अब तक की सरकारों ने इसे नजरअंदाज किया जबकि पिछले चुनाव में भाजपा के एजेंडे में पलायन पर रोकथाम मुख्यमुद्दा था! ऐसा नहीं कि भाजपा की वर्तमान त्रिवेंद्र सरकार ने अपने एजेंडे में शामिल इस बिषय पर कोई काम नहीं किया हो! किया है…पलायन आयोग पौड़ी में बनाकर! लेकिन नतीजे सिफ़र…! आज भी पलायन आयोग के पास अपने कोई आंकड़े हों उसमें भी संदेह ही होता है क्योंकि कहीं भी अभी तक पलायन आयोग अपनी कार्यनीति का संतोषजनक परिणाम प्रस्तुत नहीं कर पाया है, ऐसा आम लोगों का मानना है! ऐसे में अगर हम सिर्फ प्रदेश के मुखिया पर ही प्रश्न उठायें तो फिर उन नीति-नियंताओं का क्या जो इस ओर सख्ती से कदम नहीं उठा रहे हैं! क्या नौकरशाह व राजनीति के बीच कोई ऐसी खाई इस प्रदेश में रही है जो भरनी सम्भव नहीं है! या फिर हमारी अकर्मण्यता आड़े आ रही है!
देश में जनसंख्या घनत्व के हिसाब से प्रदेश 25वें स्थान पर आता है! और अगर सम्पूर्ण उत्तराखंड का जनमानस जो प्रदेश से बाहर देश के अन्य राज्यों में जा बसा है या विदेश में जा बसा है उन्हें जोड़ दिया जाय तो यही जनसंख्या घनत्व में हम लगभग 18 या 20वें स्थान तक पहुँच सकते हैं! जहाँ कभी लिंगानुपात सबसे सुखद हुआ करता था वही प्रदेश आज लिंगानुपात में 17वें स्थान पर है! यह आश्चर्यजंनक लेकिन कटु सत्य है कि पौड़ी जनपद जनसंख्या वृद्धि के हिसाब से पूरे प्रदेश में सबसे पिछड़ा हुआ है! उसकी जनसंख्या वृद्धि दर 1.41 है जबकि अल्मोड़ा जनपद लिंगानुमात में पूरे प्रदेश में सबसे मजबूत स्थिति में नजर आता है!
लेकिन वर्तमान हमारा इन्तजार कर रहा है! कोरोना वायरस की मार से जितनी तेजी से शहरी क्षेत्रों में बसे पर्वतीय जनपदों के लोग रिवर्स माइग्रेशन कर रहे हैं वह एक पल के लिए सुखद तो लग रहा है लेकिन अगले ही पल फिर विचार बदलता है कि क्या ये लोग सिर्फ कोरोना महामारी से बचने के लिए पहाड़ लौटे हैं?
राज्य निर्माण के बाद से लेकर अब तक प्रदेश में हिन्दुओ की अपेक्षा तीन गुना मुस्लिम आबादी बड़ी है और सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी बढ़ने वाला प्रदेश हरिद्वार है, जो हिन्दुओं की धर्मनगरी कहलाती है! यही कारण भी है कि हरिद्वार की आबादी 2011 की जनसंख्या गणना के आधार पर प्रदेश में सबसे ज्यादा है!
बहरहाल सबसे बड़ा बिषय यह है कि क्या कोरोना संक्रमण से पहले व लॉकडाउन समाप्त होने के पश्चात जिस तेजी से प्रदेश के पहाड़ी जिलों में डेढ़ से दो लाख तक जनपदवासियों के लौटने का अनुमान है, उसके लिए प्रदेश सरकार के पास ऐसी कोई कारगर नीति है ताकि ये लौटकर फिर वापस न जाएँ व रिवर्स माग्रेशन का सरकार उदाहरण पेश कर सके!
मुझे लगता है कि प्रदेश सरकार को अभी से एक सटीक कार्यनीति बनानी शुरू कर देनी चाहिए! सूत्रों के अनुसार पौड़ी जिले के जिलाधिकारी धिराज गर्ब्याल ने ऐसी ही एक कार्यनीति पर काम करना भी शुरू कर दिया है! उन्होंने प्रत्येक ग्राम सभा से इस दौरान गाँव लौटने वाले लोगों की लिस्ट मांगकर यह कार्यनीति अपनाई है कि किस तरह प्राइवेट सेक्टर में काम करने वाले युवाओं को यहीं उनकी इच्छा के आधार पर रोजगार दिया जाय या फिर उन्हें कुछ ग्रामीण स्तर के कुटीर उद्योग, कृषि बागवानी, सब्जी, बैकरी, होटल सम्बन्धी इत्यादि का प्रशिक्षण दिया जाए ताकि वे अपने गाँव में ही रहकर उससे अधिक धन कमा सकें जितना वह बाहर नौकरी कर गुजर-बसर के लिए कमा रहे हैं!
मुझे लगता है सरकार को एक ऐसी रणनीति के तहत काम करना होगा जिससे आम ग्रामीण तक सरकारी योजनाओं की जानकारी आसानी से उपलब्ध हो सके! जैसे- सरकार जिले से विकास खंड व विकास खंड से हर ग्राम प्रधान तक अपनी हर उस स्वरोजगार से जुडी योजना का ब्रोजर उपलब्ध करवाए व हर ग्राम सभा प्रधान व ग्राम पंचायत अधिकारी को आदेश जारी करे कि वह आम बैठक बुलाएं जिसमें गाँव छोडकर बाहर रोजगार के लिए निकले युवा भी शामिल हों व बैठक में उन्हें उन योजनाओं से कैसे लाभ मिले कितनी सुगमता के साथ वह उन योजनाओं का लाभ उठा सकते हैं, यह सब जानकारी उपलब्ध करवाए तो हो सकता है कि युवाओं के कदम अपने गाँव में ही रुक जाएँ व फिर से बंजर होते गाँव सरसब्ज होने शुरू हो जाएँ! क्या निम्न प्रश्नों पर सरकार या फिर आम जनता कर सकती है अमल:-
*राजधानी से जिला, जिला से विकासखंड व विकास खंड से ग्राम स्तर तक पहुंचे कार्ययोजनायें!
सरकार अड़वाइजरी जारी तो करती है लेकिन सख्त निर्देशों के साथ यह जहमत नहीं उठाती कि क्या सरकारी योजनायें ग्रामीण स्तर तक पहुँच भी पाती हैं?
*हर ग्रामसभा में आयोजित हों बैठकें, दिए जाए युवाओं को गाँव में रुकने के प्रलोभन ! बांटे जाएँ प्रदेश सरकार द्वारा जारी स्वरोजगार योजनाओं सम्बन्धी पर्चे !
इस कार्यनीति पर आज तक किसी सरकार ने कार्य नहीं किया! योजनायें अखबारों में छपकर रद्दी के ढेर में शामिल हो जाती हैं लेकिन ग्राम स्तर तक किसी को भी ऐसी सरकारी किसी योजना की जानकारी नहीं होती जिससे यहाँ के युवा लाभ ले सकें! आखिर इन योजनाओं का पैंसा जाता कहाँ है व बंटता किसको है? यह भी शायद सरकारों के उच्च स्तर पर बैठे पदाधिकारी नहीं जानते व न ही मंत्री-मुखिया इत्यादि! क्योंकि कागजी पेट भरे उनकी टेबल पर होते हैं!
*कृषि, कुटीर उद्योग, बागवानी, मत्स्य पाल, मुर्गी-बकरी-भेड़पालन, से लेकर हर वह छोटा बड़ा काम जो बाहर से आये लोग यहाँ करके एक आम नौकरी से ज्यादा कमा रहे हैं!
इन योजनाओं का प्रचार प्रसार ग्रामीण स्तर पर हो तो ज्यादा बेहतर नतीजे सामने आ सकते हैं! हर ग्राम सभा में ग्राम प्रधान व ग्राम पंचायत मंत्री/ अधिकारी कम से कम तिमाही एक बैठक में योजनायें समझाएं!
*उत्तराखंड के 2430 प्राइमरी स्कूल बंद होने के कगार पर!
इसका सबसे बड़ा कारण पलायन है व दूसरा सरकारी स्तर पर चलाया जाने वाला जनजागरूकता कार्यक्रम में कमी!
* 10 साल में 700 गांव बंजर हो गए, 3.83 लाख लोगों ने अपना गांव ही छोड़ दिया!
प्रश्न यही उठता है कि आखिर क्यों? उत्तर प्रदेश के समय क्यों यही गाँव सरसब्ज थे व राज्य बनने के बाद अचानक ऐसा क्या हुआ कि हमने गाँव ही वीरान कर दिए!
* शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, खेती बाड़ी ही पर्वतीय जिलों के बुनियादी सवाल!
ये सभी सवाल नहीं प्रशासनिक व सरकार के स्तर पर अब तक की सबसे बड़ी नाकामी ! शिक्षा के नाम पर महिलायें बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलाने के लिए शहर ला रही हैं, जहाँ वह नैतिक शिक्षा व कृषि सम्बन्धी पढ़ाई से कोसों दूरियां बना देता है! सुंदर कपड़े व मोटी फीस देकर आम आदमी सोचता है कि उसका बच्चा आने वाले समय में भारत का भाग्य विधाता बनेगा लेकिन नैतिक शिक्षा की जानकारी न होने पर वह गलती से बड़ा आदमी तो बन जाता है लेकिन बड़ा बनते ही सबसे पहले अपने सड़े-गले माँ बाप को घर से बाहर कर देता है! स्वास्थ्य के क्षेत्र में हमने सरकारी अस्पतालों को हाई टेक करने की जद्दोजहद तो की लेकिन उसमें डॉक्टर्स नहीं दे पाए! ऐसे ही कई बुनियादी सवाल हैं जो अस्थिरता का माहौल बनाए हैं!
इसमें कोई दोराय नहीं कि सरकारी स्कूलों के कई युवा अध्यापकों ने अपनी स्कूलों का कायाकल्प कर दिया है व वहां छात्र संख्या बढ़ी है लेकिन सवाल यह है कि सिस्टम क्यों नहीं ऐसे अध्यापकों की पीठ थपथपाने का काम करता है ताकि उनकी देखा-देखी में और भी आगे आयें व ग्रामीण महिलाओं को यह कहने को न मिले कि बच्चे पढ़ाने के लिए बाहर निकलना मजबूरी है! शिक्षा व स्वास्थ्य अगर मजबूत हो तो स्वाभाविक सी बात है कम संसाधनों में भी ग्रामीण घरों में रुक सकते हैं!
बहरहाल सवाल दर्जनों हैं लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस समय पर्वतीय जनपदों में लौटने वाले युवाओं को कैसे गाँव में रोके रखने की कार्ययोजना ग्रामीण स्तर यानि ग्राम पंचायत स्तर पर प्रारम्भ की जाय! अगर हम एक बार में 10 पर्वतीय जिलों के 20 हजार युवाओं को भी रोक पाने में कामयाबी हासिल कर लेते हैं तो यह अब तक की सरकारों में इन 20 बर्षों के इस प्रदेश की इस सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि होगी!