कैसे पाटेंगे जनता और मंत्रियों की बीच बढ़ते फासले ये अधकच्चे जन सम्पर्क अधिकारी! संगठन इन्हें प्रशिक्षित करे वरना सरकार से जनसंवाद कठिन !
कैसे पाटेंगे जनता और मंत्रियों की बीच बढ़ते फासले ये अधकच्चे जन सम्पर्क अधिकारी! संगठन इन्हें प्रशिक्षित करे वरना सरकार से जनसंवाद कठिन !
(मनोज इष्टवाल)
सम्पादकीय
उत्तराखंड ही नहीं बल्कि भाजपा को हर उस राज्य में एक परेशानी उठानी पड़ रही है और वह है पार्टी द्वारा आरएसएस के कार्यकर्ताओं को हर मंत्री के साथ उन्हें बड़े पद पर बैठाना. यहाँ यह कतई गलत नहीं कि संगठन का व्यक्ति अनुशासन व अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ रहा है बल्कि यहाँ उनको मिले दायित्व मंत्री सरकार व जनता के लिए टेडी लकीर से कम नहीं हैं.
दरअसल जितने भी पदाधिकारी संगठन से राज्यों को मिले हैं या मंत्रियों के साथ बतौर निजी सचिव व जनसंपर्क अधिकारी हैं वे सभी संगठन के वसूलों को अदा कर रहे हैं. उनके जिस्म में अनुशासन कूट-कूट कर भरा है लेकिन वे अपनी चाकरी भी उस फौजी के अनुशासन की तरह कर रहे हैं जो उन्हें उनके अफसरों से आदेश की तामील करने को मिलते हैं. यहाँ आरएसएस का संगठनात्मक ढांचा गडबड़ा रहा हो या नहीं लेकिन हर मंत्री को अपने सरकारी विभाग के कामकाज में परेशानी जरुर उठानी पड़ रही है क्योंकि जितने भी संगठन द्वारा मंत्रियों को जन संपर्क अधिकारी के रूप में सेवा देने के लिए मिले हैं उन्हें जन समपर्क क्या होता है इसका ही पता नहीं है. वे सिर्फ आदेशों के पालन तक ही सीमित रह गए हैं क्योंकि उन्हें जनता से सीधे संवाद करने के तौर तरीके अभी तक मालुम नहीं चल पा रहे हैं. इस से भाजपा को एक नुक्सान हो रहा है कि उनके कार्यकर्ता व आम जनता की मंत्री व उनके कार्यालयों से सीधे तौर पर संवाद शून्यता के चलते सरकार मंत्री व जनता के त्रिकोण में खाई सी उत्पन्न हो रही है.
ऐसे में आम जन किस से अपना दुखड़ा रोये और कैसे अपनी समस्याओं का समाधान करवाएं यह न जन प्रतिनिधि समझ पा रहा है न जनता ! क्योंकि संघ द्वारा नियुक्त अपने वफादारों की फ़ौज के रूप में ये निजी सचिव या जन संपर्क अधिकारी न तो सरकारी के प्रति, न ही मंत्री के प्रति और न जनता के प्रति अपनी जवाबदेही का पालन कर रहे हैं. ऐसा लगता है जैसे उन्हें संघ ने सिर्फ मंत्रियों के कार्यों की समीक्षा व उन पर लगाम कसने के लिए इन्हें नियुक्ति दिलाई हो. ऐसे में यह तो तय है कि संगठनात्मक ढाँचे के मुख्य बिंदू के रूप में काम करने वाले निजी सचिव व जनसंपर्क अधिकारी राजनैतिक पृष्ठभूमि से न होने के कारण मंत्रियों का जनता से सीधा संवाद खत्म करवा रहे हैं या फिर अधकचरी जानकारियों से स्वयं भी भ्रम की स्थिति में है. जहाँ तक मेरा सोचना है कि संगठन से आये इन पदाधिकारियों के लिए कुछ समय के लिए एक ऐसा प्रशिक्षण आयोजित हो जिसमें ये जब जनता के बीच जाएँ या जनता इनसे संवाद करे तो इनके चेहरे पर जनता जनार्धन को अपने मंत्रियों का विजन झलके. उन्हें लगने लगे कि वाह हमारे मंत्री में ये काबिलियत है. और उनके पीआरओ की बात ही निराली है. क्योंकि सेवाभाव होने के बाबजूद भी संगठन अपने इन कार्यकर्ताओं को राजनैतिक विचारधारा में ढालने में कामयाब रहा हो ? उसमें जरा संदेह पैदा होता है !