केदार आपदा के बाद भी हमने सबक नहीं लिया- प्रो. गिरिजा पांडे!
नैनीताल 24 अप्रैल 2018 (हि. डिस्कवर)
“रोल ऑफ़ मीडिया इन डिजास्टर मैनेजमेंट” बिषयक पर एटीआई (एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट) में आयोजित कार्यशाला के दूसरे दिन आपदा प्रबन्धन और मानवजनित, प्राकृतिक व राजनीतिक, सांस्कृतिक आपदाओं को सोशल मीडिया से जोड़ते हुए जहाँ पहले सेशन में दून यूनिवर्सिटी से आये गौरव तिवारी ने सोशल नेटवर्किंग पर आपदाओं को फोकस किया वहीँ प्रो. गिरिजा पांडे ने मीडिया मैनेजमेंट में किस तरह खबर ट्विस्ट होकर कारोबार करती हैं उस पर अपना दृष्टिकोण रखते हुए कहा कि सन 2013 की बिनाश्कारी केदार आपदा के बाद भी हम सबक नहीं ले पाए हैं क्योंकि इस आपदा को लोग शायद जहन में तो रखते होंगे लेकिन इस पर शहर, मोहल्ले, गाँव बाजार पर कभी चर्चा का दौर जारी नहीं रहा और यही हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है!
वहीँ “रोल ऑफ़ मीडिया इन डिजास्टर मैनेजमेंट” पर जिला आपदा अधिकारी हरिद्वार मीरा कैंतुरा ने अपनी बात रखते हुए कहा कि आपदा प्रबन्धन के क्षेत्र न हमें हर जनपद स्तर पर मीडिया के साथ आपदा सम्बन्धी चर्चा जारी रखनी चाहिए क्योंकि कई बार आंकड़े सरकारी विभागों तक बाद में पहुँचते हैं और मीडिया उन पर पहले ही अपनी बात स्पष्ट कर देता है इससे उहापोह की स्थिति होती है और कई बार सरकारी आंकड़ों व मीडिया के आंकड़ों में अंतर स्पष्ट महसूस होता है! उन्होंने कहा इसीलिए हमें मीडिया से लगातार संवाद बनाए रखना चाहिए ताकि आपदा सम्बन्धी तैयारियों को लेकर आपसी चिंतन , मंथन व सामंजस्य बनाए रखने में हम कामयाब रहें! उन्होंने मीडिया द्वारा आपदाओं पर किये गए कार्यों की सराहना करते हुए कहा कि कोई भी आपदा बुलाये नहीं आती और यह हम देख चुके हैं कि विगत बर्षों की आपदा में मीडिया ने अपनी भागीदारी बखूबी निभाई है!
जिला सूचना अधिकारी पिथौरागढ गिरिजा जोशी ने कहा कि मीडिया को वास्तव में हम दे ही क्या रहे हैं! मीडिया का अपना सूचना तंत्र होता है जिसके लिए हम अपने स्तर पर यथायोग्य प्रयास नहीं जुटा पाते हैं! सूचना तंत्र मजबूत तब होगा जब ग्रामीण स्तर पर ग्राम प्रधान भी आपदा जैसे मामलों में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें या उनसे करवाई जाय ताकि तत्कालीन उहापोह की तस्वीर स्पष्ट हो सके और सही आंकड़े हम तक यथासम्भव पहुंचे!
देहरादून से आये वरिष्ठ पत्रकार अरुण शर्मा ने विकास की पीड़ा जाहिर करते हुए कहा कि जब भी कोई जनहित में अच्छा कार्य होना प्रारम्भ होता है और उस पर महकमों से लेकर निम्न स्तर तक लेन देन में कमी पेशी नजर आ रही हो तो अचानक कई एनजीओ उसके विरोध में उग आते हैं और वे क्यों उसके विरोध स्वरूप खड़े होते हैं यह बात किसी से छुपी नहीं होती! अरुण शर्मा ने कहा कि आपदा सिर्फ प्राकृतिक या मानव जनित ही नहीं होती बल्कि देश में सबसे बड़ी आपदा वर्तमान में सांस्कृतिक आपदा है! हम तेजी से अपनी संस्कृति का ह्रास कर रहे हैं जो बेहद चिंता जनक है! उन्होंने उत्तराखंड से लगातार पलायन करते जनमानस और खाली होते हुए गाँवों को भी आपदा से जोड़कर प्रश्न उठाया कि आखिर यह आपदा किस सिस्टम की देन है? उन्होंने कहा कि समाज में दिनों दिन आ रही विकृत्ति भी किसी आपदा से कम नहीं क्योंकि कभी एक जन की मृत्यु पर सब खड़े हो जाते थे आज दसियों के मरने पर भी कोई फर्क नहीं पड़ रहा यह समाज के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं! उन्होंने राजनीतिक आपदा को उत्तराखंड प्रदेश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य मानते हुए कहा कि यहाँ मुख्यमंत्री बाद में बनता है और उसके हटाये जाने पर चर्चा पहले होने लगती है! उन्होंने कहा कि नदियों के उथल होने के बाद भी हम इन 18बर्षों में अभी खनन की ठोस नीति नहीं बना पाए हैं!
दून यूनिवर्सिटी से आये गौरव तिवारी ने सोशल मीडिया पर जमकर बोला व अपने विचार रखते हुए कहा कि 2013 की केदार आपदा पर यदि समय से कार्य हो पाता तो शायद इसका सरूप आज बदला मिलता क्योंकि फारेस्ट विभाग के पास एक ऐसा सिस्टम जरुर होता है जो आपदा पर अपने वायरलेस के माध्यम से जानकारी दे सकता था! भले ही इस बाद पर परिचर्चा में कई जानकारों ने इसे नकारते हुए कहा कि ऐसे में जब सारे सिस्टम फेल हो गए हों तो फारेस्ट विभाग का वाकी-टाकी या वायरलेस सिस्टम जीवित रहा हो इस पर संशय है! उन्होंने कहा यदि हम टाइम पंक्चुअलिटी का ध्यान रखे तो कई सिस्टम सुधारे जा सकते हैं! उन्होंने कहा कि आज भी हमारे पास नेटवर्किंग की कमी है जबकि हम सब के मोबाइल पर जीपीआरएस है जिसका हम ढंग से इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं! उन्होंने जानकारी देते हुए कहा कि हमारी एयरफोर्स के पास ऐसे मिग विमान हैं जिनमें सारे जासूसी संयत्र लगे हुए हैं जिनका हम केदार आपदा में भरपूर इस्तेमाल कर सकते थे, लेकिन हम नहीं कर पाए! उन्होंने 20 हजार रूपये के मामूली खर्चे में एक ऐसी डिवाइस के इजाद पर भी अपनी बात रखी जो बड़ी आसानी से कई आपदाओं का अपडेट रख सकती है! उन्होंने सोशल मीडिया की बढती भागीदारी का स्वागत करते हुए चलचित्र के माध्यम से यह दिखाने की कोशिश की कि हम जब चाहे दुनिया के किसी भी कोने से सम्पर्क स्थापित कर सकते हैं लेकिन उसके लिए हमें अपडेट रहने की आवश्यकता है!
प्रो. गिरजा पांडे ने मीडिया तंत्र पर जाने से पहले कहा कि यह माना जा सकता है कि मनुष्य १ लाख बर्ष पूर्व आया होगा क्योंकि 70 हजार बर्ष पूर्व मानव संस्कृत होना शुरू हो गया था और आज से १० हजार बर्ष पूर्व उसने खेती करनी शुरू कर दी थी जबकि 14वीं सदी के आते आते उसकी वैज्ञानिक चेतना शुरू हो गयी थी! उन्होंने कहा मृत्यु भी ठीक वैसे ही वैकल्पिक है जैसे 9 नवम्बर 2000 से पूर्व उत्तराखंड उत्तर प्रदेश का हिस्सा था और इसके बाद उत्तराखंड एक विकल्प के रूप में उभरकर सामने आया!
उन्होंने कहा कि मीडिया समाज को मदद करने में काफी मददगार साबित हुई है, लेकिन वर्तमान में मीडिया में हुए मोनोपोलाईजेशन, ओलिजोपोलाइजेशन व ग्लोबोलाइजेशन के कारण मीडिया के मायने बदल गए हैं क्योंकि वर्तमान में मात्र एक सॉफ्टवेयर ने ओला, ओबेर, अमाजोन, फ्लिपकार्ड, ओयो, अलीबाबा जैसे कई ऐसे आप्शन तैयार कर दिए हैं जिनका मात्र अपना ऑफिस है और वे पूरी दुनिया में करोड़ों का कारोबार घर बैठे कर रहे हैं और तो और इनकी जीडीपी भारत से कई उपर चल रही है! आपदा विनाशलीला के साथ विकास लीला भी लेकर आई है जिसके ऐसे कई उदाहरण हैं! उन्होंने 1991 में उत्तरकाशी जनपद में आये बिनाश्कारी भूकम्प की चर्चा करते हुए कहा कि जहाँ जामक गाँव नेस्तानाबूत हो गया था वहीँ दूर दराज के रीई और गंगी के मकान पूरी तरह ढह गए थे! जंगलों के बीच बसे इन गाँवों में लकड़ी के मकानों पर छत्त भी लकड़ी की ही होती थी लेकिन उनके लिए आपदा प्रबन्धन के माध्यम से मकानों के उपर के लिए तर्कों में लदकर टिन की चादरें घुत्तु तक मोटर मार्ग तक पहुंची जहाँ से कई किमी. दूर इन गाँवों के लोगों को संदेश भेजा गया कि वे यहाँ से इन्हें ले जाएँ, लेकिन ग्रामीणों ने चद्दर ले जाने की जगह उन्हें ओने-पौने दामों पर वापस चद्दर व्यवसायी को ही वह बेच दी क्योकि इतनी दूर दुर्लभ मार्गों से चद्दरें ले जाना संभव नहीं था और ग्रामीणों को धन की सख्त आवश्यकता थी! ऐसे में फायदा बनियों ने ही उठाया !
उन्होंने आश्चर्य ब्यक्त करते हुए कहा कि केदार आपदा जैसी हालात में डील जैसा संस्थान देहरादून में होने के बाबजूद भी उस से जानकारी नहीं जुटाई जा सकी जो वास्तव में बेहद शर्मनाक है जबकि डील के पास उन्नत किस्म के ऐसे संयत्र हैं जो हर आपदा की हमें जानकारी उपलब्ध करा सकता है! उन्होंने मीडिया के बाजारीकरण पर बखूबी चर्चा करते हुए कहा कि मीडिया ने टीआरपी लेने के चक्कर में केदार आपदा में कई अतिशयोक्तियाँ भी की हैं भले ही उससे उस वक्त सूचना तंत्र मजबूत हुआ हो लेकिन मीडिया का वैश्वीकरण खबरों में कहीं न कहीं ऐसी दखल दे रहा है जो उचित नहीं है!
इस अवसर पर एटीआई की सहायक प्रोफेसर डॉ.मंजू पांडे, सहायक प्रोफेसर ओम प्रकाश, वरिष्ठ पत्रकार मनोज इष्टवाल, कृष्णा सेमवाल, जगदीश पोखरियाल, राकेश बिजलवान, सहित कई जिलों के सूचना अधिकारी व आपदा प्रबंधन अधिकारियों ने कार्यशाला में शिरकत की!