केदारनाथ पर फिर आपदा के संकट! चोराबाडी सहित तीन और झीलें दिखी उपग्रह चित्र में!

(मनोज इष्टवाल)

लगता है 2013 की केदार आपदा के नाम से बिनाशलीला का मंजर फिर रक्तबीज की तरह केदारनाथ में पनपने शुरू हो गए हैं! इस बार खतरा चोराबाड़ी से कम बल्कि चोराबाड़ी से तीन किमी. दूर बन रही एक बिशाल झील है! यह दावा वाडिया इंस्टिट्यूट देहरादून के वैज्ञानिकों ने किया है!

हाल ही में केदारनाथ में बन रही झील पर जहाँ एक ओर आजतक ने सबका इस झील की तरफ खींचा है तो वहीँ दूसरी ओर प्रदेश के प्रिंट मीडिया ने इसे सिरे से नकारने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी! आजतक के उत्तराखंड प्रभारी दलीप सिंह राठौर ने इस पर एक्सक्लूसिव रिपोर्टिंग करते हुए इस झील की खबर प्रमुखता से सिर्फ दिखाई ही नहीं बल्कि वाडिया इंस्टिट्यूट वैज्ञानिक भी इसे स्वीकार कर चुके हैं! यहाँ के वैज्ञानिकों का मानना है कि इस बर्ष बर्फवारी अधिक हुई है जिस कारण इन झीलों का आकार बढ़ सकता है और आने वाले समय में अगर इन पर नजर नहीं रखी गयी तो ये कभी भी बिनाश का कारण बन सकती हैं!

आपको बता दें कि उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्र में लगभग 9000 ग्लेशियर हैं जिनसे उत्तराखंड की प्रमुख 22 बड़ी नदियों में से 21 नदियाँ निकलती हैं! उपग्रह से प्राप्त चित्रों के आधार पर इस क्षेत्र में एक नहीं बल्कि चार बडी झीलें दिखने को मिली हैं वहीँ दूसरी ओर एसडीआरएफ की टीम ने यहाँ का स्थलीय निरिक्षण कर पाया है कि इस क्षेत्र में यूँ तो छोटी-छोटी कई झीलें हैं जिनसे फिलहाल कोई नुक्सान नहीं है!

ज्ञात हो कि विगत जून 16-17, 2013 को सम्पूर्ण उत्तर भारत में अतिवृष्टि ने एक प्राकृतिक आपदा का स्वरूप ग्रहण कर सम्पूर्ण क्षेत्र में भयंकर तबाही मचाई किन्तु उत्तराखण्ड राज्य में धार्मिक स्थलों विशेषकर बद्रीनाथ व केदारनाथ में अत्यधिक यात्रियों व पर्यटकों की भीड़ होने के कारण सर्वाधिक जन-धन की हानि का सामना करना पड़ा। जिसमें 5700 यात्रियों व पर्यटकों को मृत घोषित किया गया तथा लगभग 1,17,000 लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाया गया। क्षेत्रीय अध्ययनों व उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार 80% सड़कें या तो अनुपयोगी हो गई या वह नष्ट हो गईं। संपूर्ण त्रासदी की भयंकरता का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि इस आपदा में 175 पुल, 1307 सड़कें, 4207 घर, 649 पशुघर नष्ट होने के साथ-साथ 9519 पशुओं की जानें भी गई थीं। 

बहरहाल वाडिया इंस्टिट्यूट के वैज्ञानिकों का मानना भी यही है कि फिलहाल 2013 जैसे बिनाशलीला के अभी कोई संकेत तो नहीं दिखाई देते हैं क्योंकि चोराबाड़ी ग्लेशियर का एक मुंह खुल चुका है जिससे वहां उतना पानी जमा नहीं हो रहा है जो तबाही मचा सके लेकिन चोराबाड़ी के आस-पास बन रही छोटी बड़ी हर झील पर हमें नजर बनाए रखनी होगी ताकि भविष्य में कभी ऐसी घटना होने के आसार नजर आये तो हम पूरी तैयारी के साथ उस से निबट सकें!

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