कुसुम पंत की बेहतरीन अदाकारी- फट जा पंचधार।

कुसुम पन्त की बेहतरीन अदाकारी-फट जा पंचधार।
(मनोज इष्टवाल)
कुसुम पन्त जब आम जिंदगी में दिखती हैं तो एक चुलबुली नटखट व बेहद मधुर व्यवहार की अबोध सी लगने वाली एक लड़की लगती हैं। लेकिन जब उनका हाथ पकड़ने एक छोटा सा बच्चा आ जाता है तब वह बरबस ही बोल पड़ती हैं -मेरा बेटा है! जैसे उन्हें इस बात का अहसास हो गया हो कि कहीं उसे सामने वाला लड़की तो नहीं समझ रहा है। इसलिए वह माँ के रूप में एक औरत कहलाने में ज्यादा विश्वास रखती हैं ।

कुसुम पन्त लोक व्यवहारिक जीवन में कैसी हैं ये मैं भी नहीं जानता लेकिन उनकी आंखों में अपनत्व ऐसा प्रगाढ़ लगता हो जैसे मेरे परिवार का ही अभिन्न अंग हमारी बहन, भतीजी इत्यादि हो।

फट जा पंचधार में जब 2nd दून लिटरेचर फेस्टिवल के रंगमंच पर कुसुम की एकल नाट्य प्रस्तुति देखी तो सिर्फ मैं ही नहीं इस मंचीय प्रस्तुति को देखने बैठे दर्शक तक वहां से एक मिनट के लिए भी हिले नहीं।

और जब एक घण्टा 12 मिनट बाद यह नाटक समाप्त हुआ तब लोग इस नाट्यकर्मी के लिए अपनी अपनी जगह पर खड़े होकर तालियां बजाने लगे। यह अद्वीतिय पल बहुत कम दिखाई देते हैं।
आम जीवन से बिल्कुल इतर कुसुम का यह भावपूर्ण व बेहद परिपक्व एक उम्रदराज औरत के अनुभवों की जलालत, खुशियां, ख्वाब, लोक व्यवहार, सामाजिक तृष्कार, कुंठाएं सहित सतरंगी हर पल जब मंच पर उतरे तो लगा एक पूरी सृष्टि जीवंत हो गयी हो। वह हर ताना बाना जो एक बेटी के जन्म से औरत बनने, माँ बनने व कटु अनुभवों को जीने के पल होते हैं। एक नारी का तिल तिल मरण इस कहानी की पटकथा में दिखने को मिलता है।

फट जा पंचधार स्व विद्या सागर नौटियाल जैसे मूर्धन्य साहित्यकार की विलक्षण कहानियों में के कहानी है जिसे कुसुम पन्त के पति अभिषेक मेंदोला के निर्देशन में रंगमंच पर लाया गया। अभिषेक मेंदोला बताते हैं कि मात्र चार दिन में इसे नाट्य मंच पर लाया गया है। उन्होंने बताया कि कुसुम की तबियत काफी समय से ठीक नहीं है और उन्हें डर था कि कहीं यह मंचन सफल हो भी पाता है या नहीं लेकिन दर्शकों द्वारा सराहना मिलने पर उन्होंने खुशी जाहिर की।
कुसुम पंत बोली – भैजी, स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहा है फिर भी अपना सौ प्रतिशत देने की मैंने भरसक कोशिश की। अब मैं क्या बताऊँ कि कुसुम तुमने एक घण्टा 12 मिनट तक की इस एकल प्रस्तुति में एक भी डायलॉग डिलीवरी में एक भी पंच ऐसा नहीं छोड़ा जहां यह लगा हो कि कहीं कोई कमी है। यह सचमुच आश्चर्यजनक था कि कुसुम ने इतना लंबा नाटक पूरे मंच पर प्रस्तुत कर एक पल के लिए भी दर्शकों की नजर अपने से हटने नहीं दी। यही वजह भी रही कि इस लाजवाब अभिनय के मंचन पर कुसुम ने इतनी तालियां बटोरी। और तो और मंच से उतरते ही कुसुम को सबने घेर लिया व उनकी इस विलक्षण प्रस्तुति की जी भर सराहना की।
समय साक्ष्य द्वारा आयोजित 2nd दून लिटरेचर फेस्टिवल द्वारा लाये गए ऐसे भावपूर्ण नाटक के लिए समय साक्ष्य को साधुवाद।

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