कुषाणकाल में निर्मित बताया जाता है तालेश्वर मंदिर..! यहाँ पांडवों ने की थी आदिदेव महादेव की स्थापना!
कुषाणकाल में निर्मित बताया जाता है तालेश्वर मंदिर..! यहाँ पांडवों ने की थी आदिदेव महादेव की स्थापना!
(मनोज इष्टवाल)
बात अगर उत्तराखंड की हो और वहां शिब के आदि-अनादि रूप की चर्चा न हो यह कैसे संभव हो सकता हैं. मानस खंड व केदारखंड में भले ही देवी देवताओं के पूजन मंदिर शिल्प इत्यादि में असमानताएं रही हों लेकिन आदिदेव महादेव ने दोनों ही खंडों में अपनी उपस्थिति को यथावत बनाए रखा. न उनका स्वरूप बदला और न पूजा विधि. प्रदेश के कई मंदिर आज भी अपनी अजर-अमर वास्तु शिल्प के नायब उदाहरण पेश करते नजर आते हैं तब चाहे वह क्षत्रप शैली के निर्मित मंदिर हों या किसी अन्य शैली के निर्मित रहे हों.
ऐसे ही मंदिरों की श्रेणी में गढ़-कुमाऊँ सीमा के पास अल्मोड़ा जिले के देघाट गाँव, तहसील स्यादे का तालेश्वर मंदिर है जो अपने रहस्यमयी इतिहास के लिए बेहद प्रसिद्ध है.
देघाट गाँव में बर्ष 1915 में कुछ लोगों को खुदाई के दौरान दो ताम्रपत्र मिले! जिन्हें ग्रामीणों ने गांव में बने मंदिर में रखवा दिया। मिटटी में लम्बे समय तक दबे होने के बाबजूद भी ताम्रपत्र गले सडे न होने के कारण वर्ष 1963 में इसी गांव के एक ग्रामीण ने इन ताम्रपत्रों के महत्व को समझते हुए उन्हें लखनऊ स्थित पुरातत्व संग्रहालय में परिक्षण भेजा। जहाँ ताम्रपत्रों का अध्ययन के बाद पता चला कि यह ताम्रपत्र पांचवी सदी में बनाए गए थे। इनमें से एक ताम्रपत्र ब्रह्मपुर राज्य के नरेश ध्रुतिवर्मन और दूसरा ताम्रपत्र राजा विष्णुवर्मन ने बनवाया था।
ताम्रपत्रों में लिखी गई लिपि के मिलान से ज्ञात हुआ कि ऐसे ही ताम्रपत्र उड़ीसा में मिले शिलालेखों के लिपि से मिलती जुलती थी। यहाँ के ग्रामीण बताते हैं कि ताम्र पत्रों खुदाई में उन्हें भैरव, नंदादेवी और वामन स्वामी की मूर्तियां और मंदिर भी प्राप्त हुए। इनमें चौथी सदी की बनी गणेश की मूर्ति भी शामिल है। वर्ष 1992 में गढ़वाल क्षेत्र के प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. शिवप्रसाद डबराल “चारण” ने इस गांव का दौरा किया तो उन्होंने वाहन स्वामी की मूर्ति को ताम्रपत्र में उल्लेखित बताया। वर्ष 2008 में यहां फिर लाल ईंटों की जेड आकार लिए एक दीवार खुदाई में मिली। इस दीवार में लगी ईंटें भी अध्ययन के बाद लगभग 1800 साल पुरानी कुषाणकालीन पाई गई। समय के साथ-साथ इस गांव के ग्रामीणों को खुदाई के दौरान कई ऐतिहासिक चीजें मिलती रही। स्थानीय लोगों ने बताया कि खुदाई में पौराणिक रहस्यों के खुलने के बाद कई बार पुरातत्व विभाग से पौराणिक धरोहरों को सहेजने की मांग की गई, लेकिन पुरातत्व विभाग ने कभी इस गांव की सुध नहीं ली। इससे ग्रामीणों को आज तक निराशा ही हाथ लगी है।
तालेश्वर निवासी धर्मानंद शर्मा ने बताया कि मान्यता है कि स्वर्गारोहण के समय पांडव लंबे समय तक यहां रहे और बड़े भाई युधिष्ठिर के कहने पर उनके भाइयों ने यहां काफी मंदिरों के निर्माण किया। वहीँ ग्रामीणों का कहना है कि धरती के गर्भ से जो मंदिर और मूर्तियां निकल रही हैं वह उसी दौर की बनी होंगी। तालेश्वर में स्थित शिव मंदिर को आज भी लोग पांडवों की अंतिम निशानी मानते हैं और यहां आकर भगवान शिव की आराधना करते हैं।