काकू की फ़िल्म 'घोस्ट विलेज आफ हिमालया' को न्यूर्याक में फिल्म फेस्टिवल में बेस्ट शार्ट फिल्म का आडियंस अवार्ड मिला।
बधाई काकू..।
( पत्रकार केशव भट्ट की कलम से)
बाईस साल पहले की ही तो बात है जब मैं राजदा की दुकान में बैठ उनके ट्रैकिंग के किस्से सुन रहा था. ‘काकू’ यहां आओ.. ये भट्टजी अंकल हैं. छोटा नटखट सा एक बच्चा मेरे पास आया और प्रणाम कर सामने बैठ गया. मैंने कुछ पल उसे देखा तो वो मुझे काफी जिज्ञासु सा लगा. वो कुछ पल बैठा और फिर अपनी दुनियां में मस्त हो गया.
‘काकू’ घर वालों के प्यार का दिया ये नाम मेरे जेहन में बैठ सा गया था. मैंने कभी पूछा ही नहीं कि इसका नाम क्या है. वैसे नाम में रखा भी क्या है.
काकू तब नैनीताल में अपने नैनीहाल में रह बिड़ला में पढ़ाई कर रहा था. साल में एकाध बार जब वो बागेश्वर आता था तो इतेफाक से मेरी उससे मुलाकात हो ही जाती थी. अब वो मुझे जानने भी लगा था. उसका धीर-गंभीर सा आत्मीय व्यवहार बड़ा सुखद भरा रहता था.

काकू के पिता आलोक साह उर्फ ‘राजदा’ अकसर उसके बारे में चर्चा किया करते थे. बातों-बातों में पता लगा कि काकू को फोटोग्राफी का शौक है. इस पर उसकी ढेरों फोटो और वीडियो को मैंने देखा तो मैं उसकी कल्पना की तारिफ किए बिना न रह सका. बगीचे के शांत तालाब में कंकड डाल उठती हुवी लहरों की वीडियो उसकी कल्पना को समझने के लिए काफी ही थी.
एक बार राजदा ने खुश हो बताया कि काकू अब आगे फिल्मलाइन में फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी का कोर्स करना चाहता है. पूना जाने वाला है. पूना में कोर्स करने के दरम्यिान जब वो घर आया तो राजदा ने उसकी फोटोग्राफी दिखाई. काकू ने परिवार के अलग-अलग अंदाज में कई पोर्ट्रेट बहुत ही उम्दा खींचे थे. इस कम उम्र में उसकी कल्पना की मैं दाद दिए बिन न रह सका.
वर्ष 2018 में वो अपने कुछ सांथियों के सांथ बागेश्वर आया. वो एक डाक्यूमैंट्री बनाना चाहता था उत्तराखंड में पलायन की गंभीर समस्या को लेकर. जिसे उसने नाम दिया ‘घोस्ट विलेज आफ हिमालया.’ ।
सातेक महिने तक वो इस डाक्यूमैंट्री को बनाने में डूबा रहा. उसके पिता ने भी उसका बखूबी सांथ दिया. वो भी कई दिनों तक अपने व्यस्त समय को किनारे सरकाकर काकू की मनोस्थिती को भांप उसके सांथ एक दोस्त की तरह जमे रहे. राजदा बताते थे कि, ‘अरे! हुड़के वाला भी हुड़का बजाने के लिए बड़ी मुश्किल से माना.. क्या कुछ नहीं करना पड़ा.. लोगों ने ना जाने क्या समझा कि ये तो कोई बड़ी फिल्म बना रहे हैं और हमें कुछ नहीं मिल रहा है.. बड़ी मुश्किल से उन्हें समझाया तो वो समझे..’।

दिसंबर के शुरूआती महीने में एक शाम को अचानक ही राजदा मेरे पास आए और तसल्ली से बैठ बोले कि, ‘काकू का न्यूयार्क फिल्म एकेडमी में सेलेक्शन हो गया है. अब उसे उसके मन मुताबिक काम मिल ही गया.. मुझे भी अब राहत है कि मैं नई पीढ़ी के लिए कुछ कर सका हूं.. बेटे की हिम्मत देख मुझे भी हिम्मत आ ही गई. काकू ने मुझे मना किया था किसी को भी बताने को लेकिन मेरा मन नहीं माना..’।
राजदा घंटेभर तक शांत से हो बतियाते रहे. आज उन्हें कहीं भी जाने की जल्दी नहीं थी, नहीं तो अपने व्यस्त समय में उनके पास दो मिनट भी कहीं खर्च करने मुश्किल होते थे. उनके पास समय की इतनी कमी होती है कि वो जरूरी आर्टिकलों को अपने बाथरूम में ही तसल्ली से पढ़ पाते हैं. बकायदा नैनीताल समाचार को तो पढ़ने के लिए उन्होंने बाथरूम में ही अल्मारी बना डाली, ताकि उसे वो वहां आराम से पढ़ सकें.
पिछले दिनों सुबह राजदा का फोन आया कि काकू के द्वारा बनाई गई डाक्यूमेंट्री, ‘घोस्ट विलेज आफ हिमालया’ को न्यूर्याक में फिल्म फेस्टिवल में बेस्ट शार्ट फिल्म का आडियंस अवार्ड मिला है, आज शाम को इस पर काकू सबसे रूबरू होंगे.’
शाम को जब मैं अपने सांथियों के सांथ वहां गया तो काकू के चेहरे में खुशी और आत्मविश्वास देख बहुत खुश हुवा. सोलह मिनट की डाक्यूमेंट्री फिल्म देखी तो देखता ही चला गया. तब मुझे पता चला कि काकू का नाम कुलदीप साह है. ये नाम अटपटा सा भी लगा. लेकिन दुनियां की नजर में तो वो कुलदीप ही था. विचारों को झटका दे मैंने सोचा, अब जो भी इसका नाम हो मुझे क्या.. मेरे लिए तो ये काकू ही है.. काकू ही रहेगा.. मीठा सा काकू…।
डाक्यूमेंट्री में पहाड़ से लगातार हो रहे पलायन का दर्द झलका था. डाक्यूमेंट्री फिल्म घोस्ट विलेज आफ हिमालया, बागेश्वर जिले के खोलाखेत गांव में रहने वाली 89 वर्षीय अम्माजी की कहानी है. लगभग खाली हो चुका यह गांव पलायन का दंश झेल रहा है. यहां पर अब बूढ़ी अम्मा और गांव के कुछ लोग रहते हैं. उम्र के इस पड़ाव में उसका गांव और अपने घर के प्रति प्रेम को इस फिल्म के जरिए दिखाया गया है. अम्माजी ने अपने उम्र के एक पड़ाव में पूरा आबाद गांव देखा, और अब वो खाली गांव देख रही हैं….।
यर्थात को लेकर बनाई गई इस छोटी सी फिल्म को देख मुझे लगा, काकू ने थोड़े से बातों में अपनी पूरी बात कह सबको झकझोर जैसा दिया है..
बहरहाल! काकू.. तुम्हारी सोच यूं ही संवेदनशील बनी रहे और सच को तुम सामने लाते रहना.. शुभकामनाएं..।