कहीं दो मंडलों के मध्य उपेक्षित तो नहीं है बिनसर महादेव …!

कहीं दो मंडलों के मध्य उपेक्षित तो नहीं है बिनसर महादेव …!
(मनोज इष्टवाल)
गढ़वाल मंडल के जनपद पौड़ी और कुमाऊ मंडल के जनपद अल्मोड़ा से अपनी सीमाएं बांटता पौराणिक बिनसर महादेव का मंदिर समुद्र तल से लगभग २४१२ मीटर की उंचाई पर बसा है। लगभग ११वीं से १८वीं शताब्दी तक ये चंद राजाओं की राजधानी रहा था। शिब और ब्रह्मा के झगड़े की दंतकथा में समाहित पौड़ी जनपद के सीमान्त में स्थित बिनसर महादेव जिन्हें बिन्देश्वर नाम से भी जाना जाता है, अपनी आलौकिकता के लिए न सिर्फ जनश्रुतियों में बल्कि वेद पुराणों में भी प्रसिद्ध सिद्धपीठ है.

उत्तराखंड के प्रसिद्ध सिद्धपीठों में एक बिनसर महादेव पहुँचने के लिए आप कुमाऊ मंडल के अल्मोड़ा या राम नगर होते हुए पहुँच सकते हैं, जबकि गढ़वाल मंडल से आप थैलिसैण, बैजरो, जोगीमढी, सराईखेत व रूद्रप्रयाग, पीठसैण, गैरसैण से होकर भी पहुँच सकते हैं. बिनसर झंडी धार नामक पहाडी पर है। यहां की पहाड़ियां झंडीधार के रूप में जानी जाती हैं। बिनसर गढ़वाली बोली का एक शब्द है -जिसका अर्थ सूर्योदय या नवप्रभात से लगाया जा सकता है.यहां से अल्मोड़ा शहर का उत्कृष्ट दृश्य, कुमाऊं की पहाडियां और ग्रेटर हिमालय भी दिखाई देते हैं। घने देवदार के जंगलों से निकलते हुए शिखर की ओर रास्ता जाता है, जहां से हिमालय पर्वत श्रृंखला का अकाट्य दृश्‍य और चारों ओर की घाटी देखी जा सकती है। बिनसर से हिमालय की केदारनाथ, चौखंबा, त्रिशूल, नंदा देवी, नंदाकोट और पंचचुली चोटियों की 300 किलोमीटर लंबी शृंखला दिखाई देती है, जो अपने आप मे अद्भुत है और ये बिनसर का सबसे बडा आकर्षण भी हैं। बिनसर का सूर्योदय व सूर्यास्त बेहद दर्शनीय होता है.
मंदिर चारों तरफ से घने देवदार के वनों से घिरा हुआ है। मंदिर के गर्भगृह में गणोश, हरगौरी और महेशमर्दिनी की प्रतिमा स्थापित है। महेशमर्दिनी की प्रतिमा पर मुद्रित नागरीलिपि मंदिर का संबंध नौवीं शताब्दी से जोड़ती है। इस मंदिर को राजा पीथू ने अपने पिता बिन्दू की याद में बनवाया था। इसीलिए मंदिर को बिन्देश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यहां हर साल जून के महीने में बैकुंड चतुर्दिशी के अवसर पर मेला लगता है। मेले में महिलाएं पूरी रात अपने हाथ में दिए लेकर सन्तान प्राप्ति के लिए आराधना करती हैं। गढवाल जनपद के प्रसिद्ध शिवालयों श्रीनगर में कमलेश्वर तथा थलीसैण में बिन्सर शिवालय में बैकुंठ चतुर्दशी के पर्व पर अधिकाधिक संख्या में श्रृद्धालु दर्शन हेतु आते हैं तथा इस पर्व को आराधना व मनोकामना पूर्ति का मुख्य पर्व मानते हैं।
पौड़ी मुख्यालय से 118 किलोमीटर दूर थैलीसैंण मार्ग पर 8000 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। यहॉ का प्रसिद्ध बिनसर मन्दिर देवदार के सघन वृक्षो से आच्छादित9000 फीट पर दूधातोली के ऑचल में विद्यमान है। जनश्रुति के अनुसार कभी इस वन में पाण्डवों ने वास किया था। पाण्डव एक वर्ष के अज्ञातवास में इस वन में आये थे और उन्होंने मात्र एक रात्रि में ही इस मन्दिर का निर्माण किया जबकि इसे राजा पृथु से भी जोड़कर देखा गया है.
जनश्रुति और दन्त कथाओं के अनुसार सीमा बंटवारे को लेकर शिब और बिष्णु भगवान् (कई लोग ब्रह्मा जी मानते हैं) में हुए विवाद में इसका हिस्सा शिब के पास आया और जबकि अल्मोड़ा की ओर ब्रह्मा या बिष्णु में से एक के पास. यही झंडीधार स्थित एक पत्थर को ब्रह्मओड़ा (सीमा रेखा का पत्थर) नाम से पुकारा जाता है, वहीँ अन्य जनश्रुति में शिबजी के बैल नंदी द्वारा थान गॉव के लोगों के खेत चर आने पर भी विवाद होना बताया गया है.
बहरहाल दो मंडलों के बीच बसा यह सिद्धपीठ जितना महत्व रखता है उस हिसाब से इसका समुचित विकास नहीं हो पाया. मन्दिर भले ही सुंदर व्यवस्थित दिखाई देता हो लेकिन इसके रख-रखाव की पर्याप्त सुविधा नहीं दिखाई देती. उत्तराखंड सरकार को इसके सुंदर स्वरुप बनाए रखने के लिए कोई ठोस कार्ययोजना बनानी होगी . इस सिद्धपीठ कोप्रचार-प्रसार के साथ सड़क मार्गों से जोड़ना अति आवश्यक है.

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