करवा चौथ के बाद अब देवभूमि के धार्मिक त्यौहार संकट चौथ की बारी..!

(मनोज इष्टवाल)
देवभूमि के पर्व धर्म और त्यौहारों की एक अनूठी छटा होतिया है इसमें दिखावा कहीं दूर दूर तक नहीं झलकता! महिलायें व्रत रखती हैं तो खेतों का काम हो या फिर घर का कार्य सभी ख़ुशी ख़ुशी निबटाती आई हैं! यहाँ के व्रत पूजन में ऐसा दिखाया दिखने को कभी नहीं मिला कि पडोसी ने 20 हजार की साडी या फिर तीन तोले की नाथ पहनी है तो मैं भी इस से आगे बढूँ. हमारे त्यौहार कभी आर्थिकी पर बोझ साबित नहीं हुए और न ही ऐसा कभी सुनने में आया कि पत्नियों की पूजा पद्वति के लिए सम सामयिक हजारों रुपये का खर्च वहन करने से पारिवारिक आर्थिक संतुलन बिगड़ा हो!
कहते हैं हर चमकने वाली वस्तु सोना नहीं होती और यहाँ भी वही सब है. क्योंकि पहाड़ी समाज के ये लोक पर्व धार्मिक अनुष्ठानों को कभी आर्थिकी का बोझ देकर नहीं जाते अपितु निर्मल मन से बहुत शालीनता के साथ बिना प्रदर्शन के वह सब कर जाते हैं जो पारिवारिक शुकून और व्यक्तिगत मानसिक शान्ति के साथ रिधि-सिद्धि दे जाते हैं.

संकट चौथ में मुख्यतः बिघ्न हरण गणपति की पूजा होती है लेकिन अर्घ चंद्रमा को अर्पित किया जाता है. यह बहुत कम जानते हैं कि चन्द्रमा शीतलता का प्रतीक है और माँ यें अपने बच्चों के लिए जहाँ चन्द्रमा से शीतल गुणों की मांग करती हैं वहीँ रिधि-सिद्धि के दाता गणेश जी से पारिवारिक सुख शान्ति और सम्पत्ति की कामना करती हैं. संकट चौथ को महिलायें यथा संभव श्रृंगार कर जहाँ अपने सुहाग की दीर्घायु व यशोबृद्धि के लिए भी मंगलकामनाएं करती हैं!
गजाननं भूत गणादि सेवितं,कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्॥
माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सकट का व्रत किया जाता है। इस दिन संकट हरण गणपति का पूजन होता है। इस दिन विद्या, बुद्धि, वारिधि गणेश तथा चंद्रमा की पूजा की जाती है। भालचंद्र गणेश की पूजा संकट चौथ को की जाती है। प्रात:काल नित्य क्रम से निवृत होकर षोड्शोपचार विधि से गणेश जी की पूजा की जाती है।यह व्रत स्त्रियां अपने संतान की दीर्घायु और सफलता के लिये करती है। इस व्रत के प्रभाव से संतान को रिद्धि-सिद्धि की प्राप्ति होती है तथा उनके जीवन में आने वाली सभी विघ्न –बाधायें गणेश जी दूर कर देते हैं। इस दिन स्त्रियां पूरे दिन निर्जला व्रत रखती है और शाम को गणेश पूजन तथा चंद्रमा को अर्घ्य देने पश्चात् ही जल ग्रहण करती है ।
संकट चौथ के दिन भर निर्जला व्रत के पश्चात सूर्यास्त के बाद स्नान कर के स्वच्छ वस्त्र पहन लें । अब विधिपूर्वक( अपने घरेलु परम्परा के अनुसार ) गणेश जी का पूजन करें । एक कलश में जल भर कर रखें । धूप-दीप अर्पित करें । नैवेद्य के रूप में तिल तथा गुड़ के बने हुए लड्डु, ईख, गंजी(शकरकंद), अमरूद, गुड़ तथा घी अर्पित करें।
पहाड़ों में बिशेषत: तिल व गुड के लड्डू बनाकर चन्द्रमा को अर्घ चढाने के बाद प्रसाद के रूप में वितरित किये जाते हैं वहीँ इसके वृहद् स्वरुप को अगर लेकर चलें तो इसकी पूजा विधि में यह नैवेद्य  रात्रि भर बांस के बने हुए डलिया(टोकरी) से ढ़ंककर यथावत् रख दिया जाता है । पुत्रवती स्त्रियां पुत्र की सुख समृद्धि के लिये व्रत रखती है। इस ढ़ंके हुए नैवेद्य को पुत्र ही खोलता है तथा भाई बंधुओं में बांटता है। ऐसी मान्यता है कि इससे भाई-बंधुओं में आपसी प्रेम-भावना की वृद्धि होती है। अलग-अलग राज्यों मे अलग-अलग प्रकार के तिल और गुड़ के लड्डु बनाये जाते हैं। तिल के लड्डु बनाने हेतु तिल को भूनकर ,गुड़ की चाशनी में मिलाया जाता है ,फिर तिलकूट का पहाड़ बनाया जाता है, कहीं-कहीं पर तिलकूट का बकरा भी बनाते हैं। तत्पश्चात् गणेश पूजा करके तिलकूट के बकरे की गर्दन घर का कोई बच्चा काट देता है।
अक्सर इसकी पूजा पहाड़ी समाज के लोग चंद्रमा आने के बाद आँगन में ओखली को पूजकर भी करते हैं जिसका सीधा सा मतलब यह हुआ करता था कि अन्न-धन से हम परिपूर्ण रहें.
इस बार संकट चौथ दो माह बाद यानि शुक्रवार 5 जनवरी 2018 को पड रही है. उम्मीद की जा सकती है कि पहाड़ से मोह भंग हुई मातृशक्ति जहाँ भी प्रवासी के रूप में रह रही हैं वह करवा चौथ की भांति अपने इस गौरव शाली व्रत को उतनी ही प्राथमिकता के साथ मनाएंगे जितनी करवा चौथ या हरितालिका तीज को मनाती आई हैं. यह त्यौहार यकीनन सुख समृद्ध दाता है और गजानन अपना आशीर्वाद बनाए रखते हैं.
पहाड़ों में संकट चौथ को संकट चौदस भी कहा जाता है और इस दिन व्रत को सिर्फ महिलाओं तक सीमित न रखते हुए मेले के रूप में मनाया जाता है. कई पहाड़ी थातों के ऊँचें स्थानों में इस दिन मेले भी जुटा करते थे. शिवालयों की घंटियां टनटनाया करती हैं कोई बेलपत्री से शिव की पूजा के बाद जहाँ अपने सुहाग की कुशल क्षेम की कामना करता है वहीँ गणपति के लिए पूरे दिन व्रत रखता है!
करवा चौथ के दिन महिलायें जहाँ एक जगह इकठ्ठा होकर करवे की व्रत कथा सुनती हैं या सुनाती है वहीँ ग्रामीण आँचल की महिलायें इस दिन या तो व्रत घूमने जाया करती हैं या फिर शिब पार्वती व गणेश के भजन गाकर हर्षोल्लास मनाती हैं. नहा धोकर यथावत श्रृंगार करने के बाद यह जरुरी नहीं होता कि पति सामने ही खड़ा हो. अगर पति सामने खड़ा नहीं है तब घर के बड़ों का आशीर्वाद लेकर ये अपना निर्जला व्रत तोडती है व प्रसाद वितरित करती हैं.
आधुनिकता के दौड़ में पिछड़ते अपने त्यौहारों को भी मान सम्मान उसी तरह मिले जिस तरह हम बाहरी वस्तुओं को दैनिक जीवन में आदर के साथ अपनाते हैं तो यह कटु सत्य है कि रोग व्याधि से आप पीड़ित नहीं रहेंगे वरना रोग व्याधि कब आकर आपको जकड़ लेते हैं इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता!

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