कमाल….जौनसार का छुमका अब मंचों में दिखेगा नए रूप में!
कमाल….जौनसार का छुमका अब मंचों में दिखेगा नए रूप में!
(मनोज इष्टवाल)
इसे शुद्ध रूप से न आप पहाड़ी फोकलोर कह सकते हैं न कत्थक, न कुचिपुड़ी और न भरतनाट्यम लेकिन इसमें आपको सब एक साथ दिखने को मिलेगा! यह कमाल स्वरांजलि संगीत विद्यालय विकास नगर देहरादून के छात्र-छात्राएं अपनी किसी बिशेष स्टेज परफोर्मेंस के लिए प्रस्तुत करने के लिए आजकल अपना पसीना बहा रहे हैं!
यकीनन यह मेरे लिए एक स्वप्न जैसा था क्योंकि जिस फीलिंग के साथ मैंने इस गीत के निर्देशन में पूरी जौनसारी संस्कृति का हर कोशिश घालमेल कर प्रस्तुत कर इसे खूबसूरती के साथ निर्देशित किया था आज स्वरांजलि संगीत विद्यालय के भ्रमण के दौरान जब छात्रों ने मेरे आगे यह नयी परफोर्मेंस रखी तो देखकर मन्त्र मुग्ध हो गया! दरअसल ऐसा तब होता है जब आपको सपनों की बांह थाम उन्हें उजागर करने के लिए जमाने के साथ कदम मिलाते हुए आज का युग आगे बढाना चाहता है!
विद्यालय की संरक्षक/ प्रधानाचार्य शांति वर्मा कहती हैं – सर, विद्यालय की छात्राओं के मन में आया कि क्यों न हम जो आज तक अपने विद्यालय में सीख रहे हैं वह नए अंदाज नए ढंग में प्रस्तुत करें क्योंकि एक सा एक सी लीक पर हर कोई परफोर्म करता आ रहा है! हर जगह कत्थक भी है तो भरतनाट्यम या लोक संगीत की विधाए भी ! हो सकता है हमारा विद्यालय अपना हर जगह सर्वश्रेष्ट प्रदर्शन करता हो लेकिन क्यों न हम कुछ ऐसा लायें जो दिखने में भी खूबसूरत लगे ! हमारे लोकसंगीत से भी जुडा हो! हमारा लोक समाज भी उसमें सम्मिलित हो और वक्त के साथ बदलते समाजिक परिवेश की अल्हड़ता भी उसमें झलके!
शांति वर्मा बताती हैं कि उन्होंने बहुत सोच समझकर छात्र-छात्राओं से कहा कि गीत जो भी उठाओ उसके प्राण नहीं मरने चाहिए और जब उन्होंने छुमका यानी ठेठ जौनसारी लोक समाज लोक संस्कृति की वानगी को प्रस्तुत करने की बात कही तो हम हतप्रभ रह गए! इस गीत को नए अंदाज में प्रस्तुत करने की सारी सोच विद्यालय के ही गुरु जी बृज मोहन की रही है यकीनन उन्होंने बहुत मेहनत के साथ इसको तैयार किया और मेरे दिशा निर्देशों में भी कहीं कमी नहीं आने दी!
यकीन मानिए जब मैंने नए हिसाब से तैयार छुमका का यह सेमी-क्लासिकल नृत्य देखा तो मैं ठगा सा रह गया क्योंकि इन छात्र-छात्राओं ने इसकी लीक से हटकर इसको मोडिफाई तो किया है लेकिन इसकी आत्मा को और तृप्त कर दिया जिस से यह लग रहा है कि हम अपने गीतों को अपने हिसाब से कम्पोज कर उसमें अपने भारतीय विभिन्न नृत्यों का घालमेल कर उसकी ख़ूबसूरती को मंचों के लिए तैयार कर सकते हैं!