कमल तुम चले गए।हर किसी को जाना है यही पूर्ण सत्य है 

कमल तुम चले गए।हर किसी को जाना है यही पूर्ण सत्य है …!

(गीता गैरोला)
लोग तुम्हे इतना याद कर रहे है की जब सामने दिखाई देते थे ,तब शायद इतना न करते ।पर तुम अपना ये जादू जानते थे।तुम्हारा जीना,तुम्हारी लहालोट अदाएं (जिन्हें देख के हम तुम्हारा मजाक उड़ाते थे) तुम्हारा डाल डाल, जंगल जंगल ,पहाड़ पहाड़ ,गांव गांव घूमना,उसे जानना और साथ चलने वालो को भी बताते जाना सबके तो दिल में हैं न।वो लच्छे दार बातें जो तुम्हारी महिला मित्रों को इतना भाती की उन्हें लगता कमल जोशी बस उनके लिए बना है। तुम्हारे पास अपनी रचनात्मकता का विस्तृत फलक था।
जानते हो लोग क्या कह रहे है?

,,,,,,कहते है तुम अकेले पन से डर गए,तुम डिप्रेसन में थे। पर क्या ये सच है?
तुम जैसा शर्तों पर जीने वाला व्यक्ति डिप्रेस नहीं हो सकता।तुम्हारी टेंडेंसी ही नहीं थी ऐसी। क्या तुम बीमारी से डर गए या अपने अकेलेपन से डर गए? ये बात भी मुझे सिरे से मंजूर नहीं है। तुम्हारी कैल्कुलेसन,और प्लानिंग से जिंदगी जीने के तरीके से मुझे बहुत चिढ थी। क्या इतना केल्कुलेटिव हुआ जा सकता है
जो तुम्हे शिद्दत से याद कर रहे है,मन में सिसक रहे है,तुम्हारी तरह जिंदगी जीने की हसरत करने वाले,तुमपर रश्क करने वाले,तुम्हारी आँखों से पहाड़ों को देखने,तुम्हारी जादुई बातोँ से तुम पर फ़िदा होने वाले,सब आहत हैं। सब को लगता है तुमने उन पर ये अन्याय किया है।
तुम्हारा आवरापन, तुम्हारी जीवटता, तुम्हारा खिलंदड़ा पन, तुम्हारे जीवन मूल्य, तुम्हारी,मोटिवेसन पॉवर,13 साल की उम्र से दमे की बीमारी को झेल कर अपना गुलाम बनाने की ताक़त,और दमे से फूलती सांसो के बाद भी पूरे हिमालय को पैदल घूमना यही तो देय है।तुम्हारा समाज को,लोगों को। तभी तो लोग सदमे में है।
पर अभी हम सब ये भूल गए की तुमने पूरे सामाजिक दबावो और दायरों से परे अपने लिए खुद की मर्जी से जिंदगी जीने का चुनाव किया था। जीने के सारे तरीके जो हमारी सामजिक व्यवस्थाओं में परिवार की औरतो पर निर्भर होते हैं ,उनमे तुम आत्म निर्भर थे। तुमने परिवार संस्था के मानकों को तोडा है। तुम्हे जब भी कोई नया रचनात्मक काम करना होता तो कही कोइ दबाव,कोइ जबाबदेही नहीं करनी होती ।बस एक सूचना ही काफी होटी कि तुम कहाँ जा रहे हो और कब आओगे।ये काम तुमने हमेशा जिम्मेदारी से निभाया।
पूरे परिवार के लोग तुम्हे प्रिय थे,पूरा परिवार तुम्हारे प्रति निष्ठा और प्रेम रखता है,और अपनी सारी क्षमताओं के साथ तुम्हारे लिए चिंतित था।तुम खुद आर्थिक तौर पर भी बहुत मजबूत थे फिर भी,,,तुम हमेशा कहा करते थे की मै कभी बीमार हो कर किसी पर बोझ नहीं बनूँगा।जिस दिन मुझे लगेगा की अब मेरा आवारापन ख़त्म हो रहा है उस दिन मै खत्म हो जाऊंगा। ये बात तुम्हारे सारे दोस्त जानते हैं।
तुम चाहते थे की सारे तुम्हारे प्रिय लोग इसी कमल को यद् रखें।बीमार ,सांसों के लिए तरसता,जीने के लिए घिसटता,दयनीय, बिस्तर में लेटा कमल क्या हमें स्वीकार होता? नहीं न।
तो फिर जब तुमने उसी जीवटता,निडरता से अपने लिए,अपनी मर्जी से मौत को चुना तो हमें क्यों स्वीकार नहीं होता। क्योंकि परम्परागत तरीके हमें अपनी मर्जी की जिंदगी और अपनी मर्जी की मौत की इजाजत नहीं होती। यहाँ पर भी तुम ही जीत गए। मुझे तुम्हारी मौत से नहीं तुम्हारे मौत के तरीके से असहमति है। पर तुम जैसे साइंटिफिक व्यक्ति ने इस पर भी जरूर गहन अध्ययन किया होगा
मै जो रोज जन्दगी की लड़ाई लड़ रही हूँ क्या तुम मुझे गलते नहीं देखपा रहे थे ।मेरे लिए तुम हमेशा जीवन दर्शन रहे हो और हमेशा रहोगे।
जानती हूँ जो जिंदगी को शिद्दत से जीता था उसने मौत को भी शिद्दत से ही जिया। तुम अभी भी जीते हो कमल जोशी। हार तुम्हारी आदत थी ही नहीं।
और अब हम सब जिंदगी की तरफ लौट आये है।हमने मान लिया है कि तुम्हारा ऐसे ही जाना तय था। धीरे धीरे तुम बस अचानक कभी याद आ जाओगे,जब वो गजल सुनेंगे ये दिल ये पागल दिल मेरा आवारगी”और कभी रुलाओगे,कभी हँसाओगे।ऐसी ही है हम परंपरागत जीने वालों की रीत।

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