कभी चंद रुपए के लिए मारती थीं सपने, आज कर रहीं अपनों का आर्थिक सहयोग

कभी चंद रुपए के लिए मारती थीं सपने, आज कर रहीं अपनों का आर्थिक सहयोग

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धनबाद : कभी दस-बीस रुपए के लिए दूसरों का मुंह देखने और इच्छाओं को मारने वाली दलित और पिछड़ी जाति की कुछ महिलाओं ने तरक्की और आत्मनिर्भरता ऐसा मिसाल पेश किया कि पूरे इलाके में अब उनकी चर्चा हो रही है. पथरीली और बंजर जमीन को इन महिलाओं ने मिलकर उपजाऊ बना दिया है. आज यहां इतनी उपज हो रही है कि घरेलू उपयोग के बाद सब्जियों का व्यवसाय महिलाएं कर रही हैं.
क्या है मामला
धनबाद शहर से करीब 14 किलोमीटर दूर झरिया जामाडोबा का पटिया आमटोला बस्ती की दस महिलाएं इन दिनों गांव के लिए रोल मॉडल बनी हुई हैं. कारण यहहै कि चंद पैसे के लिए मुफलिसी में जी रही महिलाओं ने अपनी तरक्की का रास्ता खुद तैयार किया है. पहले तो गांव की सबसे पढ़ी लिखी यानि बीए पास महिला कंचन ने कुछ अनपढ़ और कम पढ़ी लिखी गरीब महिलाओं को इक्कठा कर एक महिला समिति बनाया और फिर एक साथ अपनी बंजर जमीन पर सब्जी की खेती शुरू किया.
लहलहायी बंजर जमीन

बिना किसी पुरुष का सहयोग लिए महिलाओं ने जमीन पर हल चलाई.  बंजर जमीन को कोड़ना शुरू किया. सिंचाई के लिए पानी की दिक्कत आई. टाटा स्टील झरिया डिवीजन ने इन्हें खाद बीज से लेकर तालाब खुदवाने और मोटरपंप देने की भी व्यवस्था की. इसके बाद फिर महिलाओं ने पीछे मुड़ कर रहीं देखा.
प्रतिमाह तीस से चालीस हजार रुपए कमाई
किसान कंचन कुमारी कहती हैं कि सब्जी के उत्पादन से लेकर बाजार तक का पूरा कारोबार समूह की महिलाएं खुद देखती हैं. टीएसआरडीएस झरिया डिवीजन की अधिकारी प्रियंका कुमारी कहती हैं कि पहले दिन भर मजदूरी कर ये महिलाएं बमुश्किल सौ रुपए कमा पाती थी. अब प्रतिमाह तीस से चालीस हजार रुपए कमा लेती हैं. किसान उषा देवी कहती हैं कि अब हम किसी के आगे हाथ नहीं फैलाती, बल्कि जरूरत पड़ने पर पति की भी मदद करती हैं.

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