कब पैदा होंगे बैणाण व पंताण परिवार में त्यौहार के दिन बच्चे! कब तक जारी रहेगा गागली युद्ध..?

(मनोज इष्टवाल)
जौनसार बावर की लोकसंस्कृति भी बेहद अजब गजब की है और उसी से संदर्भित यह ऐतिहासिक प्रसंग भी उतना ही रोचक व अजब गजब है कि क्या कहने! बात कुरोली गाँव व उत्पाल्टा गाँव के पाइंता त्यौहार की करें तो हर बर्ष दोनों खेमों के यानि बैणाण व पंताण परिवारों के योद्धाओं को इस दिन गागली युद्ध के लिए तैयार रहना पड़ता है क्योंकि दोनों ही परिवारों की बेटियाँ जिनमें एक रानी व एक मुन्नी हुई. दशहरे के दिन गाँव के पास ही कुँवें में गिर गयी थी !

इन गाँवों में पहुँचने के लिए आपको देहरादून से विकास नगर, कालसी होकर सहिया पहुंचना होगा. सहिया से उत्पाल्टा के लिए एक सड़क कटती है जिसकी उत्पाल्टा तक दूरी लगभग 5 किमी. है ! यहीं एक क्याणी नामक कुंवां अनंतकाल से निर्मित है. इसका कुँवें का कब निर्माण हुआ इसकी यहाँ के जनमानस के पास जानकारी नहीं है क्योंकि कोई इसे कई सौ साल का मानता है तो कोई 200 साल पुराना!
कुँवें का पानी तब दोनों गाँव के लोग भरा करते थे. इन्हीं गाँवों में कुरोली की मुन्नी व उत्पाल्टा की रानी दो अल्हड बलाएँ थी. दोनों नामों की तरह खूबसूरत भी और चपल चंचल भी! यदि ये कहा जाय कि दोनों गाँवों में इनकी दोस्ती की मिशालें दिया करते थे तो ठीक रहेगा क्योंकि ये दोनों सगी बहनों की तरह रहती थी. चाहे खेत जाना हो या जंगल या फिर पानी लेने दोनों एक दूसरे के बिना हिलती नहीं थी!

(थैना गाँव में उमड़ी पाइंते की भीड़ ! फोटो- मनोज इष्टवाल) 
फिर एक दशहरा ऐसा भी आया जब राम के राजतिलक का उत्सव यहाँ पश्चाताप दिवस बनकर रहा गया. पाइंता (दशहरा) की तैयारी में ये दोनों ऐसे जुटी कि पहले दोनों ने एक के घर सिडकु, पिनवे, असके, ओलवे बनाए बकरे का मांस भी पकाया व फिर जाने क्या हुआ दोनों ने अपने अपने पानी के बर्तन उठाये और क्याणी के कुँवें पर हँसते खेलते पानी भरने के लिए चल पड़ी!
लोग आवाज देते रहे कि जल्दी आना आँगन में गीत शुरू होने वाले हैं . दोनों ही प्रसन्न थी कि आज झैंता, रासो, हारुल, तांदी और घुन्डिया रासो लगायेंगे शाम को आँगन सजेगा. पाइंता में देवता खेलेंगे. यही सब बातें करती दोनों कुँवें तक जा पहुंची! पीछे से और भी महिलायें पनघट के लिए चल रही थी. अचानक सबने एक चीख सुनी तो देखा कि मुन्नी कुँवें में झाँक रही है और चिल्ला रही है- बचाओ, बचाओ! जब तक लोग दौड़ कर वहां पहुँचे तो देखा रानी कुँवें की गहराई में समाकर अब कुंवे के पानी के ऊपर लाश की तरह दिखाई देने लगी! अब तक दोनों गाँव में यह खबर आग की तरह फ़ैल गयी सब घटना स्थल की तरफ दौड़े! तब तक रानी मर चुकी थी!

फिर क्या था सबने मुन्नी को कोसना शुरू कर दिया और दोनों गाँव के लोग देवधार नामक स्थान पर इकठ्ठा होकर उलझने लगे! कोई कहता कि मुन्नी ने रानी को धक्का दिया तो कोई कहता ऐसा हो ही नहीं सकता! देखते – देखते बैणाण व पन्ताण कुनवे धड़ों में बंट गए और आपस में गुत्थम-गुत्था शुरू हो गयी! देवधार में आस-पास अरबी के खेत थे जिन्हें स्थानीय भाषा में गागली कहा जाता है. दोनों कुनवों ने अब गागली के पेड़ उखाड़-उखाड़ कर एक दूसरे पर उसके डंठलों से वार करना शुरू कर दिया! लड़ाई बढ़ता देख मुन्नी शर्म और पश्चातावे की आग में जलने लगी वह सफाई देते देते थक गयी लेकिन कोई उसे सुनने को तैयार नहीं था. बस एक अघोषित युद्ध शुरू हो गया था जो रुकने का नाम लेने को तैयार नहीं था! आखिर मुन्नी ने  अपनी आँखों के आंसू पोंछे और तमतमाये चेहरे से बोली- मैं भी जब तक कुँवें में कूदकर जान न दे दूँ तब तक तुम्हें शुकून नहीं मिलेगा! मैं दोनों परिवारों को जाते जाते श्राप देती हूँ कि जिस तरह आप लोगों ने मुझ निर्दोष पर विश्वास नहीं किया आप पर हम दोनों की हत्याओं का पाप हर साल चलता रहेगा. हम दोनों पुन: जन्म लेंगे तभी आप दोनों कुनवे पाइंता का जश्न मना पायेंगे और अगर ऐसा नहीं हुआ तो हमारे पाप के भागीदार आप लोग ही रहेंगे! यह कहकर मुन्नी कुँवें की ओर दौड़ पड़ी और जब तक लोग सब कुछ समझ पाते मुन्नी ने कुँवें में छलांग लगाकर जान दे दी!
यह किस काल की घटना है यह कह पाना संभव नहीं लेकिन आज भी दोनों गाँव पाइंता पर राम राज की खुशियाँ मनाने के स्थान पर मातम मनाते हैं व दिखावे का गागली युद्ध लड़ते हैं. हर साल यह युद्ध बिना किसी एक गुट की हार जीत के समाप्त हो जाता है. स्थानीय लोगों का कहना है कि ऐसा न करने पर दोनों ही गाँव पर इन दोनों बेटियों का दोष चढ़ता है इसलिए यह गागली युद्ध तब तक निरंतर जारी रहेगा जब तक बैणाण व पंताण कुनवों में पाइंता के रोज एक ही दिन बच्चे जन्म नहीं लेते! अब इन दोनों की पूजा स्थानीय लोग देवी के रूप में करते हैं व पाइंता पर पकने वाले पकवान पहले इन्हें चढाते हैं व तब स्वयं खाते हैं! कहते हैं तभी से इस कुँवें का पानी परित्याज है!

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