कबीर लोहार ने भूतनी से ब्याह रचाया था……?
(मनोज इष्टवाल)
इस बार जब गॉव में बुजुर्गों के पास बैठने का मौका मिला तो बातों-बातों में झुमैलो की गायन शैली और थडिया नृत्य पर बात होने लगी। तब तक मिरचोड़ा गॉव जोकि असवालस्यूं पट्टी कल्जीखाल विकास खंड पौड़ी गढ़वाल में है,मैंने वहां की अपनी एक पुरानी भाभी से चुगली करते हुए बस ये कह दिया..कि देखा हमारा गॉव पहले से ही कितना समृद्धशाली रहा है। एक तुम्हारा थोकदारों का गॉव,,,,? कभी गलती से भी तुमने थडिया चौंफला गाये हैं क्या…!

फिर क्या था भाभी बोल पड़ी…तुम लोग क्या जानो कि हमारे गॉव में कितनी रंगत रहती थी। उन्होंने किस्सागोई में बताया कि अभी कुछ ही बर्ष पहले की बात है उनके गॉव का कबीर लोहार कम्बल बेच कर घर लौट रहा था। सर्दियों की रातें थी आसमान में चाँद खिला था और वह अपने भाइयों के साथ लौट रहा था। वह देखता है कि गॉव से कुछ ही फासले पर लोग थडिया चौंफला गीत गा रहे हैं। उसे आश्चर्य होता है कि आज गॉव वाले गॉव से बाहर क्यों गीत गा रहे हैं। तब समय 12 बजे रात्री के आसपास का रहा होगा।
जब वहां जाकर उसे भूतों के झुण्ड गाते झूमते दिखाई देते हैं तो उसके होश उड़ जाते हैं, लेकिन एक भूतनि को मनुष्य की गंद का आभास हो जाता है और जब वह उस ओर आती है तो तंत्र कला का माहिर कबीर लोहार अपने भाइयों को सजग करके अपनी तंत्र शक्ति का प्रयोग कर उस भूतनी को कम्बल में लपेट लेता है और भूतों के डर से उसे भी अपने साथ घर ले आता है जिसे वह अपनी पत्नी बना लेता है।
वह भूतनी घर का सारा काम करती थी लेकिन बोलती नहीं थी। उनकी औलादें आज भी भूतनी के वंशज के रूप में जानी जाती हैंं।
एक बार कबीर लोहार ने सोचा कि मैंने हर संभव कोशिश करके देख लिया कि यह मुझसे बात करे लेकिन यह बोलती नहीं है तो उसने सिल्बटे का पत्थर छुपा दिया जिसे गढ़वाली भाषा में ल्वाडू बोलते हैं। जब उनकी मसाले पीसने गई और उसने सिलबटे में ल्वाडू नहीं देखा तब वह उसे ढूँढने लगी..। ढूँढने पर भी जब नहीं मिला तो झल्लाकर उसने ल्वाडू बोला। ल्वाडू कहते ही उसी समय उसकी काया हड्डियों में बदल गई…यह बात सर्वथा सत्य है।
दूसरी कथा में कहा जाता है कि कबीर लोहार कफोलस्यूँ से तांत्रिक अनुष्ठान करके लौट रहे थे ! नैल गाँव के घट तक पहूँचते – पहूँचते उन्हे रात हो गई देखा वहां भूतों की सभा बैठी है! लोहार को लगा कि अगर मैं आगे बढा तो यह मुझे मार देंगे इसलिये वह भी चुपचाप सभा में जा बैठा और जैसे ही रात खुली उसने बगल में बैठी भूतनी का हाथ थाम लिया और मंत्र बल से उसे साथ ले आया ज़िससे दो पुत्र लूड़ी और भूड़ी हुये ! उनके वंशजो में वर्तमान बर्फी, इन्द्रू, हीरू, त्रीपती, दिनेश, पैंछू इत्यादी हैं !