औलाद प्राप्ति के लिए बिष्णु पत्नी जामवंती के कहने पर द्वापर में श्रीकृष्ण ने कमलेश्वर में सर्वप्रथम किये थे खडे दिए! राम ने नहीं बल्कि बिष्णु ने चढ़ाए थे सतयुग में सहस्त्र कमल!
औलाद प्राप्ति के लिए बिष्णु पत्नी जामवंती के कहने पर द्वापर में श्रीकृष्ण ने कमलेश्वर में सर्वप्रथम किये थे खडे दिए! राम ने नहीं बल्कि बिष्णु ने चढ़ाए थे सतयुग में सहस्त्र कमल!
(मनोज इष्टवाल)
बैकुंठ चतुर्दशी का मेला श्रीनगर गढ़वाल में कितना पुरातन है इस पर जब शोध प्रारम्भ हुआ तो पर्त-दर-पर्त खुलनी शुरू हुई! शायद बैकुंठ चतुर्दशी पर ही गढ़वाल श्रीनगर को बैकुंठ धाम के रूप में मान्यता मिली हो! सतयुग, त्रेता, द्वापर और अब कलयुग! चार युगों से अपने स्थान में अडिग श्रीनगर ऐतिहासिक दृष्टि से कितना महत्वपूर्ण है इसका बानगी क्या यह कम है कि महामाया ने यही सतयुग में श्रृष्टि के पहले पत्रकार नारद को बंदर का रूप दे दिया था क्योंकि महामुनि नारद को यह घमंड हो गया था कि उनसे खूबसूरत पूरी श्रृष्टि में कोई नहीं. यहीं शकंराचार्य की जब नजर जब श्रीयंत्र पर पड़ी थी तो उन्हें हैजा और कोलरा हो गया था. जिसे 8वीं सदी में हिन्दु धर्मोद्धार के क्रम में जब आदी शंकराचार्य श्रीनगर आये तब उन्होंने श्री यंत्र को ऊपर से नीचे घुमा दिया तथा इसे अलकनंदा नदी में फेंक दिया। यह आज भी नदी में ही है तथा लोग बताते हैं कि यह 50 वर्ष पहले तक जल के स्तर से ऊपर दिखाई देता था। इस क्षेत्र को श्री यंत्र टापू कहा जाता है।
महाराज सत्यसंग को गहरी तपस्या के बाद श्री विद्या का वरदान मिला जिसके बाद उन्होंने कोलासुर राक्षस का वध किया। एक यज्ञ का आयोजन कर वैदिक परंपरानुसार शहर की पुनर्स्थापना की। श्री विद्या की प्राप्ति ने इसे तत्कालीन नाम श्रीपुर दिया। प्राचीन भारत में यह सामान्य था कि शहरों के नामों के पहले श्री शब्द लगाये जांय क्योंकि यह लक्ष्मी का परिचायक है, जो धन की देवी है। द्वापर यानि महाभारत युग में श्रीनगर राजा सुबाहु के राज्य की राजधानी थी तथा वन पर्व के दौरान गंधमर्दन पर्वत के रास्ते पाण्डवों ने सुबाहु का आतिथ्य ग्रहण किया था।
दो दिन पूर्व मित्र उदित घिल्डियाल का फोन आया कि आपने लगभग उत्तराखंड की संस्कृति और सांस्कृतिक विधाओं पर इतना कुछ लिख दिया फिर कमलेश्वर पर क्यों नहीं? मैंने तत्काल जवाब दिया कि इस पर मैं बहुत पहले लिख चुका हूँ! वे बोले क्या सतयुग से अब तक पूरा..! मैं अचकचाकर बोला – सतयुग से! फिर लगा जरुर कोई बात है उन्होंने फ़ौरन कमलेश्वर महादेव के महंत श्री 108 आशुतोष पूरी महाराज से बात करवाई जिन्होंने इसके ऐतिहासिक प्रमाण देते हुए बताया कि पुष्पदन्तक के शिब महान्य श्लोक 19 वें अध्याय में कमलेश्वर के खड़े दीयों का वर्णन मिलता है. उन्होंने बताया कि विगत 2004 से 2017 तक यहाँ हजारों जोड़े सन्तान प्राप्ति के लिए खड़े दिए कर चुके हैं जिनमें 400 से अधिक ऐसे लोगों को संतान सुख प्राप्ति हुई है जिन्हें हर तरफ से मेडिकली अनफिट कहा जाता है.
उन्होंने बताया कि श्रीनगर ऐसा क्षेत्र है जहाँ देवासुर संग्राम हुआ था और भगवान बिष्णु ने शिब को प्रसन्न करने के लिए 100 कमल चढ़ाए थे. 99 कमल चढाने के बाद जब उन्होंने 100वां कमल चढ़ाया तो शिब जी ने वह गायब कर दिया तब पूजा अधूरी होती देख बिष्णु ने जैसे ही अपनी आँख 100वें कमल के रूप में अर्पित करनी चाही तब शिब ने उन्हें रोककर 100वां कमल वापस लौटाया और उनके यज्ञ को पूरा कर मनचाहा वरदान दिया!
त्रेता में रावण ह्त्या यानि ब्रह्म ह्त्या पाप से मुक्ति के लिए पुरुषोतम राम ने यहीं एक माह तक 108 कमल चढ़ाए हैं! महंत बताते हैं कि खड़े दिए की तपस्या करना भले ही सरल लगता हो लेकिन 14 घंटे तक हाथ में दीया थामे रात्री जागरण करना बेहद कठिन कार्य है! क्योंकि व्रत रखकर यूँ रात भर खड़े रहकर सन्तान प्राप्ति का यह तप कई महिलाओं के लिए घातक सिद्ध होता है और कई चक्कर खाकर गिर जातीहैं! उन्होंने बताया कि इस बर्ष भी लगभग 200 जोड़े यहाँ रात्री को सन्तान प्राप्ति के लिए खड़े दिए करेंगे!