और…. जब ग्रामोफोन पर पहला कुमाउनी गीत "भुर्र-भुर्र उज्याव हैगो" गूंजा! लीजेंड सिंगर गोपाल बाबू गोस्वामी..भला इस आवाज से कौन दूर होगा!

(मनोज इष्टवाल)

भले ही गढ़वाल ने इसकी शुरुआत लगभग 35 साल पहले कर ली थी जब तू होली बीरा उंचि निसि डाड्यूं मां घसियारी का भेस मा… लोकगायक जीत सिंह नेगी का यह पहला गीत 1941 में ग्रामोफोन मुंबई से प्रसारित हुआ लेकिन कुमाऊं का ग्रामोफोन पर पहला गीत लोकगायक गोपाल बाबू गोस्वामी द्वारा 1976 में एचएमबी एलपीपोलीडोर लेबल में रिकॉर्ड हुआ! यह चर्चा यूँही सामने नहीं आई बल्कि विगत दिन सुप्रसिद्ध संगीतकार राजेन्द्र चौहान से देहरादून स्थित घोसीगली में मुलाक़ात हुई तो देखा वे कुछ कागजों के बंडल बगल में दबाये तेजी से कदम बढ़ा रहे हैं ! दुआ सलाम हुआ! राजेन्द्र चौहान मिलें और चाय कॉफ़ी पर चर्चा न हो भला ऐसे कैसे हो सकता है! हम पास ही कॉफ़ी कैफ़े डे में बैठे तो जाना कि वे आगामी 3 फरवरी को सुप्रसिद्ध लोक गायक स्व. गोपाल बाबू गोस्वामी के जन्मदिवस पर एक सांस्कृतिक कार्यक्रम की तैयारी में मशगूल हैं! यह व्यक्तित्व भी सचमुच विकट है! चाहे इंदिरापुरम के महाकौथिग में लाखों की भीड़ जुटाना हो या फिर कहीं भी किसी भी कार्यक्रम में शिरकत करना व आयोजित करना! इस व्यक्ति का कोई सानी नहीं है! यह व्यक्ति कब अपने लिए जिया मैं नहीं जानता लेकिन संगीत विधा के मूर्धन्य लोगों के लिए अपने आप को समर्पित कर देने की कला का यह अभिन्न संगीतकार यकीनन ऐसे साहसिक कार्यों को परिणति दे देता है जो बेहद जटिल से लगते हैं! लोकगायक गोपाल बाबू गोस्वामी की बात हो और स्टोरी फ़्लैश बैक न जाए भला ऐसा कैसे सम्भव है! उनके गीत “हाय तेरी रूमाला, गुलाबी मुखुड़ी हो या फिर कैल बजे मूरली, या रुकसा रमोती घुंघुर न बजा छम-छमा जैसे गीतों पर चर्चा! सब पर फिर चर्चा होने लगी! बात उनसे गुजरकर जमाने के कलाकार वाचस्पति ड्यून्डी के उड़ान्द भांवरा तौं उचि डांडयूँ मा तक पहुंचकर रामकिशोर मिश्रा व मूर्धन्य गायक जीत सिंह नेगी तक जा पहुंची! सचमुच राजेन्द्र चौहान संगीत के क्षेत्र का ऐसा समुद्र है जिसे हर वह व्यक्तित्व व उसके लोक को दिए गीत बोल याद होते हैं जो हमारे बीच अजर अमर हो गए हैं!

मुझे लगता है कि आगामी 3 फरवरी को हम सभी लोक समाज लोक संस्कृति के चितेरे जनमानस को लोकगायक स्व. गोपाल बाबू गोस्वामी के जन्मदिन कार्यक्रम में शिरकत करने हिंदी भवन जाना चाहिए ताकि हम उनके द्वारा लोक समाज को दिए उस मधुर कंठ के उन बोलों को सुन सकें जो पिछली सदी से लेकर वर्तमान तक कालजयी रचनाएं बनकर हमारे बीच अमृत सागर बने हुए हैं!

गोपाल बाबू गोस्वामी का जन्म संयुक्त प्रांत  के अल्मोड़ा जिले  के पाली पछाऊ क्षेत्र में मल्ला गेवाड़ के चौखुटिया  तहसील स्थित चान्दीखेत नामक गॉंंव में 2 फरवरी 1941 को मोहन गिरी एवम् चनुली देवी के घर हुआ था। गोपाल बाबु ने प्राइमरी शिक्षा चौखुटिया के सरकारी स्कूल से प्राप्त की। 5वीं पास करने के बाद मिडिल स्कूल में उन्होंने नाम तो लिखवाया, परन्तु 8वीं उत्तीर्ण करने से पूर्व ही उनके पिता का देहावसान हो गया।

यह अजब गजब का संयोग व इतिहास है जिसे जानकार आपको भी आश्चर्य होगा कि जिस बर्ष ये पैदा हुए उस बर्ष लोक गायक जीत सिंह नेगी का पहला गढ़वाली की ” तू होली बीरा उंचि निसि डाड्यूं मां घसियारी का भेस मा” रिलीज हुआ और जिस साल लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी जन्मे अर्थात 1949 में उस साल लोकगायक जीत सिंह नेगी का गीतों के संकलन का पहला ग्रामोफोन बाजार में उतरा!

स्व. गोपाल बाबू गोस्वामी ने सन 1976 में ग्रामोफोन पर “हिमाला को ऊँचो डाना प्यारो मेरो गाँव”, “छोड़ दे मेरो हाथा में ब्रह्मचारी छों”, “भुर भुरु उज्याव हैगो”, “यो पेटा खातिर”, “घुगुती न बासा…आमै की डाई मा”, “आंखी तेरी काई-काई”, तथा “जा चेली जा स्वरास”। उन्होंने कुछ युगल कुमाऊँनी गीतों के कैसेट भी बनवाए। गीत और नाटक प्रभाग की गायिका श्रीमती चंद्रा बिष्ट के साथ उन्होंने लगभग 15 कैसेट बनवाए।

(फाइल फोटो – वाचस्पति ड्यून्डी)

आपको बता दें कि स्व. गोपाल बाबू गोस्वामी ने पिता की मृत्यु के बाद नौकरी की तलाश में दिल्ली, पंजाब, हिमाचल की ख़ाक छानी लेकिन पक्की नौकरी न मिलने के कारण घर आकर खेती करने लगे! बर्ष 1970 में उत्तर प्रदेश  राज्य के गीत और नाटक प्रभाग का एक दल किसी कार्यक्रम के लिये चौखुटिया  आया था, जहाँँ उनका परिचय गोपाल बाबू गोस्वामीजी से हुआ। तत्पश्चात् नाटक प्रभाग से आये हुए एक व्यक्ति ने उन्हें नैनीताल  केन्द्र का पता दिया और नाटक प्रभाग में भर्ती होने का आग्रह किया। 1971 उन्हें गीत और नाटक प्रभाग में नियुक्ति मिल गई। उन्हीं के साथ गढ़वाल के एक और कालजयी रचनाकार गीतकार व संगीतकार वाचस्पति ड्यून्डी को भी नैनीताल
गीत और नाटक प्रभाग में नियुक्ति मिली! ये समसामयिक ऐसे गीतकार संगीतकार व गायक हुए जिन्होंने गढ़वाली कुमाऊनी लोक संगीत को जन जन तक पहुंचाया! व दोनों ने ही एचएमबी पोलीडोर एलपी लेबल के ग्रामोफोन पर एक साथ अपनी रिकॉर्डिंग मुंबई जाकर करवाई ! इनकी रचनाएं या लोकगीत इतने लोक प्रिय हुए कि आज भी कानों को कर्णप्रिय होने के साथ -साथ समाज के मनोमस्तिष्क पर छाए हुए हैं! जहाँ गोपाल बाबू गोस्वामी ने “बेडू पाको बारामासा, घुघुती न बासा, कैलै बजै मुरूली, हाये तेरी रुमाला, हिमाला को ऊँचा डाना, भुर भुरु उज्याव हैगो, छबीलो गढ़देश मेरो रंगीलो कुमाऊं, रुकसा रमोती घुंघुर न बाजा छम-छमा जैसे कई गीत तत्कालीन समय में कुमाउनी समाज को दिए वहीँ कालजयी रचनाकार गीतकार व संगीतकार वाचस्पति ड्यून्डी ने भी उड़ान्द भांवरा तौं उचि डांडयूँ म, जौं भयूँकी होणी होलि ऊ कट्ठा राला, अणमिला भयूँ को लोग ठठा लगाला, कन प्यारो चौमास डांडयूँ म फैलीग्ये, छुट्टी मिलली जब, हे मेरी माँ, हे म्यारा बाबा जी, जाणु छऊँ प्रदेश मी यखुली-यखुली सहित दर्जनों कर्णप्रिय गीत गढ़वाली समाज को दिए! इन्होने न सिर्फ घरजवैं व ग्वेर छवारा फिल्म में संगीत दिया बल्कि “घरजवें फिल्म का जै बद्री-केदारनाथ गीत में लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी के साथ अपना स्वर भी दिया!

(संगीतकार राजेन्द्र चौहान बीच में )

गोपाल बाबू गोस्वामी के गीत “तिलोका तेरी लम्बी लटी, हाय तेरी रूमाला या फिर “कैल बजै मुरूली गीत में जब हमारे गाँव की शिब मंदिर मढी की कुमाइयां माई (जिन्हें हम कुमाईयां दीदी कहते हैं) नृत्य करती थी या अपनी खुद बिसराती थी वे बालपन की यादें आज गोपाल बाबू गोस्वामी को याद करते हुए तरोताजा हो गयी हैं! वह माई दीदी आज भी जीवित हैं व ज्वाल्पा धाम में बुढापे के अंतिम पड़ाव पर हैं लेकिन घर बार छोड़कर जोगी रूप भले ही व्यक्ति धारण कर दे लेकिन लोक समाज में लोक संस्कृति की जब बयार बहाने वाला लोकगायक गोपाल बाबू गोस्वामी का सुर तैरता है तब हमें भी मन तक उसका आनन्द लेने को वह वैभवी संसार दे देता है जिसकी भाषाई दूरियां चंद पल में दूर हो जाती हैं ऐसे में भला कुमाईया दीदी के दिल की पीर व हूक क्यों न उनकी “कैल बजी मुरली…!” जैसे जादूई सुर से व्यथित होकर अपने कुमाऊँ जाती! सचमुच ऐसे बिरले व्यक्तित्व के धनि गोपाल बाबू गोस्वामी के लिए ये सब शब्द कम हैं!

2 thoughts on “और…. जब ग्रामोफोन पर पहला कुमाउनी गीत "भुर्र-भुर्र उज्याव हैगो" गूंजा! लीजेंड सिंगर गोपाल बाबू गोस्वामी..भला इस आवाज से कौन दूर होगा!

  • January 24, 2019 at 7:40 am
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    धन्यवाद इष्ट्वाल़ जी। महत्त्वपूर्ण जानकारी का वास्ता।??????

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