ओमप्रकाश का लम्बी छुट्टी जाना …! क्या संघ या भाजपा के विधायकों मंत्रियों का असंतोष तो नहीं?
ओमप्रकाश का लम्बी छुट्टी जाना …! क्या संघ या भाजपा के विधायकों मंत्रियों का असंतोष तो नहीं?
(मनोज इष्टवाल)
अति सर्वस्त्र बर्जते! शायद ऐसा ही कुछ हुआ है क्योंकि लम्बे समय बाद किसी वरिष्ठ आईएएस की लम्बी छुट्टी पर चले जाने के बाद लग रही अटकलों और कयासबाजियों का सिलसिला शुरू होना इसी का धोतक है. अपर मुख्य सचिव के रूप में त्रिवेंद्र सरकार में एक छत्र राज-काज का अंग बने ओमप्रकाश की कार्यशैली में कहीं न कहीं राकेश शर्मा जैसे अफसर की रहनुमाई दिखाई दे रही थी लेकिन यहाँ अंतर अलग था क्योंकि राकेश शर्मा सिस्टम का ऐसा हिस्सा बन बैठे थे कि उन्हें हर मुख्यमंत्री को अपने साथ रखना प्रदेश सरकार की मजबूरी थी क्योंकि उनकी सेटिंग-गेटिंग का मैनेजमेंट बहुत अबल दर्जे का बताया जाता है.
यहाँ ओम प्रकाश न सिर्फ अपनी लौबी से उलझते दिखे बल्कि विधायक मंत्रियों से भी इन चंद महीनों की सरकार में उनकी तकरार की खबरें आम होती रही हैं. जो न सिर्फ उनके लिए बल्कि त्रिवेंद्र सिंह रावत के लिए भी चंद महीनों की सरकार में नासूर की तरह दिखाई देने लगा था. लेकिन इस पारी में अभी तक ऐसा प्रकरण कोई बाहर आकर सिर उठाये खड़ा नहीं हुआ था जिस से यह आंकलन लगाया जा सके कि इस पारी में उन्होंने भ्रष्टाचार की नींव रखने की कोशिश की. अफसरलौबी के एक बिशेष वर्ग को प्रमोट करना, अपनी मर्जी के आधार पर फैसले लेना व मुख्य सचिव के साथ सामंजस्य न बिठा पाना जैसी बातें मीडिया में उठती रही हैं लेकिन इस सबका वास्ता वह असंतोष तो नहीं दिखाई देता जो संघ और भाजपा के विधायक मंत्रियों में झलकता है.
यहाँ संघ संगठन परिवार में भी अन्दरखाने असंतोष कहीं न कहीं है जरुर. भले ही संघ परिवार अपने अनुशासन के ढाँचे में कोई कोताही नहीं बरतता लेकिन कहीं न कहीं संगठन की जिम्मेदारी में शिब प्रकाश टार्गेट पर दिखाई देते हैं. नागपुर कनेक्शन होने के कारण कई अफसर भले ही संघ परिवार को खुश करके मलाईदार पदों पर बैठे हों लेकिन वे जनता जनार्धन की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाए हैं.
अब जबकि आगामी 19-20 सितम्बर को राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह पार्टी कार्यकर्ताओं की नाराजगी, मंत्री विधायकों की शिकायतों का पुलिंदा व जनता के विभिन्न ट्वीट लेकर देहरादून प्रवास पर आ रहे हैं ऐसे में सभी की साँसें फूली हुई हैं. हो न हो अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश का लम्बी छुट्टी पर चले जाना एक रणनीति का हिस्सा हो क्योंकि चंद महीनों की सरकार के कार्यों की जवाबदेही कहीं न कहीं ओम प्रकाश के कन्धों की जिम्मेदारी पर भी निर्भर दिखाई देती है.
विगत महीनों में अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश से उलझने में विधायकों व मंत्रियों के नाम आये हैं ऐसे में भी कहीं न कहीं यह बात उठकर सामने आती है कि क्या ओम प्रकाश अपनी मनमर्जी कर रहे थे या फिर उन पर दबाब बनाकर कार्य करवाया जा रहा था. बहरहाल कारण जो भी रहा हो लेकिन हाई कमान के पास चंद महीनों की सरकार की शिकायतों का अम्बार लग गया दिखाई देता है. इसमें कोई दोराय नहीं कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपने इस अल्प काल में कई ऐसे निर्णय लिए हैं जो बिशेषकर उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों के लिए आगामी समय में महत्वपूर्ण हो सकते हैं लेकिन उनके इम्लिमेंट होने में अफसरशाही की सुस्त रफ्तार कहीं न कहीं आड़े आती दिखाई दे रही है. भ्रष्टाचार सम्बन्धी सरकार का अभी कोई प्रकरण खुला नहीं है लेकिन मंत्रियों को अपने ही निर्णयों पर बैकफुट में आना पड रहा है जिस से सिर्फ मंत्रियों की ही नहीं बल्कि सरकार की छवि को भी नुक्सान हो रहा है. चाहे शिक्षा मंत्री के फैसले हों या फिर संसदीय कार्य मंत्री, वन मंत्री, पर्यटन मंत्री व अन्य ! सभी की घोषणाओं पर कार्य अमल में सचिवालय के भीतर चल रही फाइलें हांफती नजर आती हैं व एक स्थान पर बिश्राम करने लगती हैं. दबी जुबान से बात उठती है कि मुख्यमंत्री ने तो फाइल प्रोसेस कर दी थी लेकिन उनके चेहते अफसर उसे दबाये बैठे हैं ऐसे में सिर्फ और सिर्फ उस चेहते अफसर के रूप में ओम प्रकाश ही टार्गेट होते रहे हैं और उन्हीं पर शक की सुई घूमकर ठहर जाती है.
यह गलत भी हो सकता है क्योंकि ओम प्रकाश को टार्गेट पर सिर्फ विधायक मंत्री ही नहीं लिए बैठे हैं बल्कि उन्हीं की अफसर लौबी की अफसरशाही को भी उनका पद व कद हजम नहीं होता. क्योंकि ढैंचा बीज प्रकरण के साथ कई अन्य प्रकरणों में सुर्ख़ियों में रहे ओमप्रकाश भले ही कितने भी ईमानदारी के साथ अपना कर्तब्य निर्वहन कर रहे हों लेकिन सॉफ्ट टार्गेट के रूप में काले पन्ने जल्दी कहकर सामने लाने की परम्परा सदियों से चली आ रही है. अब जबकि वे लम्बी छुट्टी पर गए हैं वह भी तब जबकि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का आवासीय दौरा हो रहा है तब यह मंत्रियों विधायकों के लिए ठंडी सांस लेने का वक्त है क्योंकि अब वे खुले मन से अपनी बात राष्ट्रीय अध्यक्ष के समक्ष उठा सकेंगे बशर्ते उन में इतनी हिम्मत हो क्योंकि अमित शाह कुशल प्रशासक के रूप में जाने जाते हैं व हर प्रदेश का टैरिफ कार्ड उनकी फिंगर टिप्स पर होता है! ऐसे में हो न हो ओम प्रकाश की मुसीबतें बढ़ जाएँ या संगठनात्मक ढाँचे में रद्दोबदल हो क्योंकि वर्तमान परिदृश्य से न केंद्र खुश है न राज्य की भाजपा लौबी!