ऑस्कर के लिए नामित हुई गांव के किसान पर बनी लघु फिल्म 'मोतीबाग'!
(मनोज इष्टवाल)

यह उत्तराखंड के लिए यकीनन बेहद बड़ी खबर कही जा सकती है क्योंकि उत्तराखंड के एक युवा द्वारा उत्तराखंड के परिवेश में ही उत्तराखंड की कृषि एवं औधानिकी पर बनाई गयी एक शोर्ट फिल्म “मोतीबाग़” ऑस्कर के लिए नामित हुई है! यह पहला उदाहरण है कि उत्तराखंड के परिवेश में बनी किसी शोर्ट फिल्म के लिए ऑस्कर के दरवाजे खुले हों इसके लिए युवा निर्देशक निर्मल डंडरियाल को शुभकामनाएं!

इस सम्बन्ध में फिल्म निर्माता निर्देशक निर्मल चन्द्र डंडरियाल से दूरभाष पर हुई बातचीत में उन्होंने सबसे पहले यह स्वीकारा कि उनका परिवार पहाड़ से पिताजी की सरकारी नौकरी के साथ पलायन कर चुका था लेकिन पहाड़ उनके लिए हमेशा दिव्य स्वप्न जैसे रहे वे उन्हें हमेशा ही आकर्षित करते दिखाई दिए! निर्माल विगत 20 बर्षों से फिल्म इंडस्ट्री में जुड़कर काम कर रहे हैं, वे पहले फिल्म सम्पादन का काम करते थे लेकिन बर्ष 2012 में उन्होंने बतौर निर्देशक “ड्रीमिंग ताजमहल” के नाम से पहली शोर्ट फिल्म बनाई जिसे दो नेशनल अवार्ड मिले! फिर उनकी सोच को पंख लग गए अब वह कैमरा, स्क्रिप्ट, निर्देशन व सम्पादन के कार्य सहित विभिन्न विधाओं से जुड़कर काम करना शुरू कर दिए!
2016 में उनकी शोर्ट फिल्म “बेगम अख्तर” ने फिर धमाल मचाया जिसे राष्ट्रीय पुरस्कार मिला ! उन्होंने जानकारी देते हुए कहा कि वे विगत 10-12 बर्षों से निर्देशन करते आ रहे हैं उन्होंने फिल्म बनाना 2007 से शुरू कर दिया था! विगत बर्ष ही उन्होंने उत्तराखंड फिल्म विकास परिषद्, सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग व फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया (एफ टी आई आई) द्वारा आयोजित कार्यशाला में सूचना भवन देहरादून में यह फिल्म प्रदर्शित की थी जिसकी फिल्म समीक्षकों ने खड़े होकर तालियाँ बजाकर प्रशंसा की थी!
निर्मल बताते हैं कि मूल माटी के प्रति आपका स्नेह सात समुन्द्र पार भी कम नहीं होता यह मेरा सोचना है ! यही वजह भी रही कि दिल्ली मुंबई में कार्यक्षेत्र होने के बावजूद उन्हें अब महसूस होने लगा था कि उनके पुरखों की माटी की सौंधी महक उन्हें गढवाल आने का आमन्त्रण दे रही है! एक कोशिश की तो वह इतनी सुंदर यादों में तब्दील हो गयी कि मैं विगत 5-6 बर्षों से लगातार गाँव (उत्तराखंड) आने जाने लगा हूँ! उन्होंने “मोती बाग़” फिल्म यूँहीं नहीं बनाई बल्कि उसके पीछे वह बर्षों से इस बिषय पर समीक्षा कर रहे थे कि आखिर उनके अंकल ‘विद्यादत्त उनियाल’ को अपनी माटी\ के प्रति इतना लगाव क्यों है? आखिर कैसे एक 80-82 साल का ब्यक्ति धारे से पानी का बंठा उठा लाता है! आखिर ऐसा क्या है कि इस उम्र तक भी इनके पैरों में मीलों पैदल चलने का जूनून है! आखिर ऐसा क्या है कि ये आज भी बिना चश्मा लगाए अखबार पढ़ लेते हैं! आखिर ये इतने निरोग हैं तो उसकी वजह क्या है! निर्मल कहते हैं कि उन्होंने ओब्सर्ब किया कि यह सब उनकी श्रम शक्ति की साधना, स्वच्छ वायु, प्रदुषण मुक्त जलवायु, शुद्ध ओरगेनिक रसद इत्यादि से कुछ न कुछ जुड़ा हुआ बिषय हो सकता है! फिर मन हुआ कि एक डाकुमेंट्री फिल्म क्यों न उन्हीं पर केन्द्रित की जाय! बिषय सूझा- “मोतीबाग़”! अर्थात उनके निवास स्थल का नाम..!
एक साल के परिश्रम के बाद आखिर उनकी मेहनत रंग लाई और फिल्म “मोती बाग़ बनकर तैयार हुई! जिसे केरल के फिल्म फेस्टिवल में प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ और जो इस फेस्टिवल में यह पुरस्कार अर्जित करता है वह फिल्म स्वत: ही ऑस्कर के लिए नामित हो जाती है! उन्होंने बताया कि अभी ऑस्कर के डाकुमेंट्री सेक्शन में फिल्म जायेगी जिसकी दो स्क्रीनिंग होगी! स्क्रीनिंग होने के बाद यह तय होगा कि यह ऑस्कर के किस श्रेणी में शामिल की जायेगी!
निर्मल बताते हैं कि इस फिल्म का बजट जुटाने के लिए उन्होंने पीएसबीटी (पब्लिक सर्विस ब्रॉडकास्टिंग ट्रस्ट) को आधा घंटे का प्रपोजल सबमिट किया था जो स्वीकृत हुआ और जब फिल्म बनकर तैयार हुई तब उन्होंने उन्हें एक घंटे का रफ सम्पादन दिखाया! जिसे उन्होंने बेहद पसंद किया और पूरे घंटे भर की फिल्म को स्वीकृति दे दी! उन्होंने बताया कि यह फिल्म दूरदर्शन के राष्ट्रीय चैनल पर भी प्रसारित की जायेगी! फिल्म में क्या कुछ है इस प्रश्न के जबाब में बोले- आगामी 20 सितम्बर को दिल्ली के आईआईसी ऑडियोटोरियम में शांय 7 बजे इसकी स्क्रीनिंग है आप पहुँचिये!
कृषि पंडित विद्यादत्त शर्मा उनियाल की श्रम-साधना पर बनी लघु फिल्म “मोतीबाग’’ आस्कर पुरस्कार के लिए चुन ली गई है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रथम पुरस्कार प्राप्त करने के बाद हिंदुस्तान से आस्कर के लिए चयनित दो लघु फिल्मों में मोतीबाग भी एक है। पौड़ी गढ़वाल कल्जीखाल ब्लाक के सांगुड़ा गांव के 83 साल के नायक विद्यादत्त शर्मा की खेती-किसानी और श्रम-साधना पर बनी लघु फिल्म मोतीबाग का निर्देशन तीन बार के राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता निर्मलचंद्र डंडरियाल ने किया है।

अफसरी छोड़कर किसान बने कृषि पंडित विद्यादत्त शर्मा को विश्व पटल पर पहचान मिली है। 1967 में स्थापित उनका बागान मोतीबाग श्रम-साधकों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया है। कृषि, बागवानी, मधुमखी पालन, जल संरक्षण, पाॅलीकल्चर, सब्जी उत्पादन, पशुुपालन और सामाजिक सरोकारों के प्रति समर्पण फिल्म की पटकथा के विषय हैं। विद्यादत्त शर्मा फिल्म के माध्यम से पलायन की मार झेलते गांव को बसाने, बेरोजगार पीढी को रोजगार के अवसर प्रदान करने, चकबंदी की उपयोगिता, बरसाती पानी के संचय, श्रम साधना के महत्व के साथ ही अपने समाज के लिए सिद्दत के साथ लड़ने की प्रेरणा समाज को दे रहे हैं।
नई पीढ़ी को रोजगार से जोड़ने का नुस्खा उनके पास है। वे नई पीढ़ी को अपने कर्मयोग से संदेश दे रहे हैं कि नौकर बनने की मानसिकता को त्यागकर मालिक बनने की प्रवृति अपनाएं। धरती से जुड़कर बेरोजगारी ही नहीं पलायन की महामारी पर भी विराम लग सकता है। आस्कर के लिए चुनी गई उनके जीवन कृत्यों पर बनी फिल्म ‘मोतीबाग’ को अमेरिका के लाॅस एंजेलिस में प्रदर्शित किया जाएगा। फिल्म के सह-नायक उनके पुत्र त्रिभुवन उनियाल ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि उनके बागान मोतीबाग का आस्कर के लिए चुना जाना उनके परिजनों के लिए ही नहीं पूरे देश और विशेष कर उत्तराखण्ड सरकार के लिए सौभाग्य की बात है। लेकिन जिस नायक के कृतित्व को विश्व सराह रहा है उत्तराखण्ड की राजनीति और सामाजिक सरोकारी उससे बेखबर है।
बहरहाल यह फिल्म निर्मल चन्द्र डंडरियाल के लिए जैसी भी हो लेकिन उत्तराखंड के लिए यह गौरव गाथा से कम नहीं क्योंकि उत्तराखंड के परिवेश में बनी यह फिल्म ऑस्कर के लिए नामित हुई है यह हम सबके लिए गर्व का बिषय है!