एक प्रधान जिसने अकेले दम पर ज़िंदा कर दिया मरा हुआ अट्ट गाँव!

एक प्रधान जिसने अकेले दम पर ज़िंदा कर दिया मरा हुआ अट्ट गाँव!

 
(मनोज इष्टवाल)
वो ग्रेड ए ठेकेदार है उसका भरा पूरा परिवार भौतिक सुख संसाधनों से भरपूर बर्षों पूर्व अपना गाँव छोड़ चुका है! वह क्या उसका परिवार क्या, सिर्फ और सिर्फ गाँव में एक बूढी अम्मा ही रही थी जो एक राजस्व गाँव को मिटने से बचाने की अंतिम सांस तक उसकी साक्षी बनना चाहती थी! तिबारियाँ उबड़-खाबड़ खन्डहरों में तब्दील होने को बेताब थी लेकिन आम ने अपनी बोर नहीं छोड़ी, पीपल ने अपनी छाया देनी नहीं छोड़ी! भंवरों ने अपने आलों में गुंजन कर शहद देना नहीं छोड़ा! किसी ने कुछ छोड़ा तो वह इस गाँव के मानुषों ने छोडा अपना घर बार, खेत, खलिहान, चबूतरा चौखट और चारों दिशाओं से फरफराकर चलती मदहोश हवा! छोड़ा तो वह मिठास का घुला स्पन्दन जो तल्ला उदयपुर की बोली भाषा में हर ब्यक्ति की जुबान में घुला मिलता है! छोड़ा तो वह बकरियों की गोट जिसके नाम से उदयपुर की आर्थिकी का जरिया कई बर्षों से अनवरत चला आ रहा है! छोडा तो वह मासूम पर्यावरण जिसकी प्रफुल्लित छटाओं में खिलते यौवन को परिभाषित करना अकल्पनीय है! 

(अट्ट गाँव का वह मकान जहाँ से निकले कई परिवार करोडपति हैं)
यही सब देखते हुए दिनेश भट्ट ने आखिर तय कर ही दिया कि चाहे कुछ भी हो वह अपने गाँव को यूँ मरने नहीं देंगे! देहरादून से लगभग 80 किमी. दूर व नीलकंठ से लगभग 15 किमी. दूर पौड़ी गढ़वाल के पल्ला उदयपुर के अट्ट गाँव के मूल निवासी दिनेश भट्ट द्वारा सर्वप्रथम गाँव में एक आलिशान मकान बनाया! सडक मार्ग से 300 मीटर दूरी तक कैसे रौ-मेटीरियल जाए इसके लिए उन्होंने अपने बुलडोजर लगाए और घर तक वैकल्पिक सडक बनाई! चूंकि पुराना घर उनके सात परिवारों का था व वह जीर्ण-शीर्ण अवस्था में था ! फिर प्रश्न यह भी था कि किस किस की कब कब कहाँ कहाँ खुशामद करते! उन्होंने गाँव में एक ऐसा बिशाल मकान बना डाला जो ग्रामीणों की कल्पना से हटकर था! उनके इस दुमंजले मकान को आधुनिक सभी सुविधाओं से लेश रखा गया है! इतनी दूर पहाड़ के किसी आवास में मैंने पहली बार बाथ-टब देखा! पानी की कमी को पूरा करने के लिए वाटर हार्वेस्टिंग के अत्याधुनिक तरीके इस्तेमाल किये गए हैं! जहाँ छत्त के बरसाती पानी को इकट्ठा करने के लिए व पाइप का बेजोड़ इस्तेमाल किया हुआ है वहीँ आँगन में लम्बा चौड़ा अंडर ग्राउंड लगभग 12 फिट गहरा टैंक बनाया हुआ है जिसमें बरसाती पानी हरदम मौजूद रहता है व जो फिल्टर होकर दैनिक दिनचर्या के सभी संसाधनों में काम आता है, चाहे वह खाना बनाने, कपड़ा धोने की बात हो या साग-सब्जी फूल-पत्तियों को पानी देने की बात हो!

(प्रधान दिनेश भट्ट का अट्ट गाँव स्थित वर्तमान आवास)
दिनेश भट्ट ने अपनी ग्राम सभा से प्रधान का चुनाव लडा और वे जीत भी गए! उनके कदम यहीं नहीं रुके उन्होंने सामाजिक कार्यों में जब बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी निभानी शुरू की व अपनी राजनीतिज्ञ पकड के बूते पर प्रदेश के छोटे बड़े चुनावों में अपना समर्पण दिखाना शुरू किया तो फिर हर राजनीति की बयार उनकी चौखट से गुजरकर जाने लगी!

(वर्तमान विधायक ऋतु खंडूरी के साथ दिनेश भट्ट)
और तो और भाजपा की वर्तमान विधायक ऋतु खंडूरी का पूरा क्षेत्रीय कार्यालय ही चुनाव के दौरान उनके घर से चलने लगा! दिनेश भट्ट के राजनीतिक सम्बन्धों और बढती लोकप्रियता को देखते हुए विकास खंड यमकेश्वर की समस्त ग्राम सभाओं द्वारा उन्हें प्रधान संगठन का अध्यक्ष बना दिया! 

(ग्रामीण वस्तुओं के प्रति शहरी आकर्षण भला हम कहाँ मिटा सकते थे)
प्रधान दिनेश भट्ट की कार्यकुशलता पर उन्हीं के परिवार के देहरादून रह रहे व्यवसायी भट्ट ऑप्टिकल के मालिक अश्विनी भट्ट कहते हैं कि दिनेश नाते में उनका छोटा भाई है लेकिन जब क्षेत्र के लोग आकर उसकी प्रशंसा करते हैं तो हमें भी गर्व होता है! वे कहते हैं कि मेरा भी कई बार मन होता है कि अपने गाँव घूम आऊँ लेकिन कई कारणों से मैं जा नहीं पाता जिसका मुझे भी बहुत दुःख है! गाँव आना जाना माँ के समय बहुत हुआ आज भी गाँव व घर के आस- पास की चहचहाती चिड़ियाएँ, आले पर गुंजन करते भंवरे, तिबारी में माटी की सौंधी खुशबु से लिपि डंडयाली, घर के बिलकुल सामने पीपल का पेड़, आम, पपीता व लींची का बौर से लेकर फल तक का समस्त समय हर पल आँखों से गुजरकर निकल जाता है! घर के ऊपर धार में बने मन्दिर के पास मैं घंटों बैठा रहता था, यदाकदा सडक पर गुजरती कोई धूल उडाती गाड़ी मन को बहुत भाती थी! गेंठी के पेड़ के बने पर्या की छान्छ, ताजा-ताजा मक्खन की डली, व उसी गेंठी के बने छोटे से लकड़ी के बर्तन पर वह पीला-पीला कंकरीला घी आज भी जब याद आता है तो यकीन में गाँव की हर बात याद आ जाती है! 

(वाटर हार्वेस्टिंग के अनूठे तरीके जानने हों तो ऐसे मकानों व बरसाती तालाब की कल्पना कीजिये)
अश्विनी भट्ट कहते हैं कि भले ही उन्होंने अपने गाँव का बेहतर बचपन नहीं जिया हो लेकिन जितनी बार भी मैं गाँव गया वहां का हर पल हर शुकून मैंने बहुत आनंद के साथ भोगा! वह कहते हैं कि हमें नाज है दिनेश पर कि उसने हमारे मरते गाँव को फिर से जीवित रखने की कोई कमी नहीं छोड़ी है! वह भी ऐसे समय पर जब हर कोई शहरों की चकाचौंध में रहकर जीना चाहता है! दिनेश ने तो लाखों रूपये खर्च कर गाँव में हर वह संसाधन जोड़ने की कोशिश की है जो शहरों में है! उसने न सिर्फ वाटर हार्वेस्टिंग के तरीके इजाद कर मकान के बरसाती पानी को इकठ्ठा करने की कोशिश की है बल्कि उसने ढाल पर बहने वाले पानी के लिए भी रिजर्व टैंक बनाए हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा पानी इकठ्ठा किया जा सके! 

(इक दिन जरुर हम महसूस करेंगे कि काश यह सब हमने संजोकर रखे होते)
यह सब कपोल-कल्पित सा महसूस होने के कारण मैंने भी मन में ठान लिया कि क्यों न इस सच्चाई से रूबरू हुआ जाय! मैं अपने भतीजे ललित इष्टवाल के साथ आखिर अट्ट के लिए रवाना हुआ ! रास्ते में ऋषिकेश से समाजसेवी व पर्यावरणविद्ध विनोद जुगलान विप्र  व उनके गाँव के दो अन्य लोग हमारे साथ हो लिए! अट्ट पहुँचने से पहले ही ऊँची शिखर पर स्थित एक घर को देखते ही मेरे मुंह से निकल पड़ा- वाह! ये किसने बना डाला यहाँ महल? 

(दिनेश भट्ट प्रधान ग्राम पंचायत टोला)
विनोद जुगलान विप्र बोले- आप वहीँ के लिए निकले हैं इष्टवाल साहब! ये वही अट्ट गाँव है जो बंजर होकर दुबारा आबाद भी हो गया है! ये मकान जो आपको दिख रहा है वह दिनेश भट्ट जी का ही है जो वर्तमान में ग्राम प्रधान होने के साथ साथ ग्राम प्रधान संगठन के अध्यक्ष हैं! जब हम अट्ट पहुंचे तब वहां पांच सात गणमान्य लोग हमारा बेशब्री से इन्तजार करते नजर आये! मैंने पूछा – दिनेश जी कहाँ होंगे ! बोले बस आते ही होंगे ! आप थोड़ा देर से आना भोजन तैयार है आप भोजन कीजिये! हम एक बिशाल हालनुमा कमरे में दाखिल हुए तो वहां की रंगत देखकर मन प्रफुल्लित हो गया! मकान के पीछे एक गोबर-माटी का बेहद खूबसूरत वातानुलित आवास बनाया हुआ था उसकी बगल में ही एक बड़ा सा तालाब और तालाब के ऊपर मातारानी का खुबसूरत मंदिर! तालाब भले ही खाली था क्योंकि यह हाल ही में निर्मित दिखाई दे रहा था जिसमें राष्ट्रीय ग्रामीण योजना के अंतर्गत बर्ष 2016-17 में कार्यदायी संस्था ग्राम पंचायत टोला द्वारा मात्र एक लाख की राशि में इसे निर्मित किया गया था! मेरा दावा है कि इतनी पारदर्शिता के साथ शायद ही किसी सरकारी संस्थान द्वारा इतनी कम लागत में ऐसा खूबसूरत बरसाती पानी का तालाब निर्मित किया गया हो!

१- तालाब की बगल में बना आवास जिसे हम हवा घर कहें या फिर वातानुलित आवास! २-अंडरग्राउंड वाटर हार्वेस्टिंग टैंक!
जब तक दो तीन घंटे हम अट्टा गाँव जो ग्राम पंचायत टोला का एक छोटा सा राजस्व गाँव पड़ता है में रहे तब तक भले ही प्रधान दिनेश भट्ट अपने कार्य से निवृत्त होकर नहीं लौट पाए लेकिन उनकी अनुपस्थिति में वहां खड़े उनके सहयोगियों ने एक पल भी हमें यह महसूस नहीं होने दिया कि जिस घर या गाँव में हम आये हैं उस घर या गाँव का मालिक घर या गाँव में नहीं है! अट्ट गाँव फिर से दिनेश भट्ट जैसे कर्मयोगी के कारण संवरने लगा है और तो और उन्ही के घर के अन्य युवा भी अब सोचने को मजबूर हैं कि क्यों न हम भी कुछ समय ही सही अपने गाँव को दें! क्यों न सही हम भी अपने पैत्रिक घरों को आबाद करने के लिए उनकी मरम्मत करें! क्यों न हम भी कहीं न कहीं दिनेश भट्ट का अनुशरण करें! प्रधान दिनेश भट्ट के इस प्रयास को मेरा सलूट मेरा प्रणाम!

4 thoughts on “एक प्रधान जिसने अकेले दम पर ज़िंदा कर दिया मरा हुआ अट्ट गाँव!

  • April 11, 2018 at 9:26 am
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    बहुत अच्छा Istwal जी, पत्र कारिता के नये आयाम स्थापित कर रहे हो, आपके यह लेख एक दिन खाली होते गांव को पुनर्जीवन प्रदान करगे. गढवाल की रौनक जरूर वापस आयेगी.

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