एक ऐसी महिला प्रधान जिसे ग्रामीण परिवेश की "आशा की किरण" कहा जाता है!
(मनोज इष्टवाल)
प्रतिभाओं को बंधक नहीं बनाया जा सकता! अगर आप में क्षमताएं हैं, दृष्टिकोण है व अटूट विश्वास है तो आप वह सब कर सकती हैं जो दिखने में बेहद असम्भव लगे! क्या एक ग्राम प्रधान अपने बूते पर अपनी ग्राम सभा तक 8 किमी. सडक पहुंचा सकती है! क्या एक ग्राम प्रधान अपनी न्याय-पंचायत की 13 ग्राम सभाओं के लिए घर – घर पेयजल के लिए धरना प्रदर्शन कर 9 करोड़ की योजनायें ला सकती है! क्या यह सम्भव है कि मनरेगा के तहत वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के माध्यम से गूल निर्माण कर बंजर व असिंचित जमीन को सिंचित जमीन में तब्दील किया जा सके? क्या एक ऐसा गाँव हो जहाँ सोलर प्लांट के माध्यम से पूरी ग्रामीण व्यवस्था रोशन की जा सके! इन सबका जवाब एक ही है और वो है रोशनी! जी हाँ…एक ऐसी रोशनी जिसकी चकाचौंध न सिर्फ उत्तराखंड की चांदना जैसी हो बल्कि एक ऐसी रोशनी जो दिल्ली तक उदितमान हुई हो! ये रोशनी है टिहरी गढ़वाल के हिंडोलाखाल (देवप्रयाग) विकास खंड के गहड-खडोली गाँव की ग्राम प्रधान श्रीमती रोशनी चमोली!
श्रीमती रोशनी चमोली लोक संस्कृति व लोक समाज का एक ऐसा हस्ताक्षर है जिसने अपने दम पर सामाजिक सेवा करने का दृढ निश्चय अपने स्कूली जीवन से तय कर लिया था! उन्होंने समाज सेवा की एक ऐसी लकीर खिंची जिसका माप कई सौ किमी. तक जा पहुंचा और यही कारण भी है कि उत्तराखंड से लेकर दिल्ली तक की राजनीति में रोशनी की समाजनीति की दीप्ति की जगमगाहट साफ़ दिखाई देती है! श्रीमती रोशनी चमोली बताती हैं कि 2014 में इसी समाज सेवा के भूत ने उन्हें दिल्ली से गाँव तक पहुंचा दिया व ग्राम प्रधान का चुनाव लड़ने का उनका पहला मकसद ही यह रहा कि वह अपने हिसाब से ग्रामीण अर्थव्यवस्था में ऐसा बदलाव लाएगी कि खुद यहाँ के योजनाकार कह उठें कि तेरी रजा क्या है! उन्हें तब हैरत हुई जब उन्होंने देखा कि 14 साल व्यतीत हो जाने के बावजूद भी हम उत्तर प्रदेश के पंचायती राज एक्ट के माध्यम से अपनी ग्राम पंचायतों की व्यवस्थाएं देख रहे हैं! उन्होंने जन प्रतिनिधियों के साथ एक लम्बी लड़ाई पंचायती राज एक्ट के लिए लड़नी शुरू कर दी! उन्होंने ऐसे व्यवस्था का खुला विरोध किया जिसे विधायक, मंत्री व अधिकारी अपने हिसाब से अपने-अपने स्वार्थ साधने के लिए करते आ रहे थे! 2017 में हुए ऐसे आन्दोलन को आखिर दिशा मिली और ऑन पेपर आखिर पंचायती राज एक्ट बनकर तैयार हुआ और अब वह जल्दी ही पटल पर दिखाई देगा! आपको जानकारी दे दें कि श्रीमती रोशनी चमोली पंचायती राज की मास्टर ट्रेनर के रूप में भी जानी जाती हैं!
श्रीमती रोशनी चमोली शायद उत्तराखंड की पहली ऐसी ग्राम प्रधान हैं जिन्हें समाजिक कार्यों में सदभावना के तहत राष्ट्रपति आर. वेंकटरमण द्वारा राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है! स्नातक पढ़ाई के बाद एमएसडब्ल्यू व मैकेनिकल इंजिनियर करने वाली श्रीमती चमोली जीटीएक्स कैस्ट्रोल व मारुती उद्योग लिमिटेड की सुप्रसिद्ध वर्कशॉप ट्रेनर हैं! वह कहती हैं कि रोजगारों को जब तक हम स्वरोजगार के रूप में नहीं देखेंगे तब तक हमारी सोच बदलनी मुश्किल है! हम रोजगार के लिए पलायन तो कर रहे हैं चाहे वह होटल में बर्तन मांजने का ही काम क्यों न हो! पेट की आग शांत करने के लिए हम नौकर बनते हैं, नौकर बनाने की परम्परा में हम बहुत पीछे हैं! श्रीमती रोशनी कहती हैं कि हमें ऐसे में मोटिवेशन देने की जरुरत है! तभी समाज अपना दृष्टिकोण बदलेगा! रोशनी अपने क्षेत्र के इंटर कालेज में ऐसे ही छात्रों को मोटिवेट करती हैं ताकि वे रोज़गार न मिलने पर स्वरोजगार अपनाए! जिसका नतीजा यह निकला कि कम पढ़े लिखे होने के बाद भी युवाओं ने अपने अंदर साहस दिखाया और अब वे महानगरों में छोटे बड़े होटल चला रहे हैं!
श्रीमती रोशनी चमोली जहाँ गृहणी, व्यवसायी व ग्राम प्रधान तीनों ही भूमिकाएं निभा रही हैं ऐसे में वह कहती हैं कि उनके पति रमेश चमोली उन्हें हर पल हर पग सहयोग करते हैं ! फिर भी अगर आप योजनाबद्ध तरीके से चलते हैं तो कुछ भी मुश्किल नहीं! वह बताती हैं कि वह पहले ही अगले दिन क्या करना है उसकी पूरी रूप रेखा तैयार कर लेती हैं इस से उनका कार्यक्षेत्र प्रभावित नहीं होता व हर कार्य बेहद आसानी से निबट जाते हैं! महिलाओं के अंदर दृढ़ संकल्प होने के साथ साथ आत्मविश्वास से लवरेज होना जरुरी है! आपकी सोच पारदर्शी होनी चाहिए तभी आप समाज के बीच अपने को स्थापित कर सकती हैं! गांव में खेल का मैदान, पितृ कार्य के लिए टीनशेड निर्माण से लेकर छोटी बड़ी पुलियाओं का निर्माण भी उनकी कार्य संस्कृति में शामिल रहा है।
उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान वाटर हार्वेस्टिंग के तहत जहाँ पोंड निर्माण करवाकर उनमें गूल से बंजर व असिंचित जमीन को सिंचित करवा कर सब्जी व अन्न की फसल लहलहाई वहीँ डेढ़ किमी. दूर से पेयजल स्रोतों को पाइप लाइन से सम्बन्ध करवाकर घर घर पानी पहुंचाया है! वे कहती हैं पलायन के साथ बेतहाशा हमारे प्रारम्भिक शिक्षा स्रोत स्कूल बंद हो रहे हैं यह हम सबकी नाकामी है क्योंकि शिक्षा के क्षेत्र में हम प्रयोग धर्मिता नहीं अपना रहे हैं! इस लचर व्यवस्था का दोषी सिर्फ सरकारी सिस्टम नहीं है बल्कि हम सभी हैं! जब तक अभिवाहक जागरूक नहीं होगा तब तक यह निरंतरता बनी रहेगी! हमारे पास शिक्षा का मॉडर्न व स्मार्ट तरीका होना चाहिए! वह हर पल कोशिश करती रहती हैं कि शिक्षा की बेहतरी के लिए बढ़ते बच्चों की काउंसिलिंग हो और वह करती भी रहती हैं!
उन्होंने गाँव की टूटी पगडंडियों से पौड़ी खाल तक 6 किमी. पैदल यात्रा को मोटर मार्ग में तब्दील ही नहीं करवाया बल्कि अपने गाँव की गलियों पगडंडियों का निर्माण भी करवाया! स्वायत्त समिति के माध्यम से जनता व ग्रामीण क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों के साथ मिलकर पूर्व मंत्री पेयजल मंत्री प्रसाद नैथानी से अपने क्षेत्र में 9 करोड़ की पेयजल लाइन बिछवाकर घर घर पानी पहुंचाया! झिझक के कारण अपने अंदरूनी शारीरिक विकार व बदलाव के प्रति बालपन से यौवन अवस्था में कदम बढ़ाती बेटियों को मोटिवेट करती रोशनी का लक्ष्य अब हंस फाउंडेशन के माध्यम से अपने क्षेत्र में मेडिकल सुविधाओं में बढोत्तरी करवाना है! श्रीमती चमोली कहीं अगर असहज दिखाई देती हैं तो वह है ग्रामीण परिवेश में अपनों के द्वारा ही सहयोग न किया जाना!
“आशा की किरण” टाइटल से जानी जाने वाली ग्राम प्रधान रोशनी पर दिल्ली की सार्वभौमिक संस्था द्वारा उनके गाँव पहुंचकर एक वृतचित्र निर्माण भी किया और उसका नाम भी आशा की किरण ही रखा गया! रोशनी उन बिरला उत्तराखंडियों में शामिल हैं जिन्होंने उत्तराखंड के त्यौहार उत्तरायणी- मकरैणी लोक पर्व को देश की राजधानी दिल्ली में मनाने के लिए दिल्ली सरकार को बाधित किया और अब उनका लक्ष्य समस्त सहयोगियों के साथ मिलकर दिल्ली जैसे महानगर में 90 स्थानों पर उत्तराखंड के इस लोक पर्व की धूम मचाने का है ! वह कहती हैं एक दिन ऐसा जरुर आएगा जब देवभूमि का यह पर्व राष्ट्रीय पर्व घोषित होगा!