एकचक्रा नगरी यानि चकराता..! बाहुबाण जाति के हैं जौनसार बावर के चौहान…!
एकचक्रा नगरी यानि चकराता..! बाहूबाण जाति के हैं जौनसार-बावर के चौहान..!
(मनोज इष्टवाल)
विभिन्न हिन्दू ग्रंथों व पुराणों से मिली जानकारी से पता चला है कि अपने को आर्यों व मंगोलियन व्रीड से जोड़ने वाले जौनसारी बावरी समाज के चौहान मुख्यत: बाहुबाण हैं! जिसका शाब्दिक बाहुबली या फिर धनुष विद्या में निपुण है. अब प्रश्न यह उठता है कि पांडवकाल में चकराता एकचक्रानगरी केरूप में जानी जाती थी जिसके राजा सूर्यसेन हुआ करते थे. तो क्या यहाँ के आदिपुरुष पांडव वंशज थे या फिर फिर राजा सूर्यसेन के संतति..?
धरम-पुराणों केआ धार पर जो जानकारी प्राप्त होती है उसके अनुसार “पांडव माता सहित बर्नावत के लाक्षागृह से यमुना पार कर मत्स्य, त्रिगर्त, पांचाल एवं कीचक जनपदों से होकर यहाँ आयेव अल्पकाल रहे! (आदि.अ. पृष्ठ 61,155)
एकाचक्रा नगर के समीप ही यमुनातटवर्ती गहन वन क्षेत्र का उल्लेख (आदि.अ. 159 गीता) वहीँ अल्लाटनाथ (अल्लाडनाथ) के निर्णयामृत में भी “एकचक्रा” का उल्लेख है यह ग्रन्थ उसने एकचक्रपुरी के बाहुबाण राजा सूर्यसेन की आज्ञा से लिखा था. इसका वर्णन यह है कि भानुसुता यमुना एकचक्रा के उत्कंठ में बहती है (श्लोक 18) इस नगर की स्थिति निर्धारणार्थ महत्वपूर्ण आधार है डॉ. भंडारकर व काणे की लिखी पुस्तक ..जिसमें उन्होंने बाहुबाण शब्द को चाहुवांण से जोड़ते हुए बाहूबाण को चाहूवाण माना है.व इसे चाहुवाण के लिए ही प्रयुक्त किया है.(दे.क्रमश: कलेक्टेड वर्क्स ऑन डॉ. भंडारकर,1932, पृष्ठ 983) वहीँ धर्मशास्त्र का इतिहास द.भाग पृष्ठ 1568 ग्रन्थ में बाहूबाण वंश के राजा उद्धरण के प्रसंग में ढिल्ली नगरी का उल्लेख (श्लोक 910) भी समकालीन वंश के काल निर्धारण का महत्वपूर्ण आधार है. (डॉ. यशवंत कटोच की पुस्तक भारतबर्षीय ऐतिहासिक स्थलकोष पृष्ठ संख्या – 38) इन सभी तथ्यों से अनुमान होता है कि 13वीं व 14 वीं शती इश्वी के मध्य चकराता क्षेत्र में बाहुबानो का अधिपत्य था तथा महाभारत कालीन नाम एकचक्रा इस काल में भी प्रचलित था (मनोज इष्टवाल की पुस्तक “जौनसार बावर संस्कृति एवं समाजिक परिवेश” का एक अंश) तथापि इस काल की पुष्टि किसी पुरातत्व सामग्री से नहीं हुई (दर्शन परिचक्र)
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हो सकता है निम्नवत शिलालेख इसका पुष्ट प्रमाण हो लेकिन इसकी भाषाशैली इतनी गूढ़ है कि इसे कोई पुरातत्वविद अभी तक पढ़ नहीं पाया है.